‘दीपक’ के साथ ही बुझ जाएगी भाजपा की कॉन्फिडेंशियल कार्यसमिति

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झारखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और उनकी कॉन्फिडेंशियल प्रदेश कार्यसमिति का कार्यकाल 25 फरवरी को खत्म होने जा रहा है. प्रदेश नेतृत्व ने तीन साल में कार्यसमिति सद्स्यों, विभाग, प्रकोष्ठ और प्रकल्पों के सदस्यों और संयोजक, सह संयोजकों की घोषणा नहीं की है. कार्यकाल समाप्त होने में एक महीना बचा है. अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होते ही दीपक के साथ ही बुझ जाएगी भाजपा की कांफिडेंशियल कार्यसमिति. क्योंकि तीन साल बीतने के बावजूद पार्टी के आम कार्यकर्ताओं को कार्यसमिति सदस्यों के नाम की जानकारी नहीं है. उनका दर्द ये है कि सबकुछ अध्यक्ष जी ही जानते हैं. उन्हें बताना भी उचित नहीं समझा जाता. दबी जुबान से अपना दर्द बांटते हैं. कहते हैं, भाई अध्यक्ष जी का क्या कहना. जब सइयां भये कोतवाल तो डर काहे का. अध्यक्ष जी की दिल्ली में बैठे शीर्ष नेताओं में अच्छी पकड़ है, पैठ है, तो उनकी मर्जी चलेगी ही. भला उन्हें कौन रोके-टोके.

भाजपा ने आधिकारिक तौर पर करीब 50 पदाधिकारियों के नाम की ही घोषणा की है. जबकि 200 से ज्यादा कार्यसमिति सद्स्य, विशेष आमंत्रित सद्स्य, स्थायी आमंत्रित सदस्य और 46 प्रकोष्ठ, प्रकल्प और विभागों के संयोजक और सह संयोजकों के नाम की घोषणा नहीं की गयी है. झारखंड में ऐसा पहली बार हुआ है. इससे पहले प्रदेश की जितनी भी कार्यसमिति बनी, सबकी आधिकारिक घोषणा हुई. दूसरे राज्यों में भी पूरी टीम की आधिकारिक घोषणा होती है. लेकिन झारखंड में देश की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी ने कार्यसमिति सदस्यों का नाम कॉन्फिडेंशियल क्यों रखा है. कार्यकर्ता भी अचंभित हैं. यह सवाल पार्टी के अंदर ही उठ रहा है. कार्यकर्ता दबी जुबान से इसे अध्यक्ष की मनमानी बताते हैं, लेकिन खुलकर कुछ बोल नहीं पाते.

दीपक प्रकाश फरवरी 2020 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने थे. लेकिन महामंत्री, उपाध्यक्ष, मंत्री, प्रवक्ता और मीडिया विभाग के पदाधिकारियों के नाम की ही घोषणा करने में उन्हें 5 महीने लग गए. पार्टी के नेता और कार्यकर्ता 5 महीने तक टकटकी लगाए बैठे रहे कि उन्हें कौन सा पद मिलता है. अगर पद नहीं भी मिला, तो कम से कम कार्यसमिति में तो जगह मिलेगी ही. लेकिन 5 महीने बाद जब सूची आयी, तो उसमें कार्यसमिति सदस्यों का नाम नहीं था. कुछ दिनों के बाद पार्टी के कुछ नेताओं को कॉन्फिडेंशियल लेटर मिलने लगा. जिसमें लिखा था कि उस नेता को कार्यसमिति, विशेष आमंत्रित या स्थायी आमंत्रित सद्स्य की सूची में रखा गया है. पिक एंड चूज पॉलिसी के आधार पर महीनों तक यह पत्र बंटता रहा. हाल ही में रमेश सिंह को भी कार्यसमिति सद्स्य बनाया गया और गुपचुप तरीके से उन्हें पत्र जारी कर दिया गया.

कार्यकर्ताओं को पता ही नहीं टीम में कौन-कौन हैं
भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी में इन दिनों अधिकांश मामले कॉन्फिडेंशियल ही होते हैं, जिसकी जानकारी प्रदेश अध्यक्ष और महामंत्रियों के अलावा और किसी को नहीं होती. उन्होंने कहा कि कार्यसमिति सदस्य और विभाग, प्रकोष्ठ के संयोजकों के नाम कॉन्फिडेंशियल रखने की क्या वजह है, यह तो प्रदेश अध्यक्ष ही बता पाएंगे. लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं को यह जानने का हक जरूर है कि प्रदेश की टीम में कौन-कौन पदाधिकारी और सदस्य हैं.

प्रवक्ता तो सात हैं, लेकिन सब शंटिंग यार्ड में
अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहने को तो सात प्रवक्ता नियुक्त कर दिए हैं. लेकिन उनकी सेवा बहुत कम ही ली जाती है. यों कहा जाए, तो उन्हें शंटिंग यार्ड में डाल दिया गया है. कई महीनों से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. यदि कभी बोलने का मौका मिला, तो हिदायत के साथ. बता दिया जाता है कि कितना और क्या बोलना है. मतलब बोलने की भी आजादी नहीं के बराबर है. मीडिया विभाग को पार्टी की गतिविधियों या भावी कार्यक्रमों के बारे में जानकारी ही नहीं होती. पूछने पर मीडया सेल के लोग अनभिज्ञता जताते हैं या साफ कह देते हैं कि अध्यक्ष जी से ही पूछ लीजिए. मीडिया सेल पर भी सीसीटीवी कैमरे की नजर रहती है, ताकि पता चल सके कि कौन-कौन मीडिया से बातचीत कर रहा है.

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