डॉक्टर निशिकांत दुबे देवघर सांसद ने ट्वीट कर कहा
जल, जंगल, ज़मीन की रक्षा होगी, जीत भाजपा की होगी राजधानी रांची में राज्य के सबसे विफल मुख्यमंत्री जी के सचिवालय का घेराव किया।
क्या निशिकांत दुबे यह बता सकते हैं कि सीएनटी /एसपीटी खत्म कर बीजेपी कैसे झारखंड के जल, जंगल और जमीन की हिफाजत कर पाएगी।
झारखंड के आदिवासियों की स्थिति कितनी खराब है? वह बहुत ही गरीब हैं. ऐसे में उनकी जमीनों को पूरी तरह से खरीद और बिक्री की छूट उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है. मैं चाहता हूं कि ऐसा प्रावधान किया जाए जिससे उनकी जमीनों की खरीद-फरोख्त आवासीय मकसद के साथ कुछ सीमित दायरों और छूट के साथ संभव हो सके. इसके लिए जमीन की खरीद- फरोख्त पर रोक लगाने वाले पुराने कानूनों में बदलाव जरूरी है. मैं पूरी तरह से कानून खत्म करके उन्हें व्यावसायिक खरीद-फरोख्त के लिए खोल देने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं हूं. इस संबंध में याचिकाकर्ता से भी सीमित छूट की मांग उठाने को लेकर बात की जाएगी. तभी याचिकाकर्ता के वकील के तौर पर इस मामले में आगे बढूंगा.” सुप्रीम कोर्ट में झारखंड के आदिवासियों के जमीनों को संरक्षित करने वाले दो कानूनों – छोटा नागपुर टीनेन्सी एक्ट (सीएनटी) और संथाल संथाल परगना टीनेन्सी एक्ट (एसपीटी एक्ट) को रेक्टिफाई करने की मांग करने वाली याचिका के वकील राम लाल रॉय ने यह बातें कहीं. उन्होंने कहा संभव है कि 20 जून के बाद ही यह मामला विचार के लिए अदालत के सामने आएगा. इस बीच याचिका की निर्णायक मांग में कई बदलाव हो सकते हैं. उन्होंने कहा इसलिए “इस मामले पर अभी अधिक नहीं बोल सकता.”संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में आदिवासी समाज की मांग या अगुवाई को लेकर उन्होंने कहा कि इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है. दरअसल यह याचिका गैर आदिवासी 88 वर्षीय श्याम प्रसाद सिन्हा की ओर से दाखिल की गई है, जिनके बारे में याचिका में जिक्र है कि वह आदिवासी समाज का विकास चाहते हैं. याचिकाकर्ता के किसी सियासी मकसद या ताल्लुकात की बात याचिका में नहीं है.
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) की जमीन के स्तांतरण मामले में विधानसभा की विशेष समिति ने कार्रवाई करने का निर्णय लिया है. जमीन के अवैध हस्तांतरण से संबंधित रिपोर्ट राज्य के कई जिलों के उपायुक्त समिति के आदेशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं. कमेटी के संयोजक व विधायक स्टीफन मरांडी ने राज्यभर के उपायुक्तों से रिपोर्ट मांगी थी कि उनके जिले में ऐसे कितने मामले हैं.
ज़मीन की सुरक्षा के सवाल पर झारखंड एक बार फिर आंदोलन की आंच में तपने लगा है. गुस्सा भाजपा की रघुबर दास सरकार के ख़िलाफ़ है और गांव से लेकर शहर तक है.कई आदिवासी संगठनों ने सोमवार को झारखंड बंद बुलाया है. जगह-जगह आदिवासी- मूलवासी राज्य सरकार सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर रहे हैं.
इस बीच राज्य में सत्ता दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने बीजेपी को इस फैसले का जिम्मेदार माना।