हेमंत सोरेन मोदी लहर के खिलाफ पुरे देश के मजबूत किला बन कर उभरे है। मोदी के खिलाफ देश में नेतृत्व करने की क्षमता।
लोकसभा चुनाव 2024 के बाद भारतीय राजनीति के बदलते मंज़र में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने एक ऐसा उदाहरण पेश किया जो पूरे देश के लिए प्रेरणादायक बन गया है। जब देश के विभिन्न राज्यों में बीजेपी का प्रभाव बरकरार था और विपक्षी दल कमजोर पड़ रहे थे, तब हेमंत सोरेन ने झारखंड में बीजेपी के हर तंत्र को चुनौती दी और जीत हासिल की। यह जीत न केवल चुनावी मैदान की थी बल्कि लोकतंत्र, न्याय और संवैधानिक मूल्यों की भी थी।
आप को याद होगा ठीक लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने और तोड़ने की हर संभव प्रयास किया लेकीन उनकी राजनीतिक सूजबुझ ने मोदी के सडयंत्र को नाकामयाब कर दिया। जब मोदी सरकार अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकी तो उसने झूठे मुक़दमे में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल में डाल दिया। तब उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने मोर्चा सम्भला और दुर्गा का रूप धारण कर सारे अटकालों को लगाम लगा दिया।
बीजेपी ने हेमंत सोरेन को झारखण्ड विधानसभा के चुनाव में हराने के लिए चुनाव आयोग, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग, सीबीआई और एनआईए जैसे संस्थानों का खुलकर दुरुपयोग किया। न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करने की कोशिशें हुईं, दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रिओं को चुनावी प्रचार में झोंक दिया, केंद्रीय मंत्रिओं का भारी भरकम टीम उन्हें हारने में लगा दिया लेकिन हेमंत सोरेन ने हर षड्यंत्र का डटकर सामना किया और झारखंड में बीजेपी के मंसूबों को ध्वस्त कर दिया। राज्य में पहले से भी ज़्यादा सीट्स जीतकर दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री बने जो झारखण्ड के इतिहास में पहली बार हुआ।
2024 के लोकसभा चुनाव के बाद अन्य राज्यों में भी विधानसभा का चुनाव हुआ वहाँ बीजेपी की ताकत बरकरार रही। हरयाणा जहाँ पिछले 10 सालों से बीजेपी की सरकार थी और एंटी-इनकंबेंसी का शिकार थी। मीडिया में बीजेपी को सत्ता से बाहर होना तय बताया जारहा था। हरियाणा में कांग्रेस भूपेंदर सिंह हुड़्डा जो जाटों के सब से बड़े लीडर्स थे की अगुवाई में चुनाव लड़ी लेकीन मोदी के शक्ति और राजनीतिक षड्यंत्रों को हुड़्डा पछाड़ न सके बीजेपी ने पुरे विपक्ष को किनारे कर तीसरी बार सत्ता पर काबिज हो गई।
महाराष्ट्र में भी विधानसभा के चुनाव हुए, जहां शुरुआती दौर में इंडिया गठबंधन को बहुत मजबूत बताया जा रहा था जिसमें में उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस की पूरी टीम मिलकर भी मोदी का मुकाबला कर रहे थे, लेकीन मोदी की राजनीतिक शक्ति के आगे सारी एकजुटता धराशाई हो गई। पिछले बार के तुलना में अधिक सीटें जीत कर मोदी और भी ताकतवर बन गाएं।
महाराष्ट्र के बाद यूपी बिहार में भी बाय इलेक्शन हुए। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव भी मोदी की ताकत के सामने टिक नहीं सके और कर जीती हुई सीटें उन्हें गवानी पड़ी। बिहार में तेजस्वी यादव की आरजेडी भी बाई-इलेक्शन में हार गई।
हाली के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मोदी की ताकत और राजनीतिक सडयंत्र सर चढ़कर बोली। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का मजबूत किला मोदी ने ढहा दिया। केजरीवाल के साथ मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे नेता भी अपनी राजनीतिक जमीन नहीं बचा सके।
जब पूरे देश में विपक्ष कमजोर पड़ता नजर आया, तब हेमंत सोरेन ने न केवल अपनी सरकार बचाई बल्कि झारखंड में बीजेपी की पूरी रणनीति को विफल कर दिया। उन्होंने यह साबित किया कि अगर जनता के मुद्दों पर डटकर काम किया जाए और विपक्ष एकजुट होकर लड़े, तो बीजेपी को हराया जा सकता है। हेमंत सोरेन के कामयाबी के पीछे अगर सबसे बड़ा कोई फैक्टर काम कर रहा था वह था आदिवासियों और अल्पसंख्यकों का गठजोड़। हेमंत ने आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक और किसानों के मुद्दों को प्राथमिकता दी, जिससे जनता उनके साथ मजबूती से खड़ी रही।
मोदी के ताकत के खिलाफ अब हेमंत सोरेन विपक्ष के लिए उम्मीद की किरण बन कर उभरें हैं।
आज जब देश के कई विपक्षी नेता मोदी सरकार के आगे असहाय नजर आते हैं, हेमंत सोरेन ने यह साबित किया है कि दृढ़ इच्छाशक्ति, जनता के प्रति प्रतिबद्धता और न्यायप्रिय राजनीति के बल पर किसी भी राजनीतिक तानाशाही का मुकाबला किया जा सकता है। उनका संघर्ष केवल झारखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश के अन्य विपक्षी नेताओं के लिए एक सबक है कि यदि वे सच्चे इरादे से लड़ें तो बीजेपी को हराना असंभव नहीं है।
हेमंत सोरेन आज भारतीय राजनीति में एक योद्धा के रूप में उभरे हैं। हेमंत सोरेन ने जो कर दिखाया है, वह भारतीय राजनीति के इतिहास में एक मिसाल बन चुका है। अब यह विपक्षी दलों की जिम्मेदारी है कि वे झारखंड से सबक लें और आगामी चुनावों में जनता के लिए एक मजबूत विकल्प पेश करें।
