आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के बैनर तले आज हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक नारों से गूंज उठी
पारंपरिक वेषभूषा और हथियारों के साथ रांची के मोराबादी मैदान से निकलकर विशाल आक्रोश महारैली पैदल मार्च के रूप में पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा फुटबॉल स्टेडियम पहुंची, जहां ऐतिहासिक आदिवासी महाजूटान का आयोजन हुआ।
इस महाजूटान में झारखंड के सभी जिलों से लाखों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग उमड़े और कुड़मी महतो को आदिवासी सूची में शामिल करने के प्रयासों के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज कराया। मंच से आदिवासी नेताओं, समाजसेवियों, बुद्धिजीवियों और धार्मिक प्रमुखों ने एक स्वर में चेतावनी दी कि आदिवासी पहचान और अस्तित्व से किसी भी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
*वही कुड़मी महतो को आदिवासी दर्जा देने की मांग पर आदिवासी संगठनों ने जताया कड़ा विरोध*
आदिवासी समाज ने कुड़मी महतो समाज को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग को पूरी तरह से अस्वीकार करते हुए तीखा विरोध दर्ज कराया है।
केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा, झारखंड जनजातीय परिषद, आदिवासी मूलवासी सदान अधिकार मंच, समेत कई आदिवासी संगठनों ने संयुक्त रूप से कहा है कि कुड़मी समाज कभी भी अनुसूचित जनजाति सूची में नहीं रहा है, और आज राजनीतिक स्वार्थवश इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है लेकिन इनको कभी भी सूची में शामिल नहीं होने दिया जाएगा आदिवासी संगठन ने कहा कि जान दे देंगे लेकिन आदिवासी बनने नहीं देगें।
आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि कुड़मी महतो कभी आदिवासी नहीं थे, न उन्होंने खुद को आदिवासी माना। अब फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे एसटी दर्जा पाने की साज़िश कर रहे हैं।
तिर्की ने कहा कि आदिवासी पहचान कोई सुविधा या आरक्षण पाने का रास्ता नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा, भाषा और जीवनदर्शन से जुड़ी हुई पहचान है। कुड़मी समाज का इतिहास, भाषा और जीवनशैली पूरी तरह भिन्न है। ऐसे में उन्हें आदिवासी का दर्जा देना आदिवासी समाज के अस्तित्व पर हमला है।
हम अपने अस्तित्व, पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी स्तर तक संघर्ष करेंगे। कुड़मी समाज को आदिवासी दर्जा देने का प्रयास संविधान और इतिहास दोनों के साथ अन्याय होगा।
वहीं स्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि इतिहास झूठ नहीं बोलता कुड़मी समाज का आदिवासियों से कोई पारंपरिक संबंध नहीं रहा है। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि 1872 से 1931 तक की जनगणनाओं में कुड़मी समुदाय को केवल क्षेत्रीय समुदाय के रूप में दर्ज किया गया था, न कि जनजाति के रूप में।
डुंगडुंग ने कहा अनुसूचित जनजातियों की सूची 1 दिसंबर 1948 से लागू हुई, और इससे पहले कुड़मी समाज ने 1923 से 1930 के बीच करीब 700 आंदोलन किए, लेकिन कभी भी एसटी दर्जे की मांग नहीं की।
उन्होंने आरोप लगाया कि कुड़मी महतो समाज के 81 गोत्र तो हैं, लेकिन कोई ‘टोटेम’ वंश-प्रतीक नहीं है, जो आदिवासी पहचान का मूल तत्व होता है।
वहीं शशि पन्ना ने कुड़मी समाज के दोहरे चरित्र पर सवाल उठाते हुए कहा है कि एक तरफ वे खुद को आदिवासी बताकर अनुसूचित जनजाति एसटी में शामिल होने की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण की मांग भी कर रहे हैं। यह विरोधाभासी और स्वार्थपरक रवैया है, जो समाज को गुमराह करने वाला है।
संगठनों ने याद दिलाया कि रेल टेका करने वाले सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी ने पहले मुखिया पद को ओबीसी के लिए आरक्षित कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया।
सोमइ उंराव, गोंडरा उंराव, पवन बारला, सोहानी तिग्गा, राजेश लिंडा, नवीन तिर्की, अनिल पन्ना, सुषमा बूरली, ज्योत्स्ना केरकेट्टा, सुषमा बड़ाईक, सुनिल मुंडा, सुशीला भगत, मुन्ना कुमार मुंडा, बिरसा कच्छप, सुरज टोप्पो, कारु टोप्पो, संजय टोप्पो, बसंत भगत, नंद किशोर मुंडा , मनोज कुमार सोय, पिंटू मुंडा, राधा कृष्ण सिंह मुंडा, कृष्णा मुंडा, देवसहाय मुंडा, सुनिल पहान टोकन करमाली, मंगला कुल्लू पवन बारला, सोमा उंराव, आकाश मुंडा, यदुनाथ तियू, सुखदेव मुंडा, विजय करमाली, विकास कच्छप, राजन करमाली, गौतम उंराव, संजय लोहरा, रुपचंद तिकी, विजय कच्छप, कृष्णा लोहरा, प्रकाश हंस, दिनेश मुंडा, कैलाश तिर्की, गैना कच्छप, मुन्ना उंराव,सचिन कच्छप, आदि लोगो का सहयोग से कार्यक्रम सफल में योगदान रहा।