रांची। झारखंड की ज़मीन पर अब नक्सलवाद खत्म सी होती दिख रही है। बीते तीन सालों में जनप्रतिनिधि और अधिकारी जहां जाने से कतराते थे वहां पर अब अपना ठिकाना बनाना शुरू कर चुके है। गांववालो के चेहरे पर ख़ुशी देखी जा रही है। ये सिर्फ और सिर्फ हेमंत सरकार के कार्यकाल पर संपन्न होता दिख रहा है। आपको बता दें के हम बात कर रहे है, छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे झारखंड के बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र की जो अब पूरी तरीके से नक्सलमुक्त हो गया है। वर्षों लंबा अभियान चलाने के बाद सुरक्षाबल और सरकार की मेहनत से यहां से नक्सलियों को भाग खाड़ा करने में सफलता हाथ लगी है। बूढ़ा पहाड़ के क्षेत्र में आने वाले गढ़वा जिले के भंडरिया और बरगढ़ प्रखंड तथा लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के गांवों के लोग अब भयमुक्त हैं। बम और गोलियों के धमाकों की जगह अब यहां हंसती- खिलखिलाती जिंदगी और सुकून की झलक दिखाई देती है। पहाड़ से सटे छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के रामानुजगंज प्रखंड के थलिया, पुंदाग, पोलपोल, मदगढ़ आदि गांवों में भी लोग चैन की सांस लेते दिख रहे हैं। यहां ग्रामीणों से जब हमने बात की तो उनका कहना था के वो तीन दशकों से वह बम, बारूद, हिंसा और हमले की ही गतिविधियां देखते आ रहे थे। उनका ये भी कहना था के नक्सलियों के बड़े नेता उनके यहा बैठकें करते थे। वहां लोग इसे लेकर काफी डरें सहमे हुए रहते थे। नक्सलियों का दहशत इतना था के आए दिन पुलिसकर्मियों को बारूदी सुरंग विस्फोट में उड़ा देने की घटनाएं को अंजाम देते थे। नक्सलियों के डर से गांववाले भी घरों में दुबके रहते थे। उनके चलने की आवाज सुनकर ही सहम जाते थे, परंतु ख़ुशी की बात ये है कि अब यहां के हालात पूरे तरीके बदल चुके हैं। गांववाले यहां महुआ, सरसों, गोंदली, अरहर और अन्य फसलों की खेती बड़े ही मजे से कर रहे हैं। गढ़वा जिले के भंडारिया और बरगढ़ प्रखंड से सटा है छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले का रामानुजगंज प्रखंड इस इलाके के आधा दर्जन गांव बूढ़ा पहाड़ के इलाके में स्थित है। रामानुजगंज के पुंदाग थलिया जैसे गाव में जाने के लिए झारखंड की जमीन से होकर ही गुजरना होता है। ऐसे में वहां के कोई भी जनप्रतिनिधि या सरकारी अधिकारी इन गाँवों में आने से बचते थे। गढ़वा पुलिस ने जब बूढ़ा पहाड़ को माओवादियों से मुक्त कराया तो नवंबर के पहले सप्ताह में बलरामपुर के जिलाधिकारी, एसपी और स्थानीय विधायक पुंदाग गांव में पहुच गांव वालों से मिल वहां की स्थिति जानी।
जिस बुढ़ा पहाड़ में डरें सहमे और जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी जाने से बचते थे वहां पर नक्सलियों का दबदबा था। वहां के लोगों का मानना था के ये इलाके मे नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना है। आपको बताते चलें के बूढ़ा पहाड़ पर रहने वाले नक्सलियों ने लेवी वसूली का मुख्य स्रोत छत्तीसगढ़ के सावरी बाक्साइट माइंस को माना जाता था। यहां बाक्साइट ट्रांसपोर्टिंग में लगी कंपनियों से माओवादी लेवी के रूप में बड़ी रकम वसूलते थे। इसके अलावा 55 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले बूढा पहाड़ पर प्रतिवर्ष 70 करोड़ रुपये के केंदु पत्ते की बिक्री होती है। पिपरढावा के ग्रामीण विनेश कोरवा ने बताया कि बिना नक्सलियों को लेवी दिए कोई भी ठेकेदार केंदु पत्ते ( बीडी पत्ता) का उठाव नहीं कर सकता था। साल में करीब 10 करोड़ रुपये लेवी के रूप में यहां से माओवादी वसूलते थे। गढ़वा के पुलिस अधीक्षक अंजनी कुमार झा ने बताया कि नक्सलियों के इस अर्थतंत्र को ध्वस्त कर दिया गया है।