प्रचार तंत्र एवं मीडिया के चकाचौंध से कोसों दूर लातेहार जिले के बालूमाथ थाना के चितरपुर गांव निवासी 32 वर्षीय हनुक लकड़ा विगत 15 वर्षों से निर्बाध सर्पदंश पीड़ितों की सेवा करते आ रहे हैं. इनके सद्प्रयास के बल पर इन 15 सालों में सैकड़ों सर्पदंश से पीड़ितों को जीवन दान मिलना संभव हो सका. हनुक का दावा है कि सर्पदंश से पीड़ित यदि दवा निगलने वाली स्थिति तक उनके पास पहुंच जाए तो निश्चय ही वे उनको मृत्युशय्या से बाहर लाने में कामयाब रहेंगे. फनिक, करैत, रशेलवाईपर जैसे विषैले सांपों के डसने से मनुष्य के शरीर में विष फैलने की गति को वे सूक्ष्मता को भलीभांति जानते हैं और उसी गति से वे दवाओं को तैयार कर मरीज को सेवन कराते हैं अथवा प्रबावित अंगों में लेप लगाते हैं. इनकी खासियत ये है कि ये पूर्णत: जंगली जड़ी- बूटियों से इलाज करते हैं, जिसके कारण गरीब लोग भी बिना खर्च अथवा न्यूनतम खर्च में इलाज करा पाते हैं. इन्होंने बालूमाथ और आस- पास इलाकों के मरीजों को 2021 में 26 मरीज, 2022 में 28 एवं इस वर्ष अब तक 15 सर्पदंश से पीड़ितों को पूर्णत: स्वस्थ्य कर दिया है. हनुक लकड़ा को यह नैसर्गिक गुण अपने मामा नेम्ह्स मिंज से प्राप्त हुई है. नेम्ह्स मिंज प्रसिद्ध होड़ोपैथ के जानकार पीपी हेम्ब्रोम के बैचलर रहे थे. इस प्रकार हनुक लकड़ा अपने मामा के विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं जो आदिवासी जीवन दर्शन का के अहम हिस्सा है. उन्होंने यह भी बताया कि अब तक वे बालूमाथ, चंदवा और चतरा के इलाके में 7 शिष्यों को इस कदर तैयार किया है कि वे अपने आत्मविश्वास के दम पर सर्पदंश से पीड़ितों को दवाओं के जरिये पूरी तरह स्वस्थ्य कर देते हैं.
रशेलवाइपर के काटे जाने के बाद मनुष्य के शरीर में होने वाले गंभीर बारीकियों को हनुक बखूबी समझते हैं. उनके अनुभव अनुसार मरीज के शरीर में पहले तीव्र लहर व जलन होती है. जिससे इंसान बेहद घबराने लगता है. यदि इस अवधि में दवाइयों के बल पर शांत कर देते हैं. इसके बाद शरीर के डसे हुए भाग में सूजन प्रारंभ हो जाता है और चौथे चरण में शरीर के उस भाग के मांस सड़ने गलने लगता है जो कि बेहद खतरनाक स्थिति होती है. लगातार दवाइयों के असर के बाद भी सूजन पीड़ित इंसान के उस भाग में करीब 96 घंटे तक फैलता ही रहता है. यही वह स्थिति होती है जब पीड़ित या परिजन घबराने लगते हैं कि यहां हम बेवजह इलाज में अपना समय बर्बाद कर रहे हैं. कई मरीज और उसके परिजन तो इसी अवस्था में बेहत्तर इलाज के लिए मरीज को बड़े अस्पताल ले जाते हैं जो खासकर आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं, लेकिन गरीबों के लिए ऐसा कर पाना बेहद मुश्किल होता है. ऐसे निर्धन मरीजों के लिए ही हनुक किसी फ़रिश्ता से कम नहीं हैं.
