निविदा घोटाले की CBI जांच और सभी ठेकों को रद्द करने की मांग

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हाई कोर्ट में जनहित याचिका ने मचाया हड़कंप

निविदा घोटाले की CBI जांच और सभी ठेकों को रद्द करने की मांग

रांची: झारखंड उच्च न्यायालय में दायर एक सनसनीखेज जनहित याचिका ने राज्य के स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा और परिवार कल्याण विभाग में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के काले खेल को उजागर किया है। यह याचिका बिजय चंद्र नामक एक साहसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई है, जिसमें झारखंड सरकार और कई वरिष्ठ अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका में खुलासा किया गया है कि भारत सरकार के GeM (Government e-Marketplace) पोर्टल के जरिए की गई सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया में नियमों को ताक पर रखकर बड़े पैमाने पर धांधली की गई।

याचिकाकर्ता ने अपने दावों में सनसनीखेज खुलासा किया है कि आठ जिलों के सिविल सर्जन, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी और अन्य उच्च अधिकारियों ने मिलकर एक सुनियोजित साजिश के तहत ख्वाजा मोहसिन अहमद नामक व्यक्ति की तीन कंपनियों—मेसर्स भारत आर्ट्स एंड सप्लायर्स, मेसर्स ग्लोबल आर्ट्स एंड सप्लायर्स, और मेसर्स हिंद इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड—को अनुचित लाभ पहुंचाया। इन कंपनियों को बार-बार तकनीकी मूल्यांकन में योग्य घोषित किया गया, जबकि अन्य बोलीदाताओं को मामूली और तुच्छ कारणों के आधार पर अयोग्य ठहराकर निविदा प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया।

ख्वाजा मोहसिन अहमद का कथित साम्राज्य
याचिका में सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह है कि ख्वाजा मोहसिन अहमद इन तीनों कंपनियों के पीछे का मुख्य चेहरा हैं। वह मेसर्स भारत आर्ट्स एंड सप्लायर्स के मालिक हैं और साथ ही मेसर्स हिंद इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड में निदेशक की भूमिका निभाते हैं। याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि GeM के नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति, जिसके पास एक से अधिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण स्वामित्व या नियंत्रण हो, एक ही निविदा में हिस्सा नहीं ले सकता। इसके बावजूद, अधिकारियों ने जानबूझकर नियमों की अनदेखी की और ख्वाजा मोहसिन की कंपनियों को ठेके सौंपे। यह सवाल उठता है कि क्या यह एक सुनियोजित साजिश थी, जिसमें सिविल सर्जन और अन्य अधिकारियों ने ख्वाजा मोहसिन के साथ मिलकर सार्वजनिक धन का दुरुपयोग किया?

निविदा प्रक्रिया में धांधली का खेल
याचिका में यह भी उजागर किया गया है कि निविदा प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को पूरी तरह से दरकिनार किया गया। ख्वाजा मोहसिन की कंपनियों को बार-बार प्राथमिकता दी गई, जबकि अन्य बोलीदाताओं को छोटी-मोटी तकनीकी खामियों के नाम पर खारिज कर दिया गया। यह साफ तौर पर दर्शाता है कि निविदा प्रक्रिया को एक खास व्यक्ति और उसकी कंपनियों के पक्ष में हेरफेर किया गया।

याचिका में मांगी गई राहत
बिजय चंद्र ने झारखंड उच्च न्यायालय से इस घोटाले की गहराई तक जांच की मांग की है। उन्होंने अदालत से अपील की है कि:

  1. वर्तमान निविदा प्रक्रिया के तहत दिए गए सभी ठेकों को तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए।
  2. इस पूरे मामले की जांच CBI या किसी अन्य स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी, जैसे SIT, को सौंपी जाए, ताकि भ्रष्टाचार के इस जाल का पर्दाफाश हो और दोषियों को सजा मिले।

यह जनहित याचिका न केवल झारखंड के स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि क्या सिस्टम के भीतर बैठे कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के लिए जनता के हितों को दांव पर लगा रहे हैं। ख्वाजा मोहसिन अहमद और उनके कथित साम्राज्य के खिलाफ उठा यह कदम एक बड़े बदलाव की शुरुआत हो सकता है। अब सबकी निगाहें झारखंड उच्च न्यायालय पर टिकी हैं, जो इस मामले में निष्पक्षता और पारदर्शिता की उम्मीद जगाता है।

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