*राज्य गठन के बाद पहली बार झारखंड में विश्व जनजातीय महोत्सव का आयोजित कर झामुमो कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने खींची एक लंबी लकीर.*
*झारखंड की देश में पहचान आदिवासियों से, जनजातीय समाज के हित के लिए नित नए-नए कामों को अंजाम दे रहे हेमंत सोरेन.*
*आदिवासियों को महाजनों और साहूकारों से कर्ज नहीं लौटाने के लिए सरकार बना रही कानून, शादी एवं मृत्य पर सामूहिक भोज के लिए मुफ्त राशन.*
ऱांची : झारखंड की पहचान भारत में एक जनजातीय बहुल राज्य के तौर पर की जाती है. राज्य में करीब 32 जनजातीय समुदाय अस्तित्व में हैं. अगर हम पांच-छह अधिक जनसंख्या वाली जनजाति समजा जैसे संथाली, उरांव, मुंडा, हो और खड़िया को छोड़ दें, तो अधिकांश आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. अस्त्तित्व की लड़ाई लड़ रही ऐसे जनजातीय लोग आज भी अपने जीविका के लिए पर्यावरण पर ही पूरी तरह आश्रित है. लेकिन विकास के दौर में अंधाधुंध जगलों की कटाई ने इनके अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया है. ऐसे में अगर कोई मुख्यमंत्री यह कहें, कि पर्यावरण की रक्षा करनी है, तो आदिवासियों को बचाना होगा, पूरी तरह से साबित करता है कि ऐसे संकटप्रायः जनजातीय समुदाय के लिए वह मुख्यमंत्री कुछ बेहतर ही सोच रहा हैं. उसके हाथों में इस आदिवासी समुदाय का हित सुरक्षित है. ऐसे ही मुख्यमंत्री की श्रेणी में झारखंड के युवा नेता हेमंत सोरेन शामिल हैं.
*जनजातीय महोत्सव का सफल आयोजन कर हेमंत ने खींची एक लंबी रेखा.*
बीते दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राजधानी के ऐतिहासिक मोरहाबादी मैदान में झारखंड जनजातीय महोत्सव का आयोजन किया. राज्य बनने के 22 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब इस तरह का कोई महोत्सव आयोजित किया गया हो. इससे मुख्यमंत्री ने आदिवासी अस्तित्व के लिए एक लंबी रेखा खींच दी. महोत्सव को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री सोरेन ने स्पष्ट किया है कि ‘‘पर्यावरण की रक्षा करनी है, तो आदिवासियों को बचाना होगा, जल, जंगल, जीव-जंतु सभी अपने आप बच जाएंगे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जानवर बचाओ, जंगल बचाओ सब बोलते हैं पर आदिवासी बचाओ कोई नहीं बोलता. अगर आदिवासी को बचाएंगे तो जंगल जीव-जंतु सब बच जाएगा.’’
*हेमंत सोरेन के खड़े किये गए सवाल में दम तो है.*
मुख्यमंत्री यहीं तक नहीं रूके. विश्व जनजातीय महोत्सव के दौरान उन्होंने एक सवाल खड़ा किया, जिसने सभी को अंदर तक झंकझोर कर रखा दिया. उनके खड़े किए गये सवाल में दम तो हैं. श्री हेमंत ने कहा, ‘‘आज आदिवासी समाज के समक्ष अपनी पहचान को लेकर संकट खड़ा हो गया है. क्या यह दुर्भाग्य नहीं है कि जिस अलग भाषा संस्कृति-धर्म के कारण हमें आदिवासी माना गया, उसी विविधता को आज के नीति निर्माता मानने के लिए तैयार नहीं हैं.’’
*सत्ता के मोह से हटकर केवल आदिवासियों को हर तरह का लाभ पहुंचाना चाहते हैं हेमंत सोरेन.*
हेमंत सोरेन जानते हैं कि उनके पहले के लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहे नेताओं ने सीधे-साधे जनजातीय लोगों को केवल ढगने का काम कर वोट हासिल किया. वहीं, आज हेमंत सोरेन सत्ता के मोह से हटकर जनजातीय समुदाय को हर तरह की लाभ देना चाहते हैं. यहीं कारण है कि जनजातीय महोत्सव के दौरान उन्होंने ऐसी घोषणा कर दी, जिनकी शायद किसी ने परिकल्पना भी नहीं की होगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि आदिवासियों को अब महाजनों और साहूकारों से लिया गया कर्ज नहीं लौटाना होगा. राज्य सरकार इसके लिए सख्त कानून बना रही है. बता दें कि राज्य के अनेक ऐसे इलाके हैं, जहां आज भी भोले-भाले जनजातीय समुदाय साहुकारों के जाल में फंसे हुए हैं. हेमंत सोरेन ने यह भी घोषणा की हैं कि राज्य सरकार जनजातीय समुदाय के परिवारों को शादी एवं मृत्य पर सामूहिक भोज के लिए 100 किलो चावल और 10 किलो दाल मुफ्त देगी.
*पहली बार आदिवासियों को उनके वनोत्पाद के लिए बाजार देने की हो रही है तैयारी.*
पर्यावरण पर आश्रित जनजातीय समुदाय के लिए श्री सोरेन केवल जंगल बचाने पर ही जोर नहीं दे रहे हैं, बल्कि जगलों के उत्पादों को भी बाजार मुहैया कराने पर उनका जोर हैं. विश्व जनजातीय महोत्सव में उन्होंने जनजातीय समुदाय के जंगल पर बने उत्पाद को सामने लाकर उसे बाजार दिलाने का एक महत्ती प्रयास किया. बता दें कि वन उपज को व्यवस्थित बाजार देने की कार्ययोजना बनाने के लिए झारखंड सरकार और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस की भारती इंस्ट्टीयूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के बीच एमओयू किया गया है. मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य के आकांक्षी जिला सिमडेगा से वनोत्पाद को बाज़ार उपलब्ध कराने हेतु पायलट प्रोजेक्ट के रूप में उत्पादित वनोपज पर कार्य प्रारंभ हो चुका है.
*व्यवसाय और अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए ऋण दिलाने पर भी है मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का जोर.*
जनजातीय समाज के लोग व्यवसाय और अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ सके, इसके लिए मुख्यमंत्री ने बीते दिसम्बर 2019 को ही राज्य के सभी बैंकर्स से अपील की है कि वो अनुसूचित जनजाति के लोगों को ऋण देने में उदारता दिखाएं. इतना ही नहीं, सीएनटी-एसपीटी एक्ट जैसे कानून ऋण देने में बाधा नहीं बने, इसके लिए जनजातीय सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष स्टीफन मरांडी की अध्यक्षता में एक टीम अन्य जनजातीय बहुल राज्य में आदिवासियों को ऋण देने की पद्दति का अध्ययन भी कर रही है. बीते दिनों जमशेदपुर में आयोजित ऑल इंडिया संताल बैंक एंप्लॉय्ज वेलफेयर सोसायटी के दूसरे फाउंडेशन डे एवं वार्षिक बैठक को ऑनलाइन संबोधित करते हुए श्री सोरेन ने कहा है कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट जरूरतमंदों को बैंक लोन देने में बाधा न बने. किसानों को लोन लेने में परेशानी न हो इसके लिए सरकार गारंटर बन रही है. बैंक राज्य के पिछड़े और आदिवासी लोगों की मदद करें.