देश के सर्वोच्च न्यायालय ने उदयपुर में कट्टरपंथियों द्वारा दर्जी कन्हैयालाल की निर्मम हत्या और भाजपा प्रवक्ता नुपुर शर्मा को निलंबित करने पर बड़ा बयान दिया है. सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्यकांत ने कहा कि कन्हैयालाल की हत्या के लिए पूरी तरह से नूपुर शर्मा ही जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा को पूरे देश के लिए खतरा बताया है. साथ ही उनसे पूरे देश से माफी मांगने को कहा गया है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि नुपुर शर्मा के बयान से बेशक मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची है और इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि नुपुर ने उकसावे में यह टिप्पणी की थी. लेकिन एक बयान के लिए किसी की जान कैसे ली जा सकती है? वह भी उन्होंने (कन्हैयालाल) किसी के धर्म पर टिप्पणी तक नहीं की। न्याय का मंदिर कहे जाने वाला सुप्रीम कोर्ट इस तरह से एक जघन्य हत्या को कैसे जायज ठहरा सकता है? क्या सुप्रीम कोर्ट इस तरह के बयान देकर कट्टरपंथियों को प्रोत्साहित नहीं कर रहा है? कल अगर किसी को ईशनिंदा का आरोप लगाकर इस तरह हैक किया जाए तो क्या यह जायज होगा? या अदालत यह तर्क देगी कि क्या मृतक ने वास्तव में किसी धर्म विशेष की निंदा की थी या नहीं? और अगर यह साबित हो जाता है कि मृतक ने ईशनिंदा की है, तो क्या मृतक को उसकी मौत के लिए जिम्मेदार ठहराकर आरोपी को रिहा किया जा सकता है?