हजारीबाग के इचाक प्रखंड के डाड़ीघाघर गांव में मूलभूत सुविधा भी नहीं से संबंधित खबर आठ जून को ”शुभम संदेश” ने बड़ी प्रमुखता से साथ प्रकाशित की थी. अब इस गांव से जो तस्वीर सामने आयी, वह हमारे समाज को सोचने पर मजबूर कर देगी. गांव की एक महिला को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला. प्रसव पीड़ा से कराह रही महिला 4 किमी पैदल चली, तब जाकर उसे एंबुलेंस मिला. जिसके बाद वह अस्पताल पहुंची. इस दर्द भरे सफर के बीच सुखद खबर यह रही कि प्रसव बेहतर ढंग से हुआ और जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ है.
जिला मुख्यालय से महज 20 किमी दूर स्थित गांव में एक सड़क तक नहीं
जिस शहर में मोबाइल के एक क्लिक से आपके दरवाजे पर हर सुविधा उपलब्ध हो जाती हो, उसी शहर से महज 20 किमी दूर स्थित एक गांव में एक सड़क तक नहीं है. जी हां हम बात कर रहे हैं हजारीबाग जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर इचाक प्रखंड के डाड़ीघाघर में स्थित पुरनपुनिया गांव की. इस गांव में मूलभूत सुविधा का अभाव है. गांव में पक्की तो छोड़ दीजिए आवागमन के लिए एक कच्ची सड़क तक नहीं है. गांव में न बिजली, न पानी की सुविधा है. गांव में अगर कोई बीमार पड़ जाए तो भगवान भरोसे ही रात कटती है. सड़क नहीं होने की वजह से एक तस्वीर जो सामने आई, वह काफी हैरान और परेशान करने वाली है. शुक्रवार को गांव की एक महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. गांव तक एंबुलेंस आने की सुविधा ही नहीं है. ऐसे में प्रसव पीड़ा से कराह रही महिला पैदल ही चिलचिलाती धूप में गांव की कुछ महिलाओं और पुरुषों के साथ निकल पड़ी. करीब 4 किमी पैदल चलने के बाद तिलैया-पुरनपुनिया चौक पर सहिया ने एंबुलेंस बुलाया, जिससे महिला को अस्पताल ले जाया गया.
इस गांव में शादी होने का है मलाल : सविता मरांडी
गांव की सविता मरांडी बताती हैं कि गांव में सड़क नहीं होने के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उसी गांव में उसकी शादी हुई है. लेकिन आज इस बात का बेहद दुख है कि उसके घर वालों ने इस गांव में उसके हाथ पीला कर दिये. यहां आने-जाने के लिए सड़क ही नहीं है. अगर कोई बीमार पड़ गया, तो भगवान भरोसे ही रात कटती है.
यह पहली घटना नहीं : बाबूराम मरांडी
गांव के बाबूराम मरांडी का कहना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है. गांव में लोग बीमार पड़ते हैं तो ऐसी ही परेशानी झेलनी पड़ती है. गांव के लोगों ने कई बार सड़क बनाने की मांग की है, लेकिन सिर्फ आश्वासन दिया गया, सड़क नहीं बनी.
गांव की तकदीर ही खराब है : महेश मांझी
महेश मांझी कहते हैं कि इस गांव की तकदीर ही खराब है. पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि कभी बरसात में गांव में पहुंचें, तो समझ में आएगा कि किस तरह से यहां लोग जी रहे हैं. मजदूरी करने वाले उन लोगों को आने-जाने में काफी फजीहत होती है. अगर कोई बीमार पड़ गया, तब तो सब ऊपर वाले के हाथ में है. ग्रामीणों ने फिर से सरकार और प्रशासन से मांग की है कि आने-जाने के लिए पक्की सड़क नहीं दी जा सकती, तो कच्ची सड़क ही बनवा दे.