क्या कहु इस संघर्ष के बारे में यू ही नहीं मिली है आजादी हमे महाजनों से और सूदखोरों: माटी के पुत्र सोबरन मांझी

झारखण्ड
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सोबरन मांझी एक ऐसी शख्सियत और एक ऐसी सोंच की हम बात कर रहे है जिनका बहुत बड़ा योगदान रहा है झारखंड की आदिवासी समाज के हक और अधिकार के लिए। जिन्होंने महाजनि प्रथा और नशाखोरी के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद कर इसके खिलाफ लड़ाई की शुरुआत की। सोबरन मांझी गोला प्रखंड के नेमरा गांव के रहने वाले थे। अपने इलाके के गिने-चुने पढ़े लिखे युवाओं में से एक और पेशे से शिक्षक थे। जिनकी राजनीति में भी थोड़ी बहुत दखल थी। गांधीवादी विचार धारा के सोबरन मांझी शांत स्वभाव के थे। वो अनन्य होता नहीं देखते थे। महाजनों- सूदखोरों से उनकी नहीं पटती थी। ये वो दौर था जब गरीब आदिवासी का महाजनों- सूदखोरों द्वारा शोषण किया जाता था। महाजनों- सूदखोरों के तो शोषण के बहुत तरीके थे जिसमें से एक सबसे प्रसिद्ध तरीका पैसों ज़रूरत पड़ने पर सूद पर धान देते और फसल कटने पर डेवढ़ा (डेढ़ गुना) वसूलते। न चुकाने पर तरत-तरह के तरीकों से खेत अपने नाम करवा लेते और जिससे ज़मीन लेते, उसी से उस ज़मीन पर बेगार खटवाते थे। यही वजह है के महाजनों को अपने ख़िलाफ़ बढ़ते आवाज को देख चिंता सताने लगी जिस कारण मौका देख महाजनों ने उनकी हत्या करवा दी। आपको बता दें के उनके जन्म से जुड़े कुछ पुख्ता दस्तावेज तो नही है कि उनका जन्म कब हुआ लेकिन उनकी हत्या महाजनों ने 27 नवंबर 1957 को कराई थी। जब उनकी हत्या हुई उस वक्त उनके बेटे शिबू सोरेन पड़ाई कर रहे थे। सोबरन मांझी की हत्या से उनके पुत्र शिबू सोरेन को बहुत बड़ा सदमा लगा परंतु हिम्मत ना हारते हुए अपने पिता के रास्ते पर चल जंग को जारी रखा। यही वजह है के महाजनि प्रथा के खिलाफ लड़ाई को इस मुकाम तक पहुंच पाया। इस प्रकार कहा जाए की झारखंड में महाजनी प्रथा के सबसे बड़े विरोधी और इसके खिलाफ लड़ाई शुरू करने वाले सबसे पहले शख्सियत सोबरन माझी थे तो इसमें कोई दो सोंचने वाली बात नहीं होगीI उन्हीं के संस्कारों और नीतियों को लेकर पुत्र शिबू सोरेन और पोते हेमंत सोरेन भी चल रहे है जिसके वजह से दिशोम गुरु के आंदोलन के वजह से हमें अलग झारखण्ड राज्य मिला तो वहीं पोते हेमंत सोरेन की वजह से झारखंडियों को उनका मान सम्मान उनका हक अधिकार भी मिल रहा है I

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