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अंजुमन इस्लामियाँ राँची में चुनाव की सुगबुगाहट सुरू हो गई है अंजुमन इस्लामियाँ क़ौम के बुजुर्गों के मेहनत से बनायागया क़ौम का एक सरमाया है जिस से क़ौम ओ मिल्लत में ग़रीबों मिस्कीनो यतीमों दर्दमंदों सहित शहर के हर खासो आम को मदद और नफा पहुँचाया जा सकता है लेकिन अफ़सोस यह अंजुमन ख़ुद ही विवादों और आपसी रंजिश में उलझा नज़र आता है मैं नहीं जानता कि यहाँ आपसी खिच तान एक दूसरे पर इल्ज़ाम और बोहतान और यह विवाद क्यों है आख़ीर क्यों अंजुमन के सदर एक तरफ और बाकी सारे लोग एक तरफ हैं लेकिन यह समझ आता है कि जो लोग अल्लाह और आखीरत से नहीं डरते और क़ौमोओ मिल्लत के दीफ़ा की जगह निजी मफात को तरजीह देते हैं वहाँ विवाद लाज़मी है अंजुमन में जब तक वैसे लोग आते रहेंगे जिनका मक़सद खालिस अल्लाह के लिए ख़िदमत करने के बजाए तंजीमों से दौलत कमाने अपने अना की तसकीन करने का होगा तब तक यह एदारा क़ौम के लिए नफा बक्स नहीं हो सकता दूसरी तरफ़ शहर में काबिल ईमानदार और अमानत दार लोगों की कमी नहीं है लेकिन अफ़सोस है कि वो इन सब चीजों से दूर रहना चाहते है कुछ लोग यह कहते है कि राँची अंजुमन काजल की कोठरी है जहां घुसते ही दामन में दाग लग जाता है लेकिन खालिस अल्लाह की रजा के लिए और ख़िदमतें ख़ल्क़ के लिए ईमानदारी के साथ अगर काम को अंजाम दिया जाए तो ये बातें माईने नहीं रखती इस लिए ईमानदार अमानतदार और ख़ालिस अल्लाह के लिए काम करने की सोच रखने वालों को आगे आना होगा ताकि अंजुमन इस्लामियाँ के सक्ल में जो सरमाया क़ौम के पास है ये लोगों को नफ़ा पहुँचाने वाला बन सके और इसका बेहतरीन इस्तेमाल हो सके राँची के मुसलमानों से और अंजुमन के वोटरों से भी मैं गुज़ारिश करता हूँ कि वो बेराद्रियत मसलक और दीगर चीजों से ऊपर उठ कर एक ऐसे शख़्सियत का इंतिखाब करें जो साफ़गोई और ईमानदारी के साथ क़ौम के दर्द को समेटने का काम करें
