भाजपा ने पिछले दिनों राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नारा दिया। भाजपा। देश की आशा, विपक्ष की निराशा। लेकिन यह निराशा विपक्ष की नहीं, बल्कि भाजपा के पदाधिकारियों में देखने को मिल रही है। सबसे अधिक निराशा हाल ही में भाजपा में शामिल झारखण्ड के आदिवासी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को हाथ लगी है। कार्यकारिणी की बैठक में उन्हें कोई तरजीह नहीं दी गई। बैठक में झारखण्ड से प्रमुख चेहरा बनकर राज्यसभा सांसद समीर उरांव, कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और पूर्व मेयर आशा लकड़ा उभरी।
भाजपा ने शायद एकबार बाबूलाल मरांडी को पीछे धकेल दिया। शायद बाबूलाल का झारखण्ड का मुख्यमंत्री बनने का सपना ही रह जाएगा। क्योंकि जिस प्रकार केंद्रीय नेतृत्व ने जिस प्रकार बैठक में बाबूलाल मरांडी को हाशिए पर रखा, उससे तो लगता है। बाबूलाल जेवीएम सुप्रीमो ही थे।
अब इस बात को समझने की जरूरत है कि आखिर कैसे बाबूलाल हाशिए पर जा रहें हैं। पहली बात भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सबसे पहले एक आदिवासी नेता समीर उरांव को राज्यसभा सांसद एवं भाजपा अनुसूचित जनजाति विंग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। इसके बाद झारखंड भाजपा जाना पहचाना चेहरा आदिवासी नेता अर्जुन मुंडा को पहले आदिवासी कल्याण मंत्री और अब कृषि मंत्री का जिम्मा सौंप दिया। वहीं रांची की मेयर रह चुकी आशा लकड़ा को भाजपा का राष्ट्रीय सचिव बना दिया और बाबूलाल मरांडी को झारखण्ड भाजपा का अध्यक्ष। अंतर साफ है। बाबूलाल जी आप हाशिए पर हैं
चलिए अगर आप इससे भी सहमत नहीं हैं तो राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को ही ले लें। बैठक में मंच संचालन का जिम्मा आशा लकड़ा को दिया गया। प्रस्ताव अर्जुन मुंडा बने। बाबूलाल जी आप में क्या कमी थी, जो आपको केंद्रीय नेतृत्व ने इस योग्य नहीं समझा? आपको खुद अपनी पार्टी का भक्षक बना दिया और आप झारखण्ड विधानसभा में विपक्ष के नेता भी नहीं बन पाए और ना ही किसी मुद्दे को सदन में रख सके। अब आप जो झारखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में झारखण्ड भाजपा का चेहरा समझ रहें हैं वह कभी पूरा नहीं होने वाला है। आपके आगे तीन आदिवासी चेहरा भाजपा ने समीर उरांव, अर्जुन मुंडा और आशा लकड़ा के रूप में तैयार रखा है। बाबूलाल जी आप ताड़ से गिरे और खजूर पर अटके। बेहतर होता आप भाजपा में शामिल होने के बजाय कुतुबमीनार से कूदने वाली बात पर कायम रहते तो ना आपकी गरिमा धूमिल होती और ना ही आप ऐसे बेआबरू होते।