संवैधानिक संस्थाओं पर हमला और कब्जा इसका सबूत, अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी भाजपा करना चाहती है डिक्टेट..
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न्यायालय देश के आदिवासी, दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों के लिए एकमात्र सहारा, मनमुताबिक निर्णय नहीं होने पर भाजपा के नेता बना रहे दबाव..
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भाजपा बर्खास्त करे अपने सांसद निशिकांत दुबे को, विभाजनकारी है इनकी सोच, झारखंड को भी बांटना चाहते, अब देश बांटने की साजिश रच रहे..
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न्यायपालिका को लेकर गोड्डा के भाजपा सांसद श्री निशिकांत दुबे के विरोधात्मक बयान लोकतंत्र विरोधी.. असल बात यह है कि भाजपा देश में मनुस्मृति लागू करना चाहती है। भाजपा को देश के संवैधानिक ढ़ांचे पर विश्वास ही नहीं है। चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर कब्जा किया जा चुका है। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भी इन्हें आपत्ति है। आखिरकार भाजपा इस देश को कहां ले जाना चाहती है ? भाजपा के नेताओं ने निशिकांत दुबे के बयान पर चुप्पी क्यों साध रखी है ? बात-बात पर बयान जारी करने वाले बाबूलाल मरांडी जी क्यों नहीं इसपर स्थिति स्पष्ट करते ? न्यायपालिका पर देश के गरीबों, दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों का अटूट भरोसा है। भाजपा अब अपने नेताओं के जरिए न्यायपालिका पर हमले करा रही है। ये मनमुताबिक निर्णय नहीं होने पर न्यायपालिका पर दबाव बना रहे हैं। भाजपा के सांसद पहले भी संथाल परगना को झारखंड से अलग करने की बातें कई बार कर चुके हैं। इनकी सोच विभाजनकारी है। भाजपा के नेताओं को अगर न्यायपालिका पर विश्वास है तो निशिकांत दुबे को अबिलंव बर्खास्त कर देना चाहिए। ऐसे नेताओं की सोच देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा भाजपा सांसद के बयान की घोर निंदा करता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा न्यायपालिका समेत अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जे की भाजपाई मनोवृति को किसी स्तर पर बर्दाश्त नहीं करेगा। भाजपा देश में हिन्दू-मुस्लिम का आरोप लगाकर नफरत पैदा करने के प्रयास में है। ये देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को समाप्त करना चाहते हैं। इनकी मंशा कभी सफल नहीं होगी। निशिकांत दुबे अपने मन से ऐसा नहीं बोल रहे हैं। इसके पीछे भाजपा और आरएसएस की विभाजनकारी सोच है। इनका देश के स्वतंत्रता संग्राम से कोई लेनादेना नहीं था। ये राष्ट्रीय ध्वज को भी अंगीकार नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट को भी सांसद के बयान पर संज्ञान लेकर इनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई करना चाहिए।
