झारखंड में राजनिति दिलचस्प हो गया है. आगामी 27 फरवरी को रामगढ़ विधानसभा में उपचुनाव
होना है जिसे लेकर महागठबंधन और भाजपा-आजसू के बीच सियासी बयानबाजी तेज़ हो चुकी है. हालांकि, 2019 के बाद हुए सभी उपचुनाव में हेमंत सोरेन की टीम को बढ़त मिली है और भाजपा-आजसू गठबंधन को क्लीन स्वीप किया है. रामगढ़ उपचुनाव में भी कुछ ऐसा ही होने की उम्मीद जताई जा रही है.
वर्तमान में हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री है तो जाहिर है कि उनकी लोकप्रियता सबसे अधिक होगी लेकिन जब वे मुख्यमंत्री नहीं थे तब भी राज्य के युवाओं की पहली पसंद भी हेमंत सोरेन ही थे. अब तेज़ी से हेमंत सोरेन देश की राजनीति में अपने पैर जमा रहे है और राजनितिक हलचल पैदा कर रहे है.
विगत 1 वर्ष में झारखंड सरकार ने जनहित में जो फैसले लिए है उसका लाभ सीधे आम नागरिकों को होने वाला है. इसे देख भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व भी चिंतित है वही भाजपा के साथ मिलकर राजनीति करने वाली आजसू पार्टी भी हेमंत के प्रभाव को देखकर भाजपा के साथ लौट आई है. आजसू पार्टी के नेता भले ही यह दिखाने की कोशिश कर रहे है की उनका और भाजपा का गठबंधन पुराना है लेकिन राजनितिक गलियारों की माने तो हेमंत की बढ़ती नेतृत्व क्षमता को देख दोनों पार्टियों में घबराहट है और इसे रोकने के लिए हर मुमकिन कोशिश भी की जा रही है. सरकार गिराने से लेकर स्थानीय नीति, ओबीसी आरक्षण, सरना धर्म कोड़ जैसे बिल को मंजूरी ना दे कर केंद्र की भाजपा सरकार हेमंत को कमज़ोर दिखाने की कोशिश कर रही है लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
मिशन 2024 की तैयारियों में जुट गए है हेमंत, भाजपा-आजसू के लिए राह नहीं होगा आसान
मिशन-2024 को लेकर धीरे-धीरे सियासी माहौल तैयार हो रहा है. कांग्रेस पूरे विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एकजुट करने को बेचैन है, ताकि मोदी के विजय रथ को रोका जा सके. वहीं, भाजपा अपनी विजय पताका फहराये रखने की रणनीति पर काम कर रही है. उसकी चाहत है कि विपक्ष बिखरा-बिखरा ही रहे, ताकि कांग्रेस से सीधी टक्कर न हो.
इसी बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कांग्रेस विरोधी नेताओं के साथ नजदीकियां लगातार बढ़ती दिख रही है. इसे राजनीतिक विश्लेषक कुछ अलग ही आंक रहे है. वे इसे सीएम हेमंत सोरेन के राष्ट्रीय पटल पर तीसरे मोर्चे के गठन की पहल के रूप में देख रहे हैं. सीएम हेमंत सोरेन इन दिनो नई दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की. कुछ दिन पहले ही सीएम हेमंत सोरेन केरल दौरे पर थे. वहां, उन्होंने केरल के सीएम पी. विजयन से मुलाकात की थी. बीते साल तेलंगाना के एम केसीआर राव भी रांची आये थे. हालांकि, इन सभी से मुलाकात को एक शिष्टाचार मुलाकात बताया गया था लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जमीन हकीकत तीसरे मोर्चे के गठन को लेकर थी.
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से हेमंत सोरेन की नजदीकियां जगजाहिर हैं. ममता बनर्जी ने सिंतबर 2022 में विपक्षी एकता को लेकर बड़ा बयान तो दिया था, लेकिन कांग्रेस को इससे दूर ही रखा था. उन्होंने कहा कि वह हेमंत सोरेन, नीतीश कुमार और अन्य नेताओं के साथ मिलकर 2024 का चुनाव लड़ेंगी. आदिवासी वोटरों को भाजपा के खिलाफ एकजुट करने मिता बनर्जी अब हेमंत सोरेन सरकार की राह पर है. आदिवासियों के सरना धर्म कोड को मान्यता देने के लिए ममता बनर्जी 13 फरवरी को विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश करेगी. बता दें कि नवंबर 2020 में झारखंड विधानसभा से सरना धर्मकोड का प्रस्ताव से पारित हुआ था. ऐसा करने वाला झारखंड देश का पहला राज्य था. अब पश्चिम बंगाल भी उसी राह पर है।
