रांची। भाजपा के लंबे समय तक शासन वाले गुजरात राज्य के चर्चित केसों में से एक बिलकिस बानो केस सभी को याद ही होगा। इस केस में दोषियों के रिहाई के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। गुजरात सरकार के इस निर्णय को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए पूछा है कि दोषियों को मौत की सजा के बाद वाला दंड यानी उम्रकैद मिली थी। ऐसे में सभी दोषी 14 साल की सजा काट कर कैसे रिहा हुए? 14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत बाकी कैदियों को क्यों नहीं मिली? ऐसा पक्षपात रवैया क्यों? माना ऐसा जाता है कि जिन 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने रिहाई करने का आदेश दिया था, वे सभी भाजपा विचारधारा से प्रभावित थे।
हेमंत सरकार में कैदियों के रिहाई में जाति, धर्म, समुदाय या किसी विचारधारा को ध्यान नहीं रखा।
दूसरी तरफ झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार भी उम्र कैद सजा पाए कई कैदियों को रिहा कर रही है। हालांकि राज्य सरकार के इस निर्णय में किसी तरह का कोई पक्षपात रवैया नहीं दिखता। हेमंत सरकार के अभी तक के साढ़े तीन सालों में 250 से अधिक उम्र कैद पाए कैदियों की रिहाई का रास्ता साफ हुआ है। इस निर्णय में सरकार ने किसी तरह के जाति, धर्म, समुदाय या किसी विचारधारा को ध्यान नहीं रखा। ऐसे कैदियों में जो जरूरतमंद थे, सभी को इसका लाभ दिया गया है।
गुजरात विधानसभा से पहले छोड़ा गया ताकि राजनीतिक फायदा मिले। कमोवेश ऐसा हुआ भी।
सबसे पहले बात बिलकिस बानो केस की। केस में कई दोषियों को मौत की सजा के बाद वाला दंड यानी उम्रकैद मिली थी। इसमें से 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार के आदेश पर छोड़ा गया था। इसके खिलाफ पीड़िता ने नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। मामले की सुनवाई चल रही है। गुजरात सरकार के इस निर्णय को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए गुजरात सरकार से पूछा है कि 14 साल की सजा के बाद रिहाई की राहत बाकी कैदियों को क्यों नहीं मिली? बता दें कि रिहाई हुए सभी दोषी सीधे-सीधे भाजपा से जुड़े हुए थे। यही कारण है कि इन्हें गुजरात विधानसभा से पहले छोड़ा गया ताकि इसका राजनीतिक फायदा मिले। कमोवेश ऐसा हुआ भी।
साढ़े तीन सालों में 250 से अधिक कैदियों के रिहाई का हुआ रास्ता साफ।
मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में कई बार झारखंड राज्य सजा पुनरीक्षण परिषद की बैठक हुई। बैठक में उम्र कैद पाए कई कैदियों के रिहाई का रास्ता साफ हुआ है। इन साढ़े तीनों में यह संख्या 250 से भी अधिक हो गयी है।
जनवरी 2020- मुख्यमंत्री बनते हुए हेमंत सोरेन ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे 139 कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया। विधानसभा चुनाव के कारण कैदियों की रिहाई संभव नहीं हो पा रही थी।
जुलाई 2020 – रसा मुंडा केंद्रीय कारा होटवार रांची समेत राज्य के अलग-अलग जेलों में बंद आजीवन कारावास के के 79 कैदियों को मुक्त करने का निर्णय।
मार्च 2023 – उम्रकैद की सजा काट रहे 24 कैदियों की रिहाई का फैसला
अगस्त 2023 – उम्र कैद की सजा पाए 28 कैदियों की रिहाई का फैसला।
रिहाई के आदेश में हेमंत सरकार ने बेहतर आचरण को रखा ध्यान न कि राजनीतिक लाभ को।
भाजपा शासन की तरह हेमंत सरकार में उम्र कैद पाए कैदियों की रिहाई में राजनीतिक लाभ नहीं देखा जाता है। हेमंत सोरेन का मानना है कि आजीवन कारावास की सजा पाये बंदियों जिनकी लंबी सजा अवधि बीत गयी है और कारागार में बेहतर आचरण है, उनके उम्र और उनके किये गये अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखकर फैसला लिया जाए। हेमंत की सोच है कि अपराधी के जीवन में समाज हित में बदलाव लाना ही सजा का ध्येय होता है।
दोषियों को रिहा करने की सिफारिश करने वाली सलाहकार समिति में भाजपा कार्यकर्त्ता भी थे।
बिलकिस बानो केस में 11 दोषियों को रिहा करने की सिफारिश करने वाली गुजरात सरकार की सलाहकार समिति के 10 सदस्यों में पांच का संबंध भाजपा से है। इसी सिफारिश के आधार पर सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषियों को राज्य की पुरानी रेमिशन पॉलिसी यानि छूट नीति के तहत स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जेल से रिहा किया गया था। एक आधिकारिक दस्तावेज से पता चलता है कि सलाहकार समिति के सदस्यों की लिस्ट में बीजेपी के दो विधायक, पार्टी की राज्य कार्यकारिणी समिति के एक सदस्य और दो अन्य भाजपा के नेता शामिल हैं।