झारखंड में अनुसूचित जाति व जनजाति के मुद्दे पर भाजपा का आरोप दोगलापन..

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◆ भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव द्वारा लगाए गए आरोपों को झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) सिरे से खारिज करती है, यह घोर राजनीतिक दोगलापन है। भाजपा को अनुसूचित जाति और आदिम जनजातियों की याद सिर्फ तब आती है जब वह विपक्ष में होती है। सत्ता में रहते हुए उन्होंने इन वर्गों के लिए क्या किया, यह पूरे राज्य को पता है।

◆ हेमंत सरकार आदिवासी, मूलवासी, दलित और पिछड़े वर्गों के हितों की सच्ची हितैषी है। सरकार की योजनाएं – जैसे ‘मरांग गोमके छात्रवृत्ति योजना’, ‘सिदो-कान्हू कृषि समृद्धि योजना’ और ‘फेलोशिप स्कीम’ – इन वर्गों को सशक्त बनाने की दिशा में प्रभावी कदम हैं। भाजपा का यह आरोप कि अनुसूचित जाति आयोग का गठन नहीं हुआ, सरासर भ्रामक है। सरकार इस दिशा में गंभीरता से काम कर रही है और जल्द ही आयोग का पुनर्गठन होगा।

◆ लोकतंत्र में हर मंत्री को राय रखने का अधिकार है, यही खासियत है मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन की, वह एक तरफा नहीं बल्कि पूरी संवेदनशीलता के साथ सभी की बातों को सुनने और राय लेने में यकीन रखते हैं। ये भाजपा की तानाशाह सरकार नहीं। भाजपा के किसी मंत्री को पीएम नरेंद्र मोदी जी को पत्र लिखने की आजादी है क्या ? या किसी भाजपा मंत्री ने पीएम मोदी जी को पत्र लिखा है क्या ? लेकिन भाजपा इसे मुद्दा बनाकर आदिवासी और दलित समाज को गुमराह करने की कोशिश कर रही है। भाजपा को नैतिकता की बात करने से पहले यह बताना चाहिए कि उसने अपने शासनकाल में कितने आदिवासी युवाओं को नौकरी दी, और उनके लिए विशेष योजनाएं क्यों ठप कर दी थीं।

◆ भाजपा आदिवासी-दलित हितैषी होने का नाटक कर रही है, जबकि उसकी असली नीति इन वर्गों को हाशिए पर धकेलने की रही है। झामुमो सरकार विकास और सामाजिक न्याय के रास्ते पर पूरी प्रतिबद्धता से चल रही है। और यही भाजपा को खल रहा है।

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