अलग राज्य के गठन के 24 साल में झारखंड में दूध का उत्पादन बढ़ा है. लेकिन दूध का उत्पादन बढ़ने के बावजूद राज्य में कुपोषण भी तेजी से बढ़ा है. राज्य सरकार के समक्ष दूध उत्पादन से लेकर कुपोषण तक का जो डेटा प्रस्तुत किया गया है, उस पर सरकारी अमला मंथन कर रहा है. सरकारी पहल पर पशुपालन को बढ़ावा देने के कारण ग्रामीणों-आदिवासियों द्वारा दूध का उत्पादन निश्चित तौर पर बढ़ा है. दूध सरकार द्वारा संचालित डेयरी प्लांट के साथ ही साथ निजी डेयरी प्लांट में तो पहुंच रहा है, लेकिन जो ग्रामीण-आदिवासी इसका उत्पादन कर रहे हैं, वे खुद गरीबी के कारण सेवन नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसे बेच रहे हैं, ताकि घर-परिवार चला सकें. नतीजतन जिस तेजी से दूध का उत्पादन बढ़ा है, उतनी ही रफ्तार से राज्य में कुपोषण भी बढ़ा है, जिसे लेकर सरकारी अमला गंभीर है. सरकार के स्तर पर अब यह प्रयास किया जा रहा है कि आदिवासी ग्रामीणों के बीच दूध का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही साथ आदिवासियों को उसका सेवन करने के लिए भी जागरूक किया जाए, ताकि वे और उनके परिवार के लोग कुपोषण का शिकार न हो सकें.
दूध उत्पादन और राष्ट्रीय व झारखंड पैमाने पर खपत की स्थिति
- -राज्य गठन के बाद तेजी से बढ़ा है दूध का उत्पादन, 33 लाख एमटी तक पहुंचा
- -राज्य गठन के बाद दूध उत्पादन नौ लाख मीट्रिक टन था, वहीं आज यह बढ़कर 33 लाख एमटी हो गया है.
- – प्रति व्यक्ति दूध की खपत राष्ट्रीय औसत से आधा के करीब ही है. कारण, यहां के जनजातियों में दूध पीने को लेकर जागरूकता नहीं
झारखंड में आज भी दूसरे राज्यों से आ रहा दूध
- -चालू वित्त वर्ष में इसे 36 लाख एमटी करने का लक्ष्य रखा गया है.
- -झारखंड में प्रति व्यक्ति दूध की खपत 197 ग्राम है, जबकि दूध खपत का राष्ट्रीय औसत 444 ग्राम है.
- – राज्य सरकार ने 2024-25 में इसे 237 ग्राम तक ले जाने का लक्ष्य रखा है.
झारखंड में कुपोषण की स्थिति, 67.5 % बच्चे एनीमिक
- -परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 67.5 % बच्चे एनीमिक हैं
- – 15 से 49 वर्ष की सामान्य महिलाओं में से 65.7 % महिलाओं में हीमोग्लोबिन की मात्रा 12 ग्राम से कम है.
- – 15 से 49 वर्ष की 56.8 % गर्भवती महिलाएं हैं, जिनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा 11 ग्राम से कम है.
- – राज्य में 29.6 % ऐसे पुरुष हैं, जिनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा 13 ग्राम से कम है, यानी हर तीसरा पुरुष एनीमिक है.
आदिवासी समाज की स्थिति ज्यादा चिंताजनक
- -आदिवासी समाज आज भी दूध, घी, दही, पौष्टिक तत्व खाद्य पदार्थों से दूर है. इस कारण आदिवासी समाज में कुपोषण अधिक देखा जा रहा है.
- – एक स्वस्थ वयस्क की दैनिक खाद्य जरूरतें 1207 ग्राम हैं, जिसमें अनाज, दाल, दूध, दुग्ध उत्पाद, सब्जियां और फल शामिल हैं. इससे झारखंड के आदिवासी-ग्रामीण वंचित हैं.
- – झारखंड में विकास के नाम पर भारत की सरकारों ने 1951 से 1995 तक 15 लाख से अधिक लोगों का बिना किसी समुचित पुनर्वास के उनके व्यवस्थित जीविकोपार्जन के साधनों से बेदखल किया, जिनमें 6.20 लाख से अधिक आदिवासी, 2.12 लाख से अधिक दलित और शेष अन्य समुदाय केलोग शामिल हैं.