लोकसभा चुनाव 2024 के बीच नोटा का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है। इस नोटिस में कहा गया है कि नोटा से जुड़े नियमों को लेकर चुनाव आयोग को जांच करनी चाहिए। मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया।
मोटिवेशनल स्पीकर शिव खेड़ा ने यह याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी सीट पर सबसे ज्यादा वोट नोटा को मिलते हैं तो वहां चुनाव अमान्य करार दिया जाना चाहिए और दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए।
सूरत के मामले पर चर्चा
याचिकाकर्ता के वकील ने सूरत के मामले का हवाला दिया, जिसमें विपक्ष में कोई उम्मीदवार नहीं होने की वजह से एक प्रत्याशी को विजेता घोषित कर दिया गया। वकील का कहना था कि इस स्थिति में भी चुनाव होने चाहिए और लोगों के पास नोटा का विकल्प होना चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया है कि अगर किसी उम्मीदवार को नोटा से कम वोट मिलते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर पांच साल का बैन भी लगाया जाना चाहिए। इससे उसके पास अपनी छवि सुधारने और जनाधार बनाने का मौका रहेगा।
क्या है नोटा ?
मतदाताओं के लिए नोटा के विकल्प की शुरुआत साल 2013 में हुई थी। साल 2004 में लगाई गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। इसके बाद इसकी शुरुआत हुई। नोटा का अंग्रेजी में पूरा नाम (None Of The Above) है। यह विकल्प मतदाता तब उपयोग कर सकते हैं, जब वह मौजूदा उम्मीदवारों में से किसी को भी अपना प्रतिनिधि नहीं चुनना चाहते हैं।