कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक ने केंद्र सरकार पर जमकर भड़ास निकाली. कहा कि संसद के स्पेशल सत्र में पारित महिला आरक्षण 2039 से पहले लागू नहीं हो सकता. यह बिल पूरी तरह से मोदी सरकार का चुनावी जुमला भर है. आईवाश है. 2014 के चुनाव में भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का एक प्रमुख वादा था. मगर 9 साल बीत जाने और सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र के बाद और इंडिया गठबंधन से घबराहट के बाद आनन-फानन में यह बिल लाया गया. मगर यह बिल में ऐसे कंडीशन हैं जिसके चलते यह 2039 में ही लागू हो पाएगा. राष्ट्रीय जनगणना अब 2026 में शुरू होगा. जिसमें 3-4 साल लगेंगे. फाइलन डाटा आते-आते और समय लगेगा. इसके बाद परिसीमन लागू किया जाएगा. जिसमें काफी वक्त लग जाएगा. यानि वर्तमान स्वरूप में इसे लागू होते-होते 2039 आ जाएगा. इसलिए यह बिल केवल और केवल आईवाश है. महिलाओें की भावना और अधिकार के साथ केवल खिलवाड़ भर है.
रागिनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर यह एक बात सच साबित हो रही है. 2014 से केवल वादा और वादा करते आए हैं. महंगाई घटेगी, पेट्रोल-डीजल 40 रुपएयेबिकेगा. गैस के दाम घटेंगे. हर वर्ष एक करोड़ लोगों को रोजगार-नौकरी देंगे. काला धन लाएंगे. जनता के खाते में 2-2 लाख देंगे. कोई वादा पूरा नहीं हुआ. अब यही बात महिला आरक्षण बिल को लेकर भी उन्होंने कर दिखाया. मतलब साफ है मोदी रीत सदा चली आई, जो कहे कभी नहीं निभाई. यह बातें रागिनी नायक ने प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कही. इस मौके पर प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, विधायक शिल्पी नेहा तिर्की सहित कई पदाधिकारी उपस्थित थे.
1989 में लोकसभा से बिल चार वोट से भाजपा के सांसदों के कारण पास नहीं हो सका
रागिनी नायक ने कहा कि पंडित नेहरू एवं महात्मा गांधी की विचाराधरा थी कि महिलाओं को समान अधिकार मिले. कांग्रेस ने देश को पहली महिला प्रधानमंत्री, पहली राष्ट्रपति, पहली लोकसभा अध्यक्ष सहित कई जगहों पर सम्मान देने का काम किया. 1989 में कांग्रेस ने पहली बार महिला आरक्षण बिल लाया. मगर भाजपा के चार संसद अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण अडवाणी, यशवंत सिन्हा और रामजेठमलानी के कारण लोकसभा में पास नहीं हो सका. ये विरोध में वोटिंग किया. 2010 में फिर यूपीए की सरकार ने इसे लाया. मगर राज्यसभा से पास नहीं हो सका. तब से यह बिल लंबित रहा. कांग्रेस ने कहा कि इसे ही फिर से पास कराया जाए. 2016 में सोनिया गांधी और 2018 में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा. मगर ऐसा करके इंडिया गठबंधन के डर से हड़बड़ी में इसे लाया गया. इसमें कई तरह की त्रुटियां हैं. इसमें केंद्र शासित राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर, पांडेचरी आदि को शामिल नहीं किया गया है. इसी तरह इसमें ओबीसी कोटा को भी शामिल नहीं किया गया है.
आरएसएस विचारधारा वाली पार्टी कभी नहीं दे सकती है महिलाओं को समान अधिकार
रागिनी नायक ने कहा कि जिस आरएसएस में एक सरसंचालक महिला नहीं बनी और न कभी बन सकती है, वह विचाधारा वाली पार्टी कभी भी महिलाओं को उनके अधिकार नहीं दे सकती है. इसका बड़ा उदारहण इस बिल में दिख गया. अगर ऐसा होता तो वह इस बिल को कंडीशन में बांध नहीं सकती थी. भाजपा को उम्मीद है कि अपने 2014 से किए गए वादों की तरह कहीं महिला जो उन्होंने वोट किया, महंगाई के कारण महिलाएं त्रस्त हैं. इंडिया गठबंधन कहीं जीत न जाए, इस डर से मोदी सरकार ने महिलाओं को झुनझुना थमा दिया.