1932 और 1985 के खतियान आधारित स्थानीय नीति को लेकर सीएम हेमंत सोरेन और पूर्व सीएम रघुवर दास के बीच बह पीपीस छिड़ गई है. हेमंत सोरेन ने कहा कि 1985 की स्थानीय नीति पर मिठाई बांटने वाले 1932 खतियान की मांग करने वालों का संघर्ष क्या जानेंगे. इसके बाद पूर्व सीएम रघुवर दास ने हेमंत के बयान पर पलटवार किया. ट्विटर पर हेमंत सोरेन के पोस्ट पर रिप्लाई करते हुए उन्होंने कहा कि 1932 खतियान का वादा कर सत्ता में आई हेमंत सरकार ने साढ़े 3 साल में भी स्थानीय और नियोजन नीति नहीं बनाई, इस कारण राज्य के युवा सड़क पर हैं. संघर्ष की बात करने वाले नेता को ना रोजगार की चिंता है, ना राज्य के विकास की।
स्थानीयता विधेयक पेश किया गया लेकिन कई लोगों के मन में सवाल होगा कि जिस खतियान आधारित स्थानीय नीति को मुख्यमंत्री ने सदन में अव्यावहारिक बताया था वो अचानक उनका सबसे बड़ा सियासी दांव कैसे बन गया? आखिर क्या बदला। कहीं केंद्रीय एजेंसियों की ताबड़तोड़ कार्रवाइयों ने सीएम हेमंत को अपनी तरकश सव तीर निकालने को विवश तो नहीं किया। दरअसल, झारखंड में स्थानीयता का मुद्दा यहां के आदिवासियों-मूलवासियों के लिए भावनाओं से जुड़ा रहा है। शायद यही वजह भी है कि 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले जारी अपने घोषणापत्र में झामुमो ने इसका वादा किया था।
हेमंत सोरेन ने कहा था कि 1985 नीति पर मिठाई बांटने वाले आजसू और भाजपा वाले 1932 खतियान की मांग करने वालों का संघर्ष क्या जानें. यह लोग जनता के सामने सिर्फ घड़ियाली आंसू बहा सकते हैं और पीछे के दरवाजे से जनता के ही खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं. इन लोगों ने झारखंड को सिर्फ पीछे धकेलने का काम किया है. विपक्ष वाले यह वही लोग हैं, जिन्होंने ओबीसी आरक्षण घटाकर 14% किया था. जब यह सरकार में थे तो ओबीसी आरक्षण पर चुप रहे. हमारी सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 27% कर विधेयक को विधानसभा से पारित कराया. इनको 1932 खतियान, गरीब, वंचितों से लेना देना नहीं. इन्हें सिर्फ पूंजीपतियों से मतलब है. हेमंत ने कहा आदिवासियों- मूलवासियों को सबसे पहले नौकरी मिले, इसके लिए हम नियोजन नीति लेकर आये, लेकिन दुर्भाग्य है. जब भी हम यहां के युवाओं को नौकरी देने के लिए कानून बनाते हैं तो भाजपा-आजसू के लोग बाहरी राज्यों के युवाओं के साथ मिलकर यहां के युवाओं की हकमारी करते हैं.मुख्यमंत्री ने कहा कि जो 1932 की बात करेगा, वही यहां राज करेगा। झारखंड को बाहर के लोग नहीं चलायेंगे, यहीं के आदिवासी-मूलवासी चलायेंगे। कहा, 1932 का कानून बनाया तो कमल छाप वाले यूपी-बिहार से आदमी लगाकर कानून को रद्द करवाने का काम कर रहे हैं। लेकिन, वह अब एक ऐसा जाल लगा वाले हैं, जिससे बाहर के लोग पार नहीं हो सकेंगे।