एक बार फिर राजभवन और सरकार आमने-सामने, टीएसी की बैठकों को लेकर राजभवन ने भेजा पत्र

झारखण्ड
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रांची। झारखंड में एक बार फिर राजभवन और सरकार आमने-सामने नजर आ रही है। राज्यपाल रमेश बैस ने झारखंड जनजातीय सलाहकार परिषद (टीएसी) की नई नियमावली के गठन के संबंध में उनके पूर्व के आदेश का पालन नहीं करने और दूसरी ओर टीएसी की बैठक समेत अन्य कार्रवाई पर अपनी आपत्ति जताई है। उन्होंने सरकार से कहा है कि पूर्व में उनके आदेश के संबंध में की गई कार्रवाई से उन्हें तत्काल अवगत कराया जाए और लंबे समय तक अनुपालन नहीं होने का कारण भी स्पष्ट करें। सरकार के सूत्रों के मुताबिक इस संबंध में राज्यपाल के प्रधान सचिव डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी की ओर से मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को लिखा गया पत्र सरकार को प्राप्त हुआ है। सूत्रों के अनुसार राजभवन की ओर से सरकार को जारी पत्र में कहा गया है कि सरकार ने टीएसी की नियमावली का गजट सात जून 2021 को प्रकाशित किया था। इस नियमावली को जारी करने से पहले राज्यपाल की सहमति या अनुमोदन नहीं लिया गया था। राज्यपाल की ओर से इस नियमावली गठन की संचिका मांगी गई थी। इसके बाद राज्यपाल की ओर से चार फरवरी 2022 को विस्तृत आदेश पारित किया गया था। इन आदेशों के अनुपालन के संबंध में कोई भी सूचना राज्यपाल सचिवालय को उपलब्ध नहीं कराई गई और इस दौरान नई नियमावली के तहत टीएसी की बैठक भी आयोजित की गई है। बैठकों में लिए गए निर्णयों के संबंध में कोई सूचना राज्यपाल को उपलब्ध नहीं कराई गई है। राजभवन के अनुसार ऐसा करना स्पष्ट रूप से संविधान की 5वीं अनुसूची के प्रावधानों का उल्लंघन प्रतीत होता है क्योंकि टीएसी के निर्णयों पर राज्यपाल का अनुमोदन अपेक्षित है। अनुसूचित जनजातियों के हित में, टीएसी में कम से कम दो सदस्यों (अनुसूचित जनजाति समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले) को नियुक्त या नामित करने की शक्ति राज्यपाल विचार करना चाहिए। के पास होनी चाहिए। नई नियमावली में टीएसी के गठन में राज्यपाल की भूमिका खत्म हो गई है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण और संविधान की मूल भावना के विपरीत बताते हुए विधि विशेषज्ञों की राय का हवाला देकर अपने सुझावों के साथ टीएसी की फाइल राजभवन ने सरकार को करीब दस माह पहले लौटा दी थी। यह भी कहा था कि जब भी राज्यपाल की ओर से कोई सुझाव दिए जाएं उस पर पूरी गंभीरता से टीएसी को विचार करना चाहिए। राज्यपाल ने यह भी कहा था कि टीएसी के हर निर्णय को राज्यपाल के पास उनके विचार और अनुमोदन के लिए भेजा जाना चाहिए। यदि, राज्यपाल का कोई सुझाव या संशोधन है तो उसे गंभीरता पूर्वक स्वीकार करना चाहिए। सरकार ने संभावित निकाय चुनाव पर राज्यपाल का अनुमोदन प्राप्त कर लिया है। पर आरक्षित सीटों पर 23 नवंबर की टीएसी की बैठक में आपत्ति जताई गई थी। सूत्रों के अनुसार इसके बाद सरकार नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव तैयार कर रही है। नियमावली की मंजूरी के लिए गवर्नर की स्वीकृति ली जाएगी। जब टीएसी के गठन पर आपत्ति है तो इसकी बैठकों के फैसले पर उनकी सहमति का प्रश्न नहीं उठता।





सीएम की अध्यक्षता में हुई बैठक मे 6 मुद्दो पर चर्चा हुई थी जिसमें। जिसमें टीएसी के बैठक मे अहम फैसले लिए जैसे पर्यावरण और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण के लिए इको-टूरिज्म को बढ़ावा हो, लघु वन उत्पाद की व्यापक रूप से खरीद-बिक्री कर वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों की अधिक से अधिक आय वृद्धि करने के लिए पहल का निर्णय लिया गया। वनाधिकार अधिनियम 2006 के अन्तर्गत अधिक से अधिक सामुदायिक पट्टा देने। जनजातीय भाषाओं के शिक्षकों की तेजी से नियुक्ति और आवश्यकतानुसार पद सृजन। होड़ोपैथी आदिवासी ज्ञान परंपरा को वैज्ञानिक प्रयोगशाला बनाते हुए आयुष में सम्मिलित करने पर जोर। जनजातीय भाषा में कक्षा एक से पांच तक के लिए अध्ययन और जनजातीय भाषाओं के अधिक से अधिक उपयोग पर टीआरआई से अध्ययन कराते हुए एक नीति बनाई जाएगी। जनजातीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का अनुवाद और वितरण कराने का निर्णय लिया गया। आपको बता दें झारखंड सरकार ने साल 2020 में टीएसी के गठन के लिए तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के पास फाइल भेजी थी। राज्यपाल ने कुछ मुद्दों पर सवाल उठाया था। इसके बाद सरकार ने महाधिवक्ता से राय लेकर चार जून को नियमावली बना दी। इसमें टीएसी के गठन में राज्यपाल की भूमिका खत्म हो गई। नई नियमावली के तहत टीएसी के गठन में मुख्यमंत्री की अहम भूमिका है।

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