मजिस्ट्रेट सर सैयद अली इमाम को रांची से गहरा लगाव था. उन्होंने रांची के कोकर में अपनी बेगम ( धर्म पत्नी ) अनीस फातिमा को तोहफे में देने के लिये 21 एकड़ जमीन अनीस कैसल के नाम से 1913 में इसका निर्माण शुरू किया. बाद में यह इमाम कोठी के नाम से प्रसिद्ध हुई. लाल इंटो, नक्काशी कलाकृतियां एवं खूबसूरत संग ए मरमर जरमनी से मंगवाये गये थे. इमाम कोठी खूबसूरती के साथ 1932 में तैयार हुई. उस समय इसकी लागत 30 लाख रुपये आई थी. इमाम कोठी में लीची, आम, अमरूद, कटहल के अलग अलग बाग थे. तीन मंजिल की कोठी में 120 कमरे हैं. जिसमें प्रवेश करने के लिये 6 दिशाएं हैं. छहों दिशाओं से कमरों में जाने के लिये दरवाजे खुलते हैं.
इमाम कोठी गोदाम में तबदील
आज इस इमाम कोठी को वरुण लालवाणी नामक बिजनेसमैन ने खरीद लिया है. इमाम कोठी के गार्ड ने बताया कि अब यह इमाम कोठी नहीं गोदाम बन गया है. यहां पेप्सी, एजेमेन, दवाओं के हॉल सेल होते हैं.
कौन थे सर सैयद अली इमाम
पटना जिला के नेउरा गांव में नवाब सैयद इमदाद इमाम के घर सैयद अली इमाम का जन्म 11.2.1869 में हुआ था. इन्होंने बैरिस्टरी की शिक्षा इंगलैंड से प्राप्त की थी. 1890 में कोलकाता हाईकोर्ट में परैक्टीस भी किया था. 1908 में बिहार राज्य के लिये प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता की थी.
जज साहब के बड़े फैसले : 1912 में बिहार से बंगाल को अलग किया, 1031 में इंडिया की राजधानी कलकत्ता से हटा कर दिल्ली को बनाया
सर अली इमाम को ब्रीटीष्ट सरकार ने 1910 में बंगाल विधान परिषद का सदस्य बनाया था. 1912 में ही राष्ट्र संघ की पहली ए सेंबली में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व किया था. सर अली इमाम के महत्वपुर्ण प्रयास से वर्ष 1912 में बिहार से बंगाल को अलग कर बिहार राज्य की स्थापना हुई की. ब्रिटीष्ट सरकार के अधिकारी असमत अली ने झारखंड अलग राज्य करने का प्रस्ताव दिया था. जिस पर सर अली इमाम ने समर्थन किया था. ब्रीटीष्ट सरकार द्वारा भारत में मुस्लिम समुदाय के लिये वक्फ कानून बनाया गया था. उसमें कई सुधार सर अली इमाम द्वारा करवाये गये. वह वर्ष 1917 से लंबे समय तक पटना हाईकोर्ट के जज भी रहें. वर्ष 1920 में सर अली इमाम हैदरा बाद के निजाम के प्रधानमंत्री रहें. सर अली इमाम के प्रस्ताव पर ब्रीटीष्ट सरकार ने 30 अक्टूबर 1031 में इंडिया की राजधानी कलकत्ता से हटा कर दिल्ली को बनाया गया. 1931 में सर अली गोल मेल सम्मेलन में भाग लेने इंगलैंड गये थे. प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सर अली इमाम को संयुक्त बिहार, झारखंड के आधुनिक बिहार के निर्माता की संज्ञा दी थी.
31 अक्टूबर 1932 में हुआ निधन, 1935 में बेगम ने बनवाया मजार
सर इमाम अली का निधन 31 अक्टूबर 1932 को रांची में हुआ. निधन से चंद घंटे पहले अपने बेटे नकी इमाम के साथ जा कर जमीन के एक स्थल पर निशान बनाया और कहा की इसी जगह मेरी कब्र बनाना. उनके वसीयत के अनुसार उन्हें वहीं दफनाया गया. बाद में बेगम धर्म पत्नी अनीस इमाम ने 1935 में उनका मजार वहीं बनवाया. जो आज भी सर अली इमाम के नाम से कायम है. उस समय पत्नी ने उनके बगल में एक खाली कब्र की जगह भी छोड़ी थी. कहा था बाद में मैं इन्हीं के बगह में दफन होंगी. लेकिन वे किसी काम से पटना गई और उनका निधन वहीं हो गया. उन्हें पटना में ही दफन किया गया. इस तरह उनका ख्वाब पूरा नहीं हो सका. आज भी मजार में मन्नत मूराद के लिये लोग आते हैं.
सरकारी उपेक्षा के कारण झारखंड का धरोहर इमाम कोठी गुमनामी : एस अली
अल्पसंख्यक मामलों के जानकारी एस अली ने कहा कि सरकारी उपेक्षा के कारण झारखंड का धरोहर आज गुमनामी के कगार पर चला गया है. जमीन व कोठी दोनों बिक चुकी है, जो बिहार व झारखं के लोगों के लिये दुखद है.
उनके परिवार के लोगों ने इमाम कोठी को बेच दिये है : उपाध्यक्ष
झारखंड सरकार, अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष शमशेर आलम ने कहा कि झारखंड का धरोहर रहे इमाम कोठी को उनके ही परिवार के लोगों ने बेच दिया तो फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं.