मौलाना अबुल कलाम आजाद की 22 फरवरी उनके वफात पर उसकी कुरबानी को भुलाई नही जा सकती है

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मौलाना अबुल कलाम आजाद की 22 फरवरी उनके वफात पर उसकी कुरबानी को भुलाई नही जा सकती है,  मौलाना अबुल कलाम आजाद की अगुवाई में भारतीय मूल के मुसलमानों ने जिन्ना के टू नेशन थ्योरी को ठुकरा कर बाय बर्थ- बाय च्वाइस भारत को अपना देश मान देश निर्माण में अपनी भूमिका निभाया रहे है, परंतु सत्तर सालों के बाद तथाकथित बुद्धिजीवी और सरकारों के प्रवक्ताओं द्वारा भारतीय मुसलमानों को बाबर की औलाद, घुसपैठी रोहिणगीया बंगलादेशी कहां जा रहा है, वहीं ऐतिहासिक और सांस्कृतिक  विरासत के नाम बदले जा रहे है।ऐसे भारत की कल्पना मौलाना आजाद ने अग्रेंजो से स्वतंत्रता की लड़ाई करते हुए नही किया था। उन्होंने ने कहां कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के जोर देने पर मौलाना अबुल कलाम आज़ाद स्वतंत्रता भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने और उन्होंने भारत में आधुनिक शिक्षा के साथ सम्पूर्ण शिक्षा की नींव डाली, खड़गपूर में पहली आईआईटी स्थापित की, काॅलेजों में बुनियादी शैक्षणिक सुधार हेतु विश्वविधालय अनुदान आयोग, भारतीय कृषि शोध संस्थान, इंडियन मेडिकल रिसर्च काउंसिल, इंडियन सोशल साइंस रिसर्च काउंसिल, इंडियन हिस्टोरिकल रिसर्च काउंसिल, फैकल्टी आॅफ टेक्नोलोजी की स्थापना के साथ साहित्य, ललित  कला और संगीत-नाटक अकादमी का गठन किया, 14 वर्ष तक के आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा, बालिका शिक्षा को बढ़ावा के साथ साथ व्यवसाय और तकनीकी शिक्षा की सिफारिश की जो देश में दी जा रही है।
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद नजरबंदी के दौरान रांची में लगभग तीन वर्ष रहे उस दौरान उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता के साथ मुस्लिम समुदाय में शैक्षणिक और राजनीतिक जागरूकता के लिए अभियान भी चलाया।
उन्होंने अपने खर्च से मदरसा इस्लामिया कि तामीर किया वहीं अंजुमन इस्लामिया रांची कि बुनियाद डाली।
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 में हुआ था और उनकी वफात 22 फरवरी 1958 को हुई थी।

मो लतीफ आलम
(शिक्षा संयोजक)
अंजुमन इस्लामिया रांची
ph 8539026631

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