रामगढ़ उपचुनाव बीजेपी, आजसू के लिए एक टेस्ट होने जा रहा क्योंकि 2024 के आम चुनाव से पहले यह आखिरी जनमत संग्रह होने की संभावना है. झारखंड के निर्माण के बाद से, यह सीट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास रही है जिसमें से एक बार बीजेपी के पास और तीन बार उसकी सहयोगी आजसू पार्टी के पास रही है. आजसू पार्टी के दिग्गज, चंद्र प्रकाश चौधरी ने 2005 से तीन बार रामगढ़ सीट का प्रतिनिधित्व किया और 2019 में गिरिडीह सीट से संसद सदस्य चुने जाने के बाद ही सीट छोड़ी. रामगढ़ उपचुनाव के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां अपने अपना प्रचार प्रसार जोरों शोरों से कर रही है। इसी बीच कांग्रेस के प्रत्याशी बजरंग महतो का समर्थन करने आज मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और आजसू को जमकर घेरा है। उन्होंने भाजपा पर जमकर निशाना साधा है और कहा है कि यह चुनाव भी हम ही जीतेंगे। इस दौरान उन्होंने कहा कि झारखंडियों को उनकी ताकत का एससास दिलाना पड़ता है। डबल इंजन की सरकार तब यह लोग भी नेता थे, ये आजसू के लोग भी मंत्री बनकर बैठे हुए थे। उस समय से लेकर आज तक 11 उपचुनाव हुए। 2015 से लेकर आज तक। डबल इंजन की सरकार में भी उपचुनाव हुआ। अभी हमारी सरकार में भी चार उपचुनाव हुआ। 11 उपचुनाव में हम 10 उपचुनाव जीते हैं और वह लोग एक वो भी गोड्डा का उप चुनाव जीता है। मैं तो दावा के साथ कहता हूं कि ये रामगढ़ उपचुनाव भी हम ही जीतेंगे। मैं आपको 200% कह देता हूं कि आप लोग लिख लीजिए इस बार बजरंग महतो भारी से भारी मतों से जीत दर्ज करेंगे। यह ठेकेदारों का पार्टी, व्यापारियों का पार्टी, शोषण करने वाला आदिवासियों का दलितों का पिछड़ों का पार्टी।बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री हैं। उनका जनाधार भी है। लेकिन उनकी चुनावी किस्मत चढ़ाव उतार वाली रही है। 2014 में उनके दल झारखंड विकास मोर्चा के 8 विधायक जीते थे लेकिन वो खुद चुनाव हार गये थे। हैरानी बात ये थी कि उन्होंने दो जगहों से चुनाव लड़ा था और दोनों जगहों पर हार गये थे। धनवार सीट पर बाबूलाल को भाकपा माले के राज कुमार यादव ने करीब 11 हजार वोटों से हरा दिया था। गिरिडीह सीट पर बाबूलाल को करारी हार का सामना करना पड़ा था। वे तीसरे स्थान पर जा फिसले थे। इस सीट भाजपा के निर्भय शहाबादी ने झामुमो के सुदिव्य कुमार को हराया था। 2019 में बाबूलाल फिर धनवार सीट से खड़े हुए हैं। उन्होंने नामाकंन भी कर दिया है। धनवार विधानसभा क्षेत्र में ही मरांडी का पैतृक घर है। इस लिए उन्होंने इस सीट पर विश्वास बनाये रखा है। 2014 के चुनाव में जामा से शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन जीती थीं। सीता सोरेन शिबू सोरेन के बड़े पुत्र दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं। सुदेश महतो ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानी आजसू के अध्यक्ष हैं। 2014 में 5 सीटें जीत कर उनकी पार्टी रघुवर सरकार में साझीदार थी लेकिन सुदेश खुद सिल्ली से चुनाव हार गये थे। वे किंगमेकर तो बने लेकिन निजी तौर पर सत्ता का स्वाद नहीं ले सके। 2018 में जब सिल्ली में उपचुनाव हुआ तो सुदेश फिर हार गये। दो चुनावी हार से सुदेश महतो की राजनीति साख को बहुत झटका लगा। उन्होंने पार्टी में नयी जान फूंकने के लिए भाजपा से राह जुदा कर ली। 2019 का विधानसभा चुनाव वे भाजपा के खिलाफ लड़े। सिल्ली से सुदेश महतो 3 बार विधायक रहे हैं। उन्होंने पहली बार यहां 2000 में जीत हासिल की थी। वे 26 साल की उम्र में ही विधायक बन गये थे। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा राजनीतिक अस्थिरता के बीच अपना एजेंडा काफी तेजी से आगे बढ़ा रही है। इसमें स्थानीय नीति भी अहम है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान 1932 आधारित खतियान को स्थानीयता का आधार मानने पर जोर दिया था। मंशा साफ है कि राज्य में वही स्थानीय माना जाएगा जो वर्ष 1932 के सर्वेक्षण के दौरान भूमि के स्वामी थे। रामगढ़ की जनता और झारखंड की जनता को वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर विश्वास है