इंडियन ओशन रीजन या हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की बढ़ती उपस्थिति और गतिविधियां भारतीय नीति निर्माताओं और सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए चिंता और चर्चा का विषय बनी हुई है.
साल 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई. भारत और चीन के बीच लंबे समय से सीमा विवाद चला आ रहा है. पिछले तीन साल से ये और भी ज़्यादा गहरा गया है.
सुरक्षा जानकारों की मानें तो ये तनाव हिन्द महासागर में भी महसूस हो रहा है क्योंकि दोनों ही देश इस इलाक़े में अपना दबदबा बनाना चाहते हैं.
पिछले कुछ दशकों में चीन ने तेज़ी से अपनी नौसैनिक क्षमताओं का आधुनिकीकरण किया है. चीनी नौसेना ने विमान वाहक जहाज़ों, सतही युद्धपोतों और सैन्य पनडुब्बियों को बड़ी संख्या में अपने बेड़ों में शामिल किया है.
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, “पिछले 20-25 वर्षों पर नज़र डालें तो हिंद महासागर में चीनी नौसैनिकों की मौजूदगी और गतिविधि में लगातार बढ़ोतरी हुई है. चीनी नौसेना के आकार में बहुत तेज़ वृद्धि हुई है. तो जब आपके पास बहुत बड़ी नौसेना होगी, तो वह कहीं न कहीं अपनी तैनाती के संदर्भ में भी दिखाई देगी.”
चीनी बंदरगाह गतिविधियों का ज़िक्र करते हुए जयशंकर ने ग्वादर और श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह की बात भी की और साथ ही पिछली सरकारों पर निशाना भी साधा.
उन्होंने कहा, “कई मामलों में मैं पीछे मुड़कर देखने पर कहूंगा कि उस समय की सरकारों ने, उस समय के नीति निर्माताओं ने, शायद इसके महत्व को और भविष्य में ये बंदरगाह कैसे काम कर सकते हैं, इसे कम करके आंका. हर एक, एक तरह से थोड़ा अनोखा है और हम स्पष्ट रूप से उनमें से कई को इस बात के लिए बहुत ध्यान से देखते हैं कि उनका हमारी सुरक्षा पर क्या असर हो सकता है.”
जयशंकर ने ये भी कहा कि भारतीय नज़रिए से देखें तो भारत के लिए पहले की तुलना में कहीं अधिक बड़ी चीनी उपस्थिति के लिए तैयारी करना बिलकुल सही है.