2024 से पहले सुनियोजित तरीके से ओबीसी वोट बैंक साधने की कोशिश में मोदी सरकार, जबकि हेमंत सरकार तो उन्हें उनका वास्तविक हक दिलाना चाहती थी!

राज-नीति
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OBC सब कैटेगरी पर 6 साल बाद लाया गया रोहिणी आयोग रिपोर्ट

तय मानिए कर्नाटक के समान ही 2024 में भी भाजपा को नहीं होने जा रहा कोई लाभ!

ओबीसी आरक्षण बढ़ाने के कर्नाटक के तत्कालीन भाजपा सरकार ने विधेयक पेश किया तो राज्यपाल ने अनुमति दी, झारखंड और छतीसगढ़ की पहल पर लगाया रोड़ा.

रांची।

2024 लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा ओबीसी वर्ग को पूरी तरह से साधने की कोशिश में है। इसके लिए मोदी सरकार ने रोहिणी आयोग रिपोर्ट का सहारा लिया है। यह रिपोर्ट ओबीसी वर्ग के आरक्षण से संबंधित है। रिपोर्ट 6 साल के बाद ऐसे समय पेश की गई है जब ओबीसी वर्ग मोदी सरकार की हकीकत को पूरी तरह समझ चुका है। दूसरी तरफ जब गैर भाजपा शासित राज्य झारखंड ने ओबीसी वर्ग को उनका हक दिलाने का प्रयास किया था तो भाजपा ने साजिश कर राजभवन के द्वारा इस प्रयास को पूरी तरह विफल कर दिया।

*बात सबसे पहले रोहिणी आयोग रिपोर्ट की।*

दरअसल अन्य पिछड़ा वर्ग की सब-कैटेगरी पर गौर करने के लिए बने आयोग ने बीते सोमवार को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। ओबीसी के उप वर्गीकरण (सब-कैटेगरी) के परीक्षण के लिए अक्टूबर, 2017 की एक अधिसूचना के मार्फत अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए यह आयोग गठित किया गया था। दिल्ली उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी इस आयोग की अध्यक्ष हैं। उनके नाम के चलते ही इसे रोहिणी आयोग कहा जाता है। रोहिणी आयोग से ओबीसी जातियों के बीच 27 प्रतिशत ओबीसी कोटा को समान रूप से विभाजित करने की सिफारिश करने के लिए भी कहा गया था।

*झारखंड और छत्तीसगढ़ ने ओबीसी वर्ग के हक और अधिकार को पूरा करने का प्रयास किया, भाजपा साजिश के तहत बनी रूकावट।*

अब बात मोदी सरकार की साजिश की। मोदी सरकार ओबीसी वर्ग के आरक्षण को विभाजन करने की पहल तो कर रही है, लेकिन गैर बीजेपी शासित राज्य झारखंड और छत्तीसगढ़ के ओबीसी वर्ग के हक और अधिकार को पूरा करने का प्रयास कर रही थी तो भाजपा ने एक साजिश के तहत इसमें रूकावट बनने का काम किया। सभी जानते हैं कि झारखंड छत्तीसगढ़ के साथ तत्कालीन भाजपा शासित कर्नाटक राज्य ने अपने- अपने विधानसभाओं से सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर विधेयक पेश किया था। ये सभी विधेयक इस मामले में समान थे कि सभी में एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ऊपर की गई थी।

1. कर्नाटक सरकार ने विधानसभा में विधेयक पेश किया था, उसमें एससी और एसटी कोटा बढ़ाने का प्रस्ताव था। इसमें एससी आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और एसटी आरक्षण 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया। कर्नाटक के राज्यपाल ने इसकी अनुमति दे दी।

2. झारखंड विधानसभा ने भी सर्वसम्मति से विधेयक पारित करके राज्य में कुल आरक्षण 77 प्रतिशत करने की दिशा में कदम उठाया। राज्य के ओबीसी मांग कर रहे थे कि 14 प्रतिशत कोटा उनके लिए बहुत कम है। हेमंत सोरेन सरकार ने इस समस्या का हल विधेयक के जरिए प्रस्तुत किया। विधेयक के कानून बनने से राज्य में एसटी आरक्षण 26 प्रतिशत से बढ़कर 28 प्रतिशत, ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़कर 27 प्रतिशत और एससी आरक्षण 10 प्रतिशत से बढ़कर 12 प्रतिशत किया जाता। लेकिन भाजपा ने एक साजिश के तहत राजभवन में विधेयक को लौटा दिया।

3 – इसी तरह छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने भी आरक्षण का गणित बदलने और उसे आबादी के अनुपात के आसपास ले जाने की कोशिश की, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उईके ने इन्हें मंजूरी नहीं दी।

तय मानिए, 2024 में भाजपा का हश्र कर्नाटक चुनाव जैसा होगा।

ओबीसी वर्ग को खुश करने की मोदी सरकार ने भले ही एक कोशिश की हो, लेकिन तय मानिए कि जिस तरह कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी वर्ग के लिए फैसले का भाजपा को कोई फायदा नहीं मिला, उसी तरह 2024 लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को भी कोई फायदा नहीं होगा।

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