जी20 शिखर सम्मेलन में पर्यावरण पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान को कांग्रेस ने रविवार को सरासर पाखंड करार दिया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मोदी सरकार पर भारत के पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से खत्म करने और वनों पर निर्भर सबसे कमजोर समुदायों के अधिकारों को छीनने का आरोप लगाया. रमेश ने एक बयान में कहा, जी20 और वैश्विक स्तर पर अन्य शिखर सम्मेलनों में प्रधानमंत्री के बयान सरासर पाखंड हैं.
स्वयंभू विश्वगुरु पाखंड में बहुत आगे निकल गये हैं : जयराम रमेश
भारत में वनों और जैव विविधता की सुरक्षा को नष्ट करके और आदिवासियों तथा वनवासी समुदायों के अधिकारों को कमजोर करके, वह पर्यावरण, जलवायु कार्रवाई और समानता की बात करते हैं. उन्होंने कहा, वैश्विक स्तर पर उनकी कथनी(ग्लोबल टॉक) और स्थानीय स्तर पर उनकी सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदम (लोकल वाक) एक-दूसरे के पूरी तरह विपरीत हैं. रमेश ने कहा कि वर्ष 2014 में दूरदर्शन के एक कार्यक्रम में विद्यार्थियों से बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था, जलवायु नहीं बदली है, हम बदल गये हैं. उन्होंने आरोप लगाया, स्वयंभू विश्वगुरु पाखंड में बहुत आगे निकल गये हैं.
प्रधानमंत्री ने पर्यावरण के महत्व के बारे में खोखले बयान दिये
जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने पर्यावरण के महत्व के बारे में बड़े, खोखले बयान देने के लिए जी20 शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल किया. बता दें कि जी20 देशों ने शनिवार को कहा कि उनका लक्ष्य 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना है और राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप कोयला आधारित बिजली को चरणबद्ध तरीके से कम करने के प्रयासों में तेजी लाना है, लेकिन उन्होंने तेल और गैस सहित सभी प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की प्रतिबद्धता नहीं जताई.
सरकार बड़े पैमाने पर भारत की पर्यावरण सुरक्षा को खत्म कर रही है
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि जी20 पर्यावरण और जलवायु स्थिरता बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “हम जैव विविधता संरक्षण, बहाली और संवर्धन पर कार्रवाई करने में लगातार आगे रहे हैं. धरती माता की सुरक्षा और देखभाल हमारी मौलिक जिम्मेदारी है. रमेश के अनुसार, प्रधानमंत्री ने कहा, जलवायु कार्रवाई को अंत्योदय का पालन करना चाहिए… हमें समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान और विकास सुनिश्चित करना चाहिए.’ रमेश ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘ सच्चाई यह है कि मोदी सरकार बड़े पैमाने पर भारत की पर्यावरण सुरक्षा को खत्म कर रही है और वनों पर निर्भर सबसे कमजोर समुदायों के अधिकारों को छीन रही है.
दावा किया कि जैव विविधता संरक्षण के प्रधानमंत्री के दावों के विपरीत वर्ष 2023 के जैविक विविधता (संशोधन) अधिनियम से 2002 में बना मूल कानून बहुत कमजोर हो गया है. वर्ष 2023 के अधिनियम से आपराधिक प्रावधान को हटा दिया गया है, जो जैव विविधता को नष्ट करने वाले और वन संपदा के अनुचित दोहन में संलिप्त लोगों को बच निकलने की छूट देता है.
वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम-2023 आदिवासी समुदाय के लिए विनाशकारी
रमेश ने कहा, वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम-2023 भारत में आदिवासियों और वनवासी समुदायों के लिए विनाशकारी होगा, क्योंकि यह 2006 के वन अधिकार अधिनियम को कमजोर करता है. यह अधिनियम देश की सीमाओं के 100 किमी के भीतर जंगलों से सुरक्षा छीन लेगा. उन्होंने कहा कि राजग का शासन होने के बावजूद मिजोरम ने विधानसभा में अधिनियम के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया है और नगालैंड के भी जल्द ही ऐसा करने की उम्मीद है.
रमेश ने दावा किया, ‘‘नया कानून 1996 के टीएन गोदावर्मन बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन करते हुए, भारत के 25 प्रतिशत तक वन क्षेत्र की सुरक्षा के प्रावधान को खत्म करता है. यह केवल मोदी सरकार के लिए जंगलों का दोहन करने और उन्हें कुछ चुनिंदा मित्र पूंजीपतियों को सौंपने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.