पुष्पा-2 का पोस्टर आया, साड़ी-कंगन-नेलपॉलिश में अल्लू अर्जुन के लुक की असली कहानी पता चल गई!

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07 अप्रैल की शाम Pushpa 2 से Allu Arjun का फर्स्ट लुक पोस्टर रिलीज़ हुआ. टेढ़ी गर्दन किए पुष्पाराज, नीले रंग में पुता. शरीर पर साड़ी. एक हाथ में पिस्तौल. लेकिन उसी हाथ के नाखूनों पर नेलपॉलिश लगी है. हाथों में छन्न चमकते गोल्डन कंगन हैं. गले में कच्चे नींबुओं की माला इस लुक की शोभा बढ़ाने का काम कर रही है. अल्लू अर्जुन का ये लुक चौंकाने वाला था.

लोगों ने उम्मीद की थी कि वो अपने सिग्नेचर पोज़ में दिखेगा. हाथ में बंदूक, बदन पर लुंगी बांधे. या फिर दुश्मनों से लड़ रहा होगा. कुछ ऐसा दिखेगा जिसे सोसाइटी मैस्क्युलिन मानती है. अगर आपने ‘पुष्पा: द राइज़’ देखी है तो जानते होंगे कि पुष्पाराज का फीमेल कैरेक्टर की तरफ कैसा नज़रिया होता है. मेकर्स ने उस पूरे नोशन को इस एक पोस्टर से धम कर के उलट दिया. सोशल मीडिया पर ये लुक रिलीज़ होने के बाद से ही जनता लहालोट हो रखी है. लोग इस लुक का कनेक्शन समझना चाह रहे हैं. वहीं कुछ ने लिखा कि ये ‘कांतारा’ का असर है. चूंकि ‘कांतारा’ कर्नाटक की एक परंपरा पर आधारित कहानी थी. बताया जा रहा है कि अल्लू अर्जुन के इस लुक का भी एक धार्मिक परंपरा से कनेक्शन है. कुछ यूज़र्स ने पॉइंट आउट किया कि ये लुक चित्तूर की ‘गंगम्मा जात्रा’ से प्रेरित है. 

क्या है ‘गंगम्मा जात्रा’, अब उसके बारे में थोड़ा बताते हैं. ये एक फोक फेस्टिवल है जिसे कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. सात दिनों तक चलने वाली ‘गंगम्मा जात्रा’ हर साल मई के महीने में मनाई जाती है. इस दौरान भव्य पूजा की जाती है. कुछ जगह देवी को प्रसाद के रूप में मांसाहारी भोजन चढ़ाया जाता है. सात में से बीच के दो दिनों में यात्रा निकलती है. जहां पुरुष अपना वेश बदलकर आते हैं. महिलाओं की तरह सजकर, उनकी तरह शृंगार कर इस यात्रा में हिस्सा लेते हैं. संभव है कि ‘पुष्पा 2’ में अल्लू अर्जुन का किरदार भी ऐसी यात्रा में हिस्सा ले रहा होगा. तभी उसने ऐसा वेश धरा हो. 

भगवान से जुड़ी परंपराओं की रूट्स किसी-न-किसी मान्यता में छुपी होती है. फिर चाहे वो परंपरा देश के किसी भी राज्य से आ रही हो. गंगम्मा जात्रा को लेकर चित्तूर और तिरुपति में अलग-अलग मान्यताऐं चलती हैं. बताया जाता है कि बहुत सालों पहले चित्तूर में एक जानलेवा महामारी फैली थी. लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. ऐसे में गांव के मुखिया ने एक उपाय सुझाया. कि पूरे गांव को हल्दी के पानी और नीम से पवित्र किया जाए. चित्तूर में होने वाली ‘गंगम्मा जात्रा’ का जन्म इसी तरह हुआ. 

वहीं तिरुपति में मनाए जाने वाली ‘गंगम्मा जात्रा’ की कहानी बिल्कुल विपरीत है. लोग मानते हैं कि किसी जमाने में तिरुपति और आसपास के इलाकों पर ‘पलेगोंडलू’ नाम का आदमी राज करता था. एकदम दुष्ट, दुराचारी किस्म का आदमी. महिलाओं पर अत्याचार करता, उनके साथ दुर्व्यवहार करता. ऐसे समय में ‘अविलल’ नाम के एक गांव में देवी का जन्म हुआ. उसने उनके साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की. देवी ने बदले में उस पर हमला कर दिया. लेकिन वो बच निकला. जाकर किसी अज्ञात स्थान में छुप गया. 

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