राजनीति में किसी भी पार्टी को अपने कार्यों से उत्कर्ष और पराजय देखना पड़ता है। भाजपा के शासन काल के कर्मों का फल ही है कि आज अपने कर्मों के कारण हेमन्त नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार हेमन्त के नेतृत्व में फ्रंट फूट पर खेल रही है। आज झारखण्ड में भाजपा निकम्मी और आदीवासी विरोधी पार्टी बन कर रह गई है।
भाजपा अक्सर यह दावा करती है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने झारखण्ड का निर्माण आदिवासी हित को ध्यान में रखकर किया। लेकिन क्या यह सच है। नहीं। क्योंकि जिस आदिवासी हित की बात भाजपा कर रही है, उसका ही विरोध। यह दोहरा चरित्र समझ से परे है।
भाजपा से आदिवासी नेता के बड़े चेहरे बाबूलाल मरांडी को पार्टी में शामिल किया। ताकि आदिवासी सीटों पर पिछड़ रही भाजपा को सहारा मिल सके। लेकिन यहां आकर बाबूलाल को दुर्गति हो गई। ना ही उनकी ताज पोशी हो सकी और ना ही नेता प्रतिपक्ष का दर्जा ही विधानसभा में मिल सका।
बाबूलाल की दुर्गति का कारण भी भाजपा की रघुवर सरकार बनी। जिसने उनकी जेवीएम पार्टी के विधायकों को भाजपा के शामिल कर लिया। इसकी पटकथा रघुवर ने ही लिखी थी। अगर ऐसा नहीं होता और बाबूलाल बीजेपी में नहीं आते तो उनकी छवि कुछ और होती।
बहरहाल, हेमन्त फ्रंट फूट पर भाजपा द्वारा फेंके जा रहे हर बॉल पर शॉर्ट्स लगाते नजर आ रहें हैं। और भाजपा एक आदिवासी विरोधी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आ रही है। क्योंकि जो जितना जल्दी राजनीत की सीढ़ी चढ़ता है, उतनी ही जल्दी उतर भी जाता है। ऐसा ही कुछ आज भाजपा के साथ हो रहा है।