बकौल हनुक सूजन यदि मनुष्य के किडनी और लीवर तक पहुँच जाए तो लाख दवाईयों के बाद भी मरीज की जान बचाना नामुमकिन सा हो जाता है. वो कहते हैं उनके पास तो किडनी और लीवर इन्फेक्शन जांच के लिए उपकरण की उपलब्धता नहीं है, किन्तु पीड़ित मरीज का पेशाब और पैखाना रूक जाता है तो समझ जाते हैं कि उनकी किडनी और लीवर ने काम करना बंद कर दिया है. ऐसे गंभीर मरीजों को इलाज करने का जोखिम वो नहीं उठाना चाहते हैं हैं, लेकिन यदि कोई निर्धन मरीज हाथ खड़े कर देते हैं कि वो कहीं और ले जाने हेतु सक्षम नहीं हैं. वैसी परिस्थिति में अंतिम सांस तक पीड़ित मरीजों की सेवा करते हैं.
सूजन बढ़ने के दौरान 96 घंटे तक हनुक मरीज को प्रत्येक 4 से 6 घंटे के अंतराल में जड़ी- बूटियों से तैयार लेप से सर्प के विष के प्रभाव को कम करते हैं. इस दौरान मरीज हनुक लकड़ा के घर में ही रहते हैं. इसके लिए हनुक या उनका परिवार किसी तरह की राशि का भुगतान नहीं लेते हैं. यहां तक कि उल्टे गरीब मरीज हनुक और उसके परिवार के लिए जो खाना बनता है लोग उसी में पारिवारिक सदस्य की तरह आहार ग्रहण करते हैं. मरीजों के लिए 4 दिन हनुक के यहां रुकना अनिवार्य होता है. इसी शर्त पर वो इलाज भी प्रारंभ करते हैं. पीड़ित मरीज में विष की मात्रानुसार मरीज को पूर्णत: ठीक होने में 12 से 22 दिन का समय लग जाता है. वो यह भी बताते हैं कि रशेलवाइपर जब सामान्य स्थिति में किसी वजह से डसता है तो उसमें विष की मात्रा कम छोड़ता है, लेकिन यही सांप गुस्से की स्थिति में ज्यादा विष त्यागता है. इस परिस्थिति में पूर्णत: ठीक होने में मरीज को 22 दिनों का समय लगता है. विगत 3 नवंबर को उनके घर में रशेलवाइपर द्वारा डसी गई एक 25 वर्षीय महिला मरीज सोनू उरांव इलाजरत थीं. उनको रशेलवाइपर ने 2 नवंबर के सुबह करीब 7 बजे डसा था. चूंकि इनका घर उसी इलाके के बगल गांव में है. इस वजह से वह उसी दिन सुबह 10.15 बजे वैद्य के घर पहुंच गई थी. 4 तारीख तक मरीज बेहद सहज लग रही थी.
जंगलों के तेजी से बंजर भूमि में परिवर्तित होने के कारण हनुक ही नहीं कई ऐसी जड़ी बूटी से इलाज में महारत विशेषज्ञों को अपने पुश्तैनी ज्ञान को संजोये रखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. पर्यवरण विकृति से अब जंगलों में जड़ी बूटी ढूंढने में अनावश्यक समय जाया करता है. इधर, मरीज की हालत भी बिगड़ने लगती है. हनुक इस विद्या को अधिक से अधिक जानकारों तक फैलाना चाहते हैं. इसके लिए वे समय- समय पर ट्रेनिंग प्रोग्राम भी संचालित करते हैं. उनकी दिली इच्छा है कि आयुष मंत्रालय, भारत सरकार और ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संयुक्त रूप से जारी दिशा- निर्देश के आलोक में मनरेगा के तहत जड़ी बूटियों की बागवानी जिला प्रशासन प्रारंभ करे. इससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और हम अपने आदिवासी धरोहर को संरक्षित करने में सक्षम भी हो सकेंगे.
