दरअसल, 4 अक्टूबर को गुजरात हाई कोर्ट ने आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ अदालत की अवमानना करने के तहत आरोप तय किए थे. आरोपियों को अपने बचाव में हलफनामा दायर करने के लिए 11 अक्टूबर तक का समय दिया गया.
आरोपी पुलिसवालों की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट प्रकाश जानी ने हाई कोर्ट में कहा कि अगर पुलिसवाले दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें दंडित ना किया जाए बल्कि शिकायतकर्ताओं को मुआवजा दे दिया जाए. सीनियर एडवोकेट जानी ने जस्टिस AS सुपेहिया और गीता गोपी की पीठ के सामने दलील दी कि पुलिसकर्मियों ने सेवा के लिए 10-15 साल समर्पित किए हैं और इस वक्त दोषी ठहराने और सजा देने से उनके पेशेवर रिकॉर्ड पर असर पड़ेगा. उन्होंने आगे कहा कि लोगों के कूल्हों पर डंडे से मारना हिरासत में यातना नहीं माना जाना चाहिए.
दलील को ध्यान में रखते हुए अदालत ने पुलिसकर्मियों की इस याचिका पर शिकायतकर्ताओं से जवाब मांगा और मामले को 16 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया.
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चार आरोपी पुलिसकर्मियों की पहचान स्थानीय अपराध शाखा इंस्पेक्टर AV परमार, सब-इंस्पेक्टर DB कुमावत, हेड कांस्टेबल कनक सिंह लक्ष्मण सिंह और कांस्टेबल रमेशभाई डाभी के तौर पर हुई. उन पर डी. के. बासु बनाम बंगाल सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के आरोप हैं. इसमें सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया था कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए.
खेड़ा जिले में क्या हुआ था?
पिछले साल 3 अक्टूबर की रात खेड़ा जिले के उंधेला गांव में गरबा कार्यक्रम के दौरान पत्थरबाजी हुई थी. खेड़ा पुलिस ने इस मामले में 9 लोगों को हिरासत में लिया थआ. कुछ दिन बाद आरोपियों की पिटाई के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए. उनमें पुलिस वाले आरोपियों को लाठी से पीटते दिखे. पुलिस की पिटाई पर गांव के लोग जश्न मनाते और ‘गुजरात पुलिस जिंदाबाद’ के नारे लगाते दिखे.
इस मामले में एक पीड़ित परिवार के 5 लोगों ने गुजरात हाई कोर्ट में चारों पुलिसवालों के खिलाफ याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में इस मामले पर राज्य सरकार से जवाब मांगा था.