स्नान तो छोड़िए जनाब, यहां तो पीने के पानी के भी चार्ज लगते हैं. इतना ही नहीं सेंट्रल जेल हजारीबाग में गठरी-मोटरी का भी अलग राज है. यह बात ‘शुभम संदेश’ नहीं, जेपी केंद्रीय कारा हजारीबाग से शुक्रवार को रिहा किए गए केरेडारी के दो बंदियों राजेश कुमार और उदय कुमार कहते हैं. उन्होंने कहा कि यह जेल नहीं, काल कोठरी है. किस्मत वाले ही यहां से सही सलामत छूट कर आते हैं. जेल के अंदर कोड वर्ड से सारा खेल होता है. ऐसा ही कोड वर्ड गठरी-मोटरी भी है.
छापेमारी से पहले ही सतर्क हो जाते हैं कैदी, इस कोड वर्ड का होता है इस्तेमाल
दरअसल रेड होने के पहले बंदियों को जेलकर्मियों की ओर से आगाह करने का यह कोड वर्ड है कि वह सतर्क हो जाएं और अपनी गठरी-मोटरी छिपा लें. उस गठरी-मोटरी में मोबाइल, खैनी जैसे नशीले पदार्थ समेत अन्य आपत्तिजनक सामान होने की बात कही जाती है. बंदियों ने बताया कि एक टीन पानी में ही शौचालय, स्नान, कपड़े धोना और पीना है. उसकी भी कीमत 20 रुपए देने पड़ते हैं. अगर टीन वाला पानी नहीं लिया, तो गड्ढे में जमा पानी में नहाइए. वह गड्ढा दबंग कैदियों के जिम्मे रहता है. वह अन्य कैदियों से नहाने के पैसे वसूलता है. बंदियों ने बताया कि उन्हें मारपीट के फर्जी मुकदमे में पुलिस ने जेल भेजा था. 23 दिन ही जेल में रहे, लेकिन नर्क से भी बदतर हालत में वक्त बीता. भगवान न करे दुश्मन को भी जेल जाना पड़े. यहां भेड़-बकरियों से भी दयनीय हालत में बंदियों को सजा काटनी होती है. जिस दिन जेल में शिफ्ट हुए थे, तो उसी दिन 900 रुपए वार्ड में शिफ्ट होने का चार्ज लगा. फिर आगे सुविधाएं चाहिए, तो उसके लिए सौदा बैठकर तय करना होगा. उन्होंने यह भी कहा कि जेल से संबंधित खबर अखबार में छपने या टीवी में चलने से अधिकारी को कोई फर्क नहीं पड़ता है. वह मजा ले लेकर पढ़ते और देखते हैं और चर्चा करते हैं कि कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. जांच में कार्रवाई होगी, तो मैनेज कर लेंगे. अगर जेल की सारी सच्चाई सामने आ जाए, तो मानवाधिकार हनन का मामला बन जाएगा. ऊपर के अधिकारियों को गहराई से जांच कर बंदियों को भी इंसान की श्रेणी में रखते हुए मानवीय पहलुओं का ख्याल रखने का निर्देश देना चाहिए.