झारखण्ड की जनता के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को भाजपा ने आखों का किरकिरी बना लिया है। देश की जांच एजेंसियां को जब हेमन्त सोरेन के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला तो, केंद्र में बैठी भाजपा की सरकार ने निर्वाचन आयोग का सहारा लिया। पूर्व से चले आ रहे खनन पट्टा का अवैध बताते हुए राजभवन में शिकायत कर दी। जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत यहां चरितार्थ हुई और हेमन्त सोरेन की विधायिका पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया। ताकि भाजपा किसी प्रकार झारखण्ड की सत्ता पर काबिज हो सके।
वहीं, दूसरी ओर हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही राज्यवासियों के हित में कार्य करते रहे। सबसे पहले उन्होंने अपनी पहली कैबिनेट की बैठक में हजारों आदिवासियों पर भाजपा सरकार द्वारा दर्ज कराई गई देशद्रोह के मामले को समाप्त करने का निर्देश दिया। अचानक आई महामारी के दौरान गजब का प्रबंधन कर सभी को चौंकाया। लॉक डाउन के बावजूद किसी की मौत भूख से नहीं होने दी। देश के दुरूह क्षेत्रों में फंसे झारखण्ड के श्रमिकों को वापस लेकर आए। आदिवासियों की परंपरा और संस्कृति को बचाने के लिए सरना धर्म कोड को विधानसभा में पारित कराया। जबकि यही भाजपा राज्य के आदिवासियों को सरना धर्म कोड के नाम पर राजनीति करती रही। लेकिन इसपर निर्णय नहीं लिया। फिलहाल प्रस्ताव केंद्र सरकार के समक्ष लंबित है। ऐसे में कहा जा सकता है कि आखिर क्या वजह है कि केंद्र में बैठी भाजपा की सरकार इस प्रस्ताव पर निर्णय नहीं ले रही है।
खुद को गरीबों के लिए कार्य करने वाली पार्टी बताने वाली भाजपा ने हेमन्त सोरेन के यूनिवर्सल पेंशन के प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया। जबकि लाखों लोगों को पेंशन की आवश्यकता थी। ऐसे में हेमन्त सोरेन नेराज्य के वंचित लोगों को सर्वजन पेंशन योजना का लाभ दिया। जबकि केंद्र सरकार ने हेमन्त सोरेन के आग्रह के बावजूद जरूरतमंदों को पेंशन नहीं दिया। अपने अंदाज और निर्भीक होकर राज्य हित में निर्णय ले रहे हेमन्त सोरेन भाजपा को रास नहीं आए। भाजपा किसी हाल में हेमन्त को रोकना चाहती थी। क्योंकि मुख्यमंत्री के निर्णय बड़ी संख्या को लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे थे। हाल ही में उनके द्वारा लिया गया निर्णय बड़ी संख्या में आदिवासी और मूलवासियों को खुशी दे गया। नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को अवधि विस्तार नहीं देना, मुख्यमंत्री की मूलवासियों और आदिवासियों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है।
ऐसे कई निर्णय इन ढाई वर्ष में हेमन्त सोरेन के रहे जो भाजपा की डूबती नैया को और डूबा रहा था। भाजपा को लगा अगर ये ऐसे ही कार्य करता रहा तो भाजपा को झारखण्ड से भागना पड़ेगा। और केंद्र सरकार की कटपुतली बनी जांच एजेंसियां पूरी तरह से हेमन्त सोरेन के पीछे पड़ गई। जब इससे कुछ प्राप्त नहीं हुआ तो निर्वाचन आयोग की बैसाखी से भाजपा ने हेमन्त पर हमला बोल दिया।
हालांकि हेमन्त इससे भी विचलित नहीं होने वाले। क्योंकि जनमानस का आशीर्वाद हेमन्त के साथ है। संघर्ष को हराने वाले और चुनौतियों को स्वीकार करने वाले मुख्यमंत्री इस संघर्ष से भी सुरक्षित बाहर आएंगे। क्योंकि झारखंडी कभी संघर्ष से पीछे नहीं हटता।