झारखंड के पांच जिले थंडरिंग जोन में, 10 साल में ठनका से 2500 लोगों की मौत

झारखंड न्यूज़
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झारखंड में मॉनसून के प्रवेश करते ही आसमानी बिजली का कहर शुरू हो गया है. झारखंड के लिए आसमानी बिजली का कहर एक बड़ी आपदा है. राज्य के पांच जिलों रांची, खूंटी, हजारीबाग, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम को थंजरिंग जोन में रखा गया है. साल 2019 से जून 2024 तक इन पांचों जिलों में करीब 16 लाख बार आसमानी बिजली गिरी है. इससे सबसे अधिक प्रभावित पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र रहा है. वहीं पिछले 10 सालों यानी 20214 से 2024 तक आसमानी बिजली की चपेट में आने से 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. भारतीय मौसम विभाग ने थंडरिंग और लाइटनिंग के खतरों को लेकर देश के जिन छह राज्यों को सबसे संवेदनशील चिह्नित किया है, उनमें झारखंड भी एक है.

झारखंड में दो तरह के थंडरिंग जोन

झारखंड में दो तरह के थंडरिंग जोन हैं. पहली श्रेणी में हजारीबाग है. इसमें लो क्लाउड (कम ऊंचाई के बादल) और माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग शामिल हैं. लो क्लाउड थंडरिंग धरातल से 80 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर होती है, जबकि माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग की गतिविधि धरातल से 80 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई पर होती है. वहीं, राज्य सरकार प्रदेश में ठनका से बचाव के लिए अब तक माकूल इंतजाम नहीं कर पायी है. इंटर क्लाउड और क्लाउड टू ग्राउंड बिजली से सबसे अधिक दक्षिणी और पूर्वी झारखंड के क्षेत्र प्रभावित रहे हैं.

धरातल पर नहीं उतर पायीं योजनाएं

सरकार ने ठनका से बचाव के लिए कई योजनाएं बनायी, लेकिन ठनका प्रभावित इलाकों में इन योजनाओं को धरातल पर नहीं उतर पायीं. सिर्फ देवघर में छह और रांची के नामकुम में एक तड़ित रोधक यंत्र ही लगाया जा सका. योजना के तहत रांची के पहाड़ी मंदिर और जगन्नाथपुर मंदिर में भी तड़ित रोधक यंत्र लगाया जाना था. आपदा विभाग का तर्क था कि पहले जो तड़ित चालक लगाये जाते थे, वह छत या भवन के ऊपरी हिस्से में तांबे का त्रिशुलनुमा यंत्र लगा होता था. इसी के सहारे अर्थिंग को जमीन के अंदर ले जाया जाता था, लेकिन यह उतनी कारगर साबित नहीं हो पायी.

क्या है तड़ित रोधक

तड़ित रोधक में एक एम्मी मीटर लगा होता है, जो एक इलेक्ट्रॉनिक फील्ड बनाता है. यह बिजली बनने से पहले ही उसे नष्ट कर देता है. यह यंत्र 240 मीटर की परिधि को कवर करने में सक्षम है. एक तड़ित रोधक लगाने में डेढ़ से दो लाख रुपये तक का खर्च आता है.

देशभर में 400 से अधिक जिले हैं वज्रपात प्रभावित

वर्तमान में देश के 400 से ज्यादा जिले वज्रपात प्रभावित हैं. ये जिले वज्रपात के करंट तीव्रता के स्केल वन के क्षेत्र में आ चुके हैं. इन जिलों में करंट की तीव्रता 1.3 बिलियन वोल्ट नापी गयी है. झारखंड सहित उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के मैदानी, पठारी और पहाड़ी क्षेत्रों में वज्रपात के कारण हुई मौतों की संख्या में अचानक भारी वृद्धि हुई है.

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार भी नहीं कर रहा काम

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार भी काम नहीं कर रहा है. वर्ष 2016 के बाद से अब तक प्राधिकार की बैठक भी नहीं हो पायी है. वहीं जिला आपदा प्राधिकार भी काम नहीं कर रहा है. वर्ष 2014-15 में जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारियों की नियुक्ति भी की गयी थी. संविदा के आधार पर हर जिले में जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी की तैनाती की गयी थी, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल नहीं होने के कारण यह योजना भी सफल नहीं हो पायी.

जानें किस साल कितने लोगों की हुई मौत

वर्ष                       मौतें
2014-15              144
2015-16              210
2016-17              265
2017-18              256
2018-19              261
2019-20              283
2020-21              322
2021-22              350
2022-23              310
2023-जून 2024    99

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