झारखंड में नक्सलियों को ट्रेनिंग देने के लिए आतंकी संगठन पीएलए और माओवादियों के बीच हुई थी बैठक

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राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच में आतंकी संगठन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और भाकपा माओवादी के बीच सांठगांठ का खुलासा हुआ है. झारखंड में नक्सली संगठनों के सदस्यों को ट्रेनिंग देने के लिए पीएलए और भाकपा माओवादी के बीच एक बैठक भी आयोजित की गयी थी. जांच के दौरान यह भी सामने आया कि आतंकी संगठन पीएलए के अध्यक्ष ने भी सीपीआई (माओवादी) के महासचिव को 6 अप्रैल, 2010 को सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए बधाई दी थी. इस घटना में छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गये थे.जांच से यह भी पता चला कि पीएलए ने माओवादी कैडरों को रसद सहायता प्रदान की थी. दोनों संगठन नियमित रूप से संचार और ई- मेल का आदान- प्रदान कर रहे थे.

पीएलए ने माओवादियों के समर्थन से देश को अस्थिर करने की साजिश रची थी

एनआईए जांच में खुलासा हुआ है कि पीएलए ने भाकपा माओवादियों के समर्थन से देश को अस्थिर करने की साजिश रची थी. जांच से पता चला कि आतंकी संगठन पीएलए ने कोलकाता में एक संपर्क कार्यालय स्थापित किया था. जहां कई दौर की बैठक भी हुई थी. भाकपा माओवादी संगठन के नेता ने संघ के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए एकीकृत कार्रवाई करने के लिए बैठक में तौर- तरीकों पर चर्चा की थी. गौरतलब है कि एनआईए की विशेष अदालत ने असम के 12 साल पुराने पीएलए-माओवादी सांठगांठ मामले में दो माओवादियों को पांच से आठ साल की जेल की सजा सुनाई है.

पीएलए आतंकी संगठन में 4000 लड़ाके शामिल

पीएलए आतंकी संगठन मणिपुर के चार क्षेत्रों में सक्रिय हैं और इस संगठन में करीब 4000 लड़ाके शामिल हैं.मणिपुर को एक अलग देश बनाने की इस संगठन की प्रमुख मांग है. पीएलए अपनी स्थापना के वक्त से ही अर्धसैनिक बलों, भारतीय सेना और राज्य की पुलिस को निशाना बनाता आया है. 1990 के दशक में इसने राज्य पुलिस के जवानों को नुकसान नहीं करने की घोषणा की थी, फिर साल 1982 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रमुख थॉडम कुंजबेहारी की मौत और 1981 में एन बिशेश्वर सिंह के अरेस्ट होने के बाद यह संगठन थोड़ा कमजोर भी पड़ गया था, लेकिन उस बाद साल 1989 में संगठन ने अपना एक राजनीतिक फ्रंट बना लिया, जिसका नाम उन्होंने रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) रख लिया.

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