पूरे राज्य में डेंगू और चिकनगुनिया का प्रसार तेजी से हो रहा है. अबतक झारखंड में डेंगू के 1111, जबकि चिकनगुनिया के 271 मरीज मिले हैं. बुधवार को राज्य भर में डेंगू के 43 नए मरीज मिले, इनमें सबसे ज्यादा 18 रामगढ़ में मिले हैं. वहीं चिकनगुनिया के भी चार मरीजों की पुष्टि हुई है. ये सभी मरीज राजधानी रांची के हैं. डेंगू के मरीजों की संख्या बढ़ने के साथ ही साथ सिंगल डोनर प्लेटलेट्स की मांग बढ़ गयी है. बता दें की मिल रहे मरीजों के मुकाबले सिर्फ 10 से 15 फीसदी मरीजों को ही प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ रही है. वैसे मरीज जिनका प्लेटलेट्स 20 हजार से कम हो रहा है, उन्हें प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता पड़ रही है. इसमें भी बीमारी की गंभीरता को देखते हुए चिकित्सक प्लेटलेट्स चढ़ाने को लेकर निर्णय ले रहे हैं. डेंगू पीड़ित मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाने को लेकर मरीज से लेकर उसके परिजन तक परेशान हो रहे हैं. जिन मरीजां को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं, उनके परिजन भी बेवजह परेशान हो रहे हैं. ऐसे में चिकित्सकों ने मरीजों को सलाह दी है.
प्लेटलेट्स चढ़ाने के लिए मरीज हड़बड़ाए नहीं, डॉक्टर की सलाह लें : डॉ बी कुमार
रिम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ बी कुमार ने कहा कि प्लेटलेट्स चढ़ाने को लेकर मरीज जल्दबाजी नहीं करें. डेंगू के कई मामले में देखा गया है कि ब्लड काउंट 50 हजार से 1 लाख तक भी है और मरीज को मसूड़े से खून आ रहा है, शरीर में लाल चकता, खांसी, पेशाब, मल से खून आ रहा है, तो उस स्थिति में प्लेटलेट्स की आवश्यकता पड़ती है. जबकि मरीज का ब्लड काउंट 10 हजार भी हो जाए और शरीर से ब्लड नहीं आ रहा है, तो प्लेटलेट्स की जरूरत नहीं पड़ती है. डॉ कुमार ने कहा कि डेंगू के इलाज के लिए पारासिटामोल और स्लाइन (आईवी फ्लूड) चढ़ाया जा रहा है. मरीज को तले, भुने और मसालेदार भोजन से परहेज करने की सलाह दी ज रही है.
सिंगल डोनर प्लेटलेट्स की मांग कुछ ज्यादा ही बढ़ी है : डॉ चंद्रभूषण
रिम्स ब्लड बैंक के सीनियर रेसिडेंट डॉ चंद्रभूषण ने कहा कि डॉक्टर पर कभी भी प्लेटलेट्स देने का दबाव न डालें. प्लेटलेट्स देना है या नहीं, ये निर्णय डॉक्टर को ही करने दें. प्लेटलेट्स ट्रांस्फ्यूजन दो तरह से होता है. इनमें से एक है सिंगल डोनर प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन. इसमें एक ही व्यक्ति से सभी प्लेटलेट्स मिल जाती है.दूसरा रैंडम प्लेटलेट डोनर, इसमें कई डोनर्स जिनके ब्लड ग्रुप भी अलग-अलग हो सकते हैं, उनमें से थोड़ा-थोड़ा प्लेटलेट्स मिल जाता है. रक्त में प्लेटलेट्स के कम होने का मतलब है कि या तो शरीर में प्लेटलेट्स कम बन रहा है या फिर ठीक मात्रा में बनने के बावजूद किसी कारण से नष्ट हो जा रहा है. कई बार प्लेटलेट्स खत्म होने की बीमारी भी हो सकती है. ऐसे में प्लेटलेट्स बनते तो हैं, लेकिन हमारा शरीर ही इन्हें लगातार नष्ट करता रहता है. ऐसी बीमारी को इडियोपैथिक थोम्बोसाइटोपीनिया कहा जाता है. रिम्स ब्लड बैंक में पहले सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) की मांग हफ्तेभर में 1-2 यूनिट की आती थी, लेकिन इन दिनों 5-6 यूनिट एसडीपी की मांग आ रही है, लेकिन सप्लाई प्रभावित होने के कारण 2-3 मरीजों को प्लेटलेट्स मिल पा रहा है.