1936 के बर्लिन ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में इस खेल को प्रतिस्पर्धा खेल के रूप में लाया गया. कयाकिंग और कैनोइंग वाटर गेम है. इस खेल में एक बोट के माध्यम से पानी के बीच में चप्पू चलाते हुए प्रतियोगिता होती है. इसमें सामान्य बोट की तरह ही एक बोट होती है, जिसमें खिलाड़ी कैनोइंग में घुटने के बल बैठा होता है और चप्पू को चलाता है. इस खले में इस्तेमाल होने वाली बोट की कीमत न्यूनतम 1-2 लाख रुपय के बीच होती है.
झारखंड में कयाकिंग और कैनोइंग 2009 से ही है शुरू
2009 से झारखंड में कयाकिंग और कैनोइंग हो रहा है. इसमें लगभग 50 बच्चे ट्रेनिंग ले रहे हैं. धनबाद के मैथन डैम और गिरिडीह के खंडोली डैम में ट्रेनिंग और प्रतियोगिता आयोजित कराई जाती है. जून-जुलाई के महीने में इसके लिए समर ट्रेनिंग शुरू होगी. धनबाद, गिरिडीह,दुमका, रांची और जमशेदपुर के अधिकतर खिलाड़ी इस खेल की ट्रेनिंग ले रहे हैं. झारखंड कयाकिंग और कैनोइंग के अध्यक्ष एस एम हाशमी हैं. जबकि सचिव मो. जूबेर और कोषाध्यक्ष नवल प्रसाद हैं.
बाहर से कोच लाकर करायेंगे ट्रेनिंग – अध्यक्ष
इस खेल को झारखंड में बढ़ावा देने के संबंध में अध्यक्ष ने कहा, भविष्य में नेशनल कराने की उम्मीद है. एक गेम कराने में लगभग 50 लाख का खर्च आता है और इस खेल के लिए स्पॉन्सर भी नहीं मिलता है. अभी हम झारखंड में इस खेल के प्रचार में लगे हैं और जून-जुलाई में फ्री समर कैंप भी आयोजित करेंगे, जिसमें बच्चों को इस खेल की ट्रेनिंग दी जाएगी. बेहतर ट्रेनिंग और अच्छे खिलाड़ी बनाने के लिए हम बाहर से कोच भी ला रहे हैं.