भाजपा शासित राज्य में आदिवासी समाज पर सबसे ज्यादा जुल्म

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भाजपा शासित राज्यों में आदिवासी समाज के लोगों का हर स्तर पर लगातार शोषण व उत्पीड़न जारी है ।इन वर्गों के लोगों की हालत इतनी ज्यादा ख़राब व दयनीय बन चुकी है कि अब ये लोग, अन्य वर्गों के लोगों की तरह, आगे अपनी दुःख तकलीफें व पीड़ा आदि को लेकर कुछ भी आवाज खुलकर नहीं उठा सकते हैं और ना ही उसके विरोध में धरना-प्रदर्शन आदि कर सकते हैं। बीजेपी सरकार द्वारा इन वर्गों पर की जा रही सरकारी जुल्म-ज्यादति के आगे सन् 1975 में लगी ‘इमरजेंसी की जुल्म ज्यादति भी काफी कम लगने लगी है। बीजेपी सरकारें ‘भारत बन्द के आंदोलनकारियों को जबरन अपराधी बनाकर उन पर झूठे मुकदमें आदि दर्ज करके उन्हें जेल भिजवा रही है, जो सर्वथा अनुचित । ख़ासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि में बीजेपी सरकार का खुलेआम आतंक व जंगलराज चल रहा है ।
केंद्र व विभिन्न राज्यों में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से इन वर्गों के प्रति हर स्तर पर बरती जा रही हीन, जातिवादी भेदभाव व जुल्म- ज्यादिति के बारे में जो बयानबाजी की जा रही उपेक्षा व दलितों पर हो रही जुल्म-ज्यादति के बारे में जो बयानबाजी की जा रही है और वह केवल उनकी कोरी स्वार्थ की राजनीति व नाटकबाजी ही ज्यादा लगती है। आदिवासी और दलित समाज उन्हें कभी भी माफ़ करने वाली नहीं हैं क्योंकि वे पिछले चार वर्षों तक खामोश रहे हैं। इसके अलावा, वर्तमान गरम माहौल के मद्देनजर अब बीजेपी सांसदों को दलित,आदिवासी बाहुल्य गाँवों में एक रात गुजरने का जो यह नया नाटक बीजेपी द्वारा छेड़ा गया है, वह इन पाखण्ड व उपहास से ज्यादा कुछ भी नहीं है। जैसाकि यह विदित है कि जबसे केंद्र में बीजेपी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इनकी सरकार बनी है तब से पूरे देश में व ख़ासकर बीजेपी शासित राज्यों में तो सबसे ज्यादा यहाँ जातिवादी व्यवस्था के शिकार लोगों का अर्थात् दलितों व आदिवासी समाज के लोगों का हर स्तर पर लगातार शोषण व उत्पीड़न आदि हो रहा है।
आदिवसियों में जबर्दस्त आक्रोश होने की वजह से बीजेपी की केंद्र व राज्य सरकारें इस हद तक दहल गयी हैं कि उन्हें यह लगने लगा है कि सत्ता उनके हाथ से जाने वाली है और इसलिये बीजेपी की केंद्र व राज्य सरकारों ने पुलिस व सरकारी आंतक का ताण्डव अब इन वर्गों के प्रति हर तरफ शुरू कर दिया है।
इस मामले में ख़ासकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व राजस्थान में ना केवल हजारों परिवार के लोगों की अंधाधुंध गिरफ्तारी की जा रही है बल्कि असामाजिक व अपराधिक तत्वों को भी इन पर जुल्म – ज्यादिति व इनकी हत्या तक करने की भी छूट दे दी गयी है जैसाकि गत दिनों ख़ासकर उत्तर प्रदेश के मेरठ, हापुड़ व आजमगढ़ जिले में तथा मध्य प्रदेश के ग्वालियर, मुरैना एवं भिंड आदि जिले में देखने को मिला है और इस प्रकरण की आड़ में इन वर्गों के लोगों की उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी सरकारी आतंक व गिरफ्तारी इतनी ज्यादा हुई है और अभी भी हो रही है कि इसकी तुलना में सन् 1975 में लगी “इमर्जेंसी” की सरकारी जुल्म- ज्यादिति कम है।
हालाँकि उस इमरजेंसी में आमजनता के हित व सुरक्षा को इस प्रकार से कुचला नही गया था जिस प्रकार से आज बीजेपी की सरकारें यहाँ सदियों से पीड़ित रहें ख़ासकर दलितों व आदिवासियों के खिलाफ उन्हें कुचलने का अभियान चलायी हुई है जो हकीकत में सन् 1857 में अंग्रेजों द्वारा आजादी की लड़ाई को बुरी तरह से कुचलने की याद भी ताजा करता है किन्तु गरीब, मजदूर व किसान-विरोधी जातिवादी बीजेपी सरकारों को यह समझ लेना चाहिये कि ख़ासकर दलितों व आदिवासियों के पास खोने के लिये है ही क्या? ये लोग केवल अपने आत्म-सम्मान व स्वाभिमान तथा अपनी दो वक्त की रोटी की खातिर हर दिन कड़ी मेहनत करते हैं और जैसे-तैसे करके अपना जीवन गुजर-बसर करते हैं।
ये तीन प्रमुख मुद्दे हैं जिन्होंने आदिवासियों के बीच असंतोष पैदा किया है, खासकर मध्य भारतीय आदिवासी बेल्ट में जो पूर्वी गुजरात से लेकर ओडिशा तक फैला हुआ है, जिसमें उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और दक्षिणी पश्चिम बंगाल शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश, गुजरात और अब महाराष्ट्र में भाजपा ही राज्य सरकारें चलाती है। इन तीन राज्यों में भी, उसने वास्तव में पिछला विधानसभा चुनाव केवल गुजरात में ही जीता था, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में थोड़े अंतराल के बाद सत्तारूढ़ दल/गठबंधन को तोड़कर सत्ता हासिल करने में कामयाब रही थी। यह आदिवासी बहुल राज्यों में भाजपा की कमजोर स्थिति को दर्शाता है और इसलिए आदिवासी समुदायों को वापस लुभाने के लिए कुछ भी करने की उसकी हताशा है।
2006 में संसद द्वारा पारित एफआरए, अन्य बातों के अलावा, आदिवासियों और अन्य वनवासियों को भूमि के उन टुकड़ों के लिए भूमि का मालिकाना हक देने का प्रावधान करता है, जिन पर वे पारंपरिक रूप से खेती करते रहे हैं। इसकी परिकल्पना आदिवासी समुदाय के सदस्यों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उपाय के रूप में की गई थी। नीचे दिया गया चार्ट मार्च 2022 के अंत तक संसाधित किए गए दावों की हिस्सेदारी और दिए गए भूमि स्वामित्व के सं इस कानून के कार्यान्वयन में विभिन्न राज्यों का रिकॉर्ड दिखाता है। स्पष्ट रूप से, अधिकांश भाजपा शासित राज्य है।

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