दिशोम गुरु शिबू सोरेन को अंतिम जोहार

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आज झारखंड की धरती शोक में डूबी है। एक ऐसा युगपुरुष, जिसने अपनी जिंदगी झारखंड के आदिवासी समाज और वंचितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दी, वह हमें छोड़कर अनंत यात्रा पर चला गया। दिशोम गुरु, झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद, शिबू सोरेन जी का 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया। 81 वर्ष की आयु में, लंबी बीमारी के बाद, उन्होंने सुबह 8:56 बजे अंतिम सांस ली। लेकिन उनके जाने के साथ, झारखंड ने न केवल एक नेता, बल्कि एक विचार, एक आंदोलन और एक प्रेरणा को खो दिया।
 
आज, रांची के झारखंड विधानसभा परिसर में, दिशोम गुरु का पार्थिव शरीर पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। माननीय राज्यपाल श्री संतोष कुमार गंगवार, विधानसभा अध्यक्ष श्री रबीन्द्र नाथ महतो, केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री, विधायक, पूर्व सांसद, और विधानसभा सचिवालय के कर्मचारियों ने पुष्प चक्र अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी। यह दृश्य केवल औपचारिकता नहीं था; यह उस अपार श्रद्धा का प्रतीक था, जो हर झारखंडवासी के मन में गुरुजी के लिए है।

शिबू सोरेन, जिन्हें प्यार से “दिशोम गुरु” कहा जाता था, का जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। उनका बचपन संघर्षों से भरा था। उनके पिता, सोबरन मांझी, एक शिक्षक थे, जिनकी हत्या महाजनों ने उनकी जमीन के लिए कर दी थी। इस घटना ने युवा शिबू के मन में अन्याय और शोषण के खिलाफ लड़ने की ज्वाला जला दी। उन्होंने महाजनी प्रथा के खिलाफ “धानकटनी आंदोलन” शुरू किया और 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसका एकमात्र उद्देश्य था—झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना और आदिवासी समाज को उनकी पहचान और अधिकार दिलाना।

लगभग तीन दशकों के अथक संघर्ष के बाद, शिबू सोरेन का सपना 2000 में साकार हुआ, जब झारखंड एक अलग राज्य बना। यह केवल एक भौगोलिक उपलब्धि नहीं थी; यह आदिवासी अस्मिता, सामाजिक न्याय, और समतामूलक समाज की स्थापना की जीत थी। गुरुजी ने न केवल जंगल और पहाड़ों में आंदोलन का नेतृत्व किया, बल्कि दिल्ली के गलियारों में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की। वे आठ बार दुमका से लोकसभा सांसद रहे, तीन बार राज्यसभा सांसद बने, और तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की। 2004 में वे केंद्रीय कोयला मंत्री भी बने

शिबू सोरेन का निधन केवल झारखंड के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। आज, पक्ष और विपक्ष की सभी राजनीतिक विचारधाराएं एक तरफ रख दी गई हैं। हर कोई, चाहे वह सत्तापक्ष हो या विपक्ष, दिशोम गुरु के जाने के गम में आंखें नम किए हुए है। झारखंड विधानसभा का मॉनसून सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया, और राज्यसभा ने भी उनकी स्मृति में अपनी कार्यवाही एक दिन के लिए स्थगित की। विधानसभा में सभी दलों के नेताओं ने एक स्वर में कहा, “वीर शिबू सोरेन अमर रहें, दिशोम गुरु अमर रहें!

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, और विपक्षी नेताओं सहित देशभर के प्रमुख नेताओं ने शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि दी। बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक ने कहा, “उन्हें आदिवासी और वंचित वर्ग के लोगों के अधिकारों के लिए समर्पित उनकी लड़ाई के लिए हमेशा याद किया जाएगा।” झारखंड के बीजेपी नेता और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने इसे “झारखंड के लिए अपूरणीय क्षति” बताया। सांसद जोबा माझी ने कहा, “गुरुजी एक ज़मीनी नेता थे, जिन्होंने जनता के प्रति निःस्वार्थ समर्पण के साथ कार्य किया।” यह एकता, यह एकजुटता, यह साबित करती है कि मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं। आज हर कोई एक महानायक को अंतिम जोहार कह रहा है।

शिबू सोरेन ने अपने जीवन में कई सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों को बढ़ावा दिया। अखिल अखड़ा के जरिए शिक्षा, सामुदायिक खेती, महिला सशक्तिकरण, और पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्यों को प्रोत्साहित किया। उनकी यह विरासत झारखंड के भविष्य को दिशा देती रहेगी। उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “यह क्षति सिर्फ पारिवारिक नहीं, बल्कि पूरे झारखंड और देश के लिए अपूरणीय है।” हेमंत जी स्वयं अपने पिता के पार्थिव शरीर को दिल्ली से रांची लाए, जहां रांची एयरपोर्ट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका स्वागत किया गय

आज, जब दिशोम गुरु का पार्थिव शरीर रांची के मोराबादी स्थित उनके आवास पर ले जाया गया, हजारों लोग उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़े। झारखंड सरकार ने 4 से 6 अगस्त तक तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया है, जिसमें सभी सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे और राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। नेमरा गांव, जहां उनका जन्म हुआ, वहां उनका अंतिम संस्कार होगा, और वहां भी लोग अपने इस महानायक को जोहार कहने के लिए जुट रहे हैं।

शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा, उनका संघर्ष, और उनकी प्रेरणा हमेशा जीवित रहेगी। वे झारखंड की आत्मा थे, और उनकी यह आत्मा हर झारखंडवासी के दिल में बस्ती रहेगी। दिशोम गुरु को हमारा अंतिम जोहार। 
शांति।

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