खनन विभाग की बड़ी कार्रवाई, 142 कंपनियों का कोल लिंकेज रद्द

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Hazaribagh : खनन विभाग ने झारखंड की 142 कंपनियों का कोल लिंकेज रद्द कर दिया है. कोल लिंकेज मामले में झारखंड सरकार के खनन विभाग की यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई बताई जा रही है. इसके अलावा कंपनी की ओर से कोयला लेने के लिए अग्रिम राशि झारखंड राज्य खनिज विकास निगम को वापस करने का आदेश भी दिया गया है. इन 142 कंपनियों में कई फर्जी कंपनियां भी शामिल होने के सबूत मिले हैं. कुछ कंपनियां सिर्फ कागजों में ही चलाई जा रही थीं. हजारीबाग के कोयला कारोबारी इजहार अंसारी की 13 शेल कंपनियां इसमें शामिल हैं. राज्य सरकार की अनुशंसा पर इजहार अंसारी को 13 शेल कंपनियां कोल इंडिया ने आवंटित की थीं. इजहार ने लघु एवं मध्यम उद्योग के नाम पर मिल रहे कोल लिंकेज का सस्ता कोयला बनारस की मंडियों में बेचा. ईडी ने इसके सबूत मिलने का दावा किया है.

सुमन कुमार उपलब्ध कराता है इजहार अंसारी को कोयला

यह भी कहा जा रहा है कि इजहार अंसारी को कोल लिंकेज का कोयला दिलवाने में किसी सुमन कुमार की अहम भूमिका है. बिजली बिल से यह साबित होता है कि फैक्ट्री कई साल से बंद पड़ी थी लेकिन उसके नाम पर कोयला उठाया जा रहा था. इसे लेकर ईडी ने 3 मार्च 2023 को इजहार के आवास पर छापेमारी की थी. वहां से लगभग 10 करोड़ रुपये मिलने का दावा भी किया गया था. लगभग 18 से 19 घंटे तक छापेमारी चली थी. इस मामले में किसी ने भी हजारीबाग में बयान नहीं दिया था. वहीं, वर्ष 2021-22 में 2209.08 मीट्रिक टन कोयला लिंकेज मिला है.

कारोबारी अभय सिंह भी भेजे जा चुके हैं जेल

कोल लिंकेज गड़बड़ी को लेकर दो दिन पहले हजारीबाग के व्यवसायी अभय सिंह को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. अभय सिंह की डेमोटांड़ में आधा दर्जन से अधिक फैक्ट्रियां हैं. उन पर आरोप है कि कोल लिंकेज को लेकर कारखाना में कोयला सरकार और जिला प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराया जाता था. लेकिन कोयला फैक्ट्री में उपयोग में न लाकर, उसे महंगे दामों पर बाजार में बेच दिया जाता था. उनकी फैक्ट्री से भारी मात्रा में डंप कोयला भी पाया गया.

कोल लिंकेज को लेकर कार्रवाई का दौर जारी

पूरे झारखंड में कोल लिंकेज को लेकर कार्रवाई चल रही है. जिला प्रशासन से लेकर ईडी तक छापेमारी कर रही है. इसमें कोल माफिया गिरफ्तार भी हो रहे हैं. ईडी ने लोगों को समन भी जारी किया है.

जानिए क्या है कोल लिंकेज

वर्ष 2007 में एक कोयला नीति बनाई गई. इसके तहत जिन एमएसएमई उद्योगों को अपना कारखाना चलाने के लिए कोयले की आवश्यकता होती है उन्हें कोयला उपलब्ध कराने के लिए कोल लिंकेज का प्रावधान किया गया. खपत के अनुसार कोल कंपनी कोयला उपलब्ध कराती है. इसके लिए जिला प्रशासन से लेकर विभाग तक अनुमति लेनी होती है. बाजार मूल्य से कम मूल्य पर कोयला कंपनी को उपलब्ध कराया जाता है. इसे कोल लिंकेज कहते हैं. इसके लिए बीसीसीएल, सीसीएल, ईसीएल विभिन्न उद्योगों को कोयला उपलब्ध करा रही हैं.

जिला प्रशासन पर भी उठ रहे सवाल

कोल लिंकेज के खेल में जिला प्रशासन से लेकर मुख्यालय तक पर सवाल उठ रहे हैं. जिला प्रशासन की जिम्मेवारी है कि जिस फैक्ट्री को कोयला उपलब्ध कराया जाता है, उस पर नजर रखे. समय-समय पर जांच भी करे लेकिन कोयले का खेल बदस्तूर जारी है. इसका लाभ कोयला व्यवसायी तो उठाते ही हैं प्रशासन के बीच भी बड़ी रकम की बंदरबांट होती है. फर्जी कंपनी बनाकर कोल लिंकेज के नाम पर कोयला लिया जाता है. फिर उसे कोयला मंडी में बेच दिया जाता है.

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