आदिवासी समाज के लोग लगातार कई दशकों से अपने लिए जनगणना में अलग सरना धर्मकोड की मांग कर रहे है. मगर आजतक झारखंड में जितनी ‘सरकार बनी उन्होंने इस ओर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. आलम ये था की पूर्व में पूर्ण बहुमत के साथ आयी बीजेपी सरकार ने भी पांच साल तक आदिवासियों की सबसे बड़ी मांग पर कोई विचार नहीं किया और ना ही किसी सत्र में इसपर बहस करना उचित समझा. समय बीता और सूबे में आदिवासी सरकार ने शपथ लिया. साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में बनी हेमंत सरकार सरना धर्मकोड के बारे में बात करना शुरू किया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मानसून सत्र के आखिरी दिन भी अपना निश्चय दोहराया. मुख्यमंत्री ने कहा की अधूरी नहीं पूरी तैयारी के साथ राज्य सरकार केंद्र को सरना धर्मकोड का प्रस्ताव भेज रही हैं. इसके लिए सभी वर्गों से विचार विमर्श किया गया. उन्होंने कहा की आदिवासी समाज को उनका अधिकार दिलाना उनकी प्रतिबद्धता है. मगर इन सब के बीच जहां एक और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरना धर्मकोड और आदिवासी अधिकारों के प्रति संवेदनशील दिख रहे है. आदिवासी हितो को प्राथमिकता दे रहे है, तो वहीँ दूसरी ओर सूबे में विपक्ष को सरना धर्म को और आदिवासी अधिकारों से कोई लेना देना ही नहीं है. . सत्र में विपक्षी नेताओ ने गुंडागर्दी और हंगामा का केंद्र बना दिया. अपनी ही पूर्व की सरकार की नीतियों को लेकर बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टियों ने सदन को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया. हैरत की बात तो ये है की जिस समय बीजेपी सदन में हंगामा और गुंडागर्दी कर रही थी. उस समय भी राज्य के आदिवासी सड़को पर उतरकर अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे. कहीं मानव श्रृंखला बनी थी तो कहीं सत्याग्रह के सहारे सरना धर्मकोड लागू कराने का दबाव बनाया जा रहा था. मगर बीजेपी और उनके सहयोगियों को तो मानो आदिवासियों के हितो से दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है. यही कारण है की बीजेपी ने पूरे विधानसभा सत्र के दौरान सरना धर्मकोड को लेकर एक शब्द नहीं कहा. बीजेपी नेता सरना धर्मकोड और आदिवासी हितो के सवालों से कन्नी काटते दिखे. बीजेपी विधायकों में से किसी ने भी जनहित के मुद्दों पर सवाल पूछना सही नहीं समझा. ये नेता अपनी ही पूर्व की सरकार के कारनामो पर लीपापोती करते नजर आये. आदिवासी समाज के लोगो के अधिकारों की मांग भी बीजपी नेताओ की नौटंकी और गुंडागर्दी, नारेबाजी के शोर शराबे में दब कर रह गयी.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सरना धर्म कोड का प्रस्ताव भेजने से बीजेपी समेत विपक्ष के नेताओं का होश उड़ गए हैं। मगर इस मामले भी ना तो सरकार को विपक्षी नेताओ का साथ मिल रहा है, ना सुझाव. विपक्ष के रव्वैये से इतना तो साफ़ हो गया है कि बीजेपी सरना धर्मकोड और आदिवासी अधिकारों के नाम पर भी सिर्फ सियासी बयानबाजी ही करती आयी है. जब आदिवासी अधिकारों को लेकर सदन में या किसी मंच पर आवाज उठाने की कोशिश होती है तो भाजपा अपने सियासी शोरगुल में उस आवाज को दबा देती है. ऐसे में आज हम सवाल पूछना चाहते है – आदिवासी अधिकारों पर मौन रहने वालो पर जनता का चाबुक कब चलेगा ? क्या सरना धमकोड़ पर बीजेपी की उदासी का जवाब देंगे आदिवासी ?
इस दौरान सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार धर्म कोड जारी नहीं कर देती है तब तक वे अपने स्तर पर प्रयास जारी रखेंगे। हमें केंद्र सरकार से धर्म कोड प्राप्त करना है। विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर ली है गई है सीएम ने कहा कि सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव तो झारखंड विधानसभा से पारित करा लिया गया है, लेकिन अभी कई लड़ाइयां लड़नी है। केंद्र सरकार से इसे हर हाल में लागू कराना है ताकि आगामी जनगणना किया जा सके। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार कर ली गई हैं। सरकार से इसे हर हाल में लागू कराना है ताकि आगामी जनगणना में इसे शामिल किया जा सके। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार कर ली है। आदिवासी सरना समाज को उसका हक और अधिकार मिले, इसके लिए हमारे कदम कभी नहीं रुके हैं। हम आगे बढ़ते ही रहेंगे।
समाज को एकजुट करने का काम हो सीएम ने कहा कि आदिवासी समाज को देश के स्तर पर एकजुट होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि धीरे- धीरे इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। बदलते वक्त के साथ आदिवासी समाज का जनप्रतिनिधित्व पंचायत से देश के स्तर पर बढ़ रहा है। यह एक सुखद संदेश है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यहां विपक्ष में बीजेपी और आजसू है और केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है। हम चाहेंगे कि यहां के जनप्रतिनिधि केंद्र सरकार पर दबाव डालकर सरना धर्म कोड को पारित कराएं।
