Ranchi : भाजपा नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार की कार्यशैली को लेकर विपक्ष केंद्र पर लगातार हमलावर है. शायद ही ऐसा कोई दिन हो, जिसमें यह खबर मीडिया में सुर्खियां न बटोरे कि केंद्रीय संस्थाएं आज भाजपा के दबाव में काम कर रही है. ऐसी ही एक संस्था है नीति आयोग, जिसे हम नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया के नाम से जानते हैं. पूर्व की योजना आयोग की जगह बनी नीति आयोग काम वैसे तो कई हैं. लेकिन इसमें दो सबसे प्रमुख काम है.
पहला – राष्ट्रीय उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए राज्यों की सक्रिय भागीदारी बढ़ाते हुए राष्ट्रीय विकास के प्राथमिकताओं और रणनीतियों का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना.
दूसरा – सहकारी संघवाद (कोऑपरेटिव फेडरलिजम) का पालन करवाने में भूमिका निभाना.
उपरोक्त कामों को देख ऐसा लगता है कि राज्य के अधिकारियों को दिलाने में नीति आयोग प्रमुख भूमिका निभाएगा. लेकिन आज यह सवाल लगातार उठ रहा है कि क्या नीति आयोग इतना मजबूत है कि वह झारखंड की लाखों जनता के दर्द को केंद्र सरकार के समक्ष रख पाए. कई बार ऐसा हुआ है कि आयोग के समक्ष झारखंड की परेशानियों को रखा गया हो. स्वंय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी ऐसा कर चुके हैं. पर रिजल्ट सकारात्मक आया हो, ऐसा कहना सही नहीं होगा.
*हाल के दौरे में भी झारखंड के हितों को लेकर हुई बातचीत, नीति आयोग से न्याय की आस !*
तीन दिन पहले नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन कुमार बेरी के साथ आयोग की चार सदस्यीय टीम रांची पहुंची थी. इस दौरान मुख्य सचिव सुखदेव सिंह सहित कई आधिकारियों ने विकास के मुद्दें पर नीति आयोग के सदस्यों से बातचीत की. एक बार फिर से आयोग से झारखंड की जनता न्याय की आस लगाए हुए हैं. अब देखना यह है कि क्या आयोग झारखंड की जनता के दर्द को केंद्र तक पहुंचा पाएगा, यह पूर्व की भांति केवल आश्वासन देकर मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल देगा.
पहला – औद्योगिक विकास का मुद्दा
• राज्य सरकार के अधिकारियों ने औद्योगिक विकास को प्रभावित करने का मुद्दा उठाया. मुख्य सचिव सुखदेव सिंह सहित अधिकारियों ने आयोग को बताया कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य की कई गैरमजरूआ जमीन (जीएम लैंड) को वन भूमि (फॉरेस्ट लैंड) नोटिफाइड कर दिया गया है. इसमें वैसे भूमि शामिल हैं, जहां जंगल है ही नहीं. क्या इससे राज्य का विकास प्रभावित नहीं होगा. इसपर आयोग ने सकारात्मक कदम उठाने का भरोसा दिलाया. देखना होगा कि क्या नीति आयोग इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करेगा.
दूसरा – भूमि अधिग्रहण करने पर मुआवजा देने का मुद्दा
बैठक में राज्य के अधिकारियों ने नीति आयोग को यह भी बताया कि नीजि कंपनी जब जमीन अघिग्रहण करती है, तो ज्यादा मुआवजा देती है. जबकि कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनियां जब ऐसा करती है, तो कम दर पर मुआवजा देती है. क्यों. क्या नीति आयोग इस मुद्दे को प्रधानमंत्री के समक्ष रखने का काम करेगा.
नीति आयोग पर सवाल उठने के तर्क भी है मजबूत
बता दें कि नीति आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाने के कई तर्क भी है. हेमंत सरकार के सत्ता में आते ही आयोग की टीम ने कई बार झारखंड का दौरा किया. इसमें बीते साल 21 सितम्बर का दौरा प्रमुख है. इस दौरान स्वंय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आयोग के साथ बैठक की. वैसे तो उन्होंने झारखंड के हितों से जुड़े कई मुददों को उठाया. पर इसमें जो प्रमुखता से शामिल हैं.
पहला – कोल इंडिया पर झारखंड के करोड़ रुपए बकाया का मुद्दा
• कोल इंडिया लिमिटेड पर झारखंड सरकार का करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए बकाया है. यह बकाया कोयले के खनन के लिए रॉयल्टी और इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की गई भूमि के मुआवजे से जुड़ा है. मुख्यमंत्री ने आयोग को बताया था कि कई बार उन्होंने कोल इंडिया को रिमांइडर भेजा गया, तब जाकर केवल राज्य सरकार को सिर्फ 300 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जो कुल बकाए के सामने कुछ भी नहीं है. एक साल बीत चुका है, लेकिन इस पर शायद ही कोई काम हुआ. ऐसे में नीति आयोग की कार्यशैली भी संदेह के घेरे में आती है.
दूसरा – डीवीसी को बकाया भुगतान को लेकर राशि कटौती का मुद्दा.
• झारखंड सरकार के खाते से दामोदर वैली कारपोरेशन (डीवीसी) के बकाए के 714 करोड़ रुपए काटने का भी मुद्दा हेमंत सोरेन ने उठाया. उन्होंने कहा था, केंद्र का भाजपा शासित राज्यों पर अरबों रुपए बकाया है, पर उनपर कार्रवाई नहीं हो रही. झाऱखंड के मामले में केंद्र सरकार ‘पिक एंड चूस’ के तहत काम करती है. इस पर भी नीति आयोग ने सकारात्मक कदम उठाने का भरोसा दिलाया. पर रिजल्ट आज तक जीरो ही रहा.
अगस्त 2022 में भी हेमंत सोरेन के उठाये मुद्दों पर नहीं हुआ कोई विचार.
बीते 7 अगस्त को भी नई दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में भी मुख्यमंत्री शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने तीन मुद्दों को उठाया. नीति आयोग के समक्ष रखे इन मुद्दों पर भी आज तक केंद्र द्वारा कोई विचार नहीं किया गया है. इसमें शामिल हैं.
पहला – सूखा से निपटने के लिए झारखंड के लिए विशेष पैकेज दिया जाए.
दूसरा – झारखंड में विभिन्न खनन कंपनियों की भू अर्जन, रॉयल्टी इत्यादि मद में करीब एक लाख छत्तीस हज़ार करोड़ रुपये बकाया है, जिसे केंद्र लौटाये, ताकि राज्य का विकास हो सके.
तीसरा – वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के में संशोधन कर जो नियमावली बनायी गयी है, वह आदिवासी एवं पिछड़े वर्ग के हितों के प्रतिकूल है. इस पर सरकार विचार करें. बता दें कि संशोधन के बाद बनी नई नियमावली में वन भूमि उपयोग के लिए स्टेज 2 क्लीयरेंस के पूर्व ग्राम सभा की सहमति के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है, जो राज्य सरकार के विचार से गलत है.