झारखंड पेरेंट्स एसोसिएशन के प्रांतीय प्रवक्ता सह हिंदी साहित्य भारती के उपाध्यक्ष संजय सर्राफ ने कहा है कि मातृ दिवस हर वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है, इस वर्ष 11 मई को मातृ दिवस मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मां यह मात्र एक शब्द नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का सार है। मां वह शक्ति है, जो निःस्वार्थ प्रेम, त्याग, समर्पण और करुणा की सजीव प्रतिमूर्ति होती है। संसार की कोई भी भावना मां की ममता के आगे नहीं टिक सकती। इसी मातृत्व की महानता को सम्मान देने के लिए हर वर्ष मई महीने के दूसरे रविवार को ‘मातृ दिवस’ मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है।यह दिवस मात्र एक दिन नहीं, बल्कि वह अवसर है जब हम अपनी मां को यह बता पाते हैं कि वह हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण हैं। यह एक भावनात्मक पर्व है जो हमें अपने हृदय की गहराइयों से मां के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की प्रेरणा देता है। मां ममता की मूरत है मातृ दिवस की शुरुआत अमेरिका से हुई, जब अन्ना जार्विस नामक महिला ने अपनी मां की स्मृति में इस दिन को मनाने की पहल की।धीरे-धीरे यह परंपरा वैश्विक रूप लेती गई और आज लगभग हर देश में यह दिन श्रद्धा और प्रेम से मनाया जाता है। भारत में भी यह दिन खास महत्व रखता है। भारतीय संस्कृति में तो मां को देवी तुल्य माना गया है। “मातृदेवो भव:” की भावना हमारे शास्त्रों में भी निहित है। मां केवल जन्म नहीं देती, बल्कि जीवन भर हमारा मार्गदर्शन करती है, कष्टों को अपने आँचल में समेटकर हमारे लिए सुख-संवेदनाओं का सागर लुटा देती है। मातृ दिवस के अवसर पर बच्चे अपनी मां को उपहार देते हैं, विशेष भोज बनाते हैं या कोई हस्तनिर्मित कार्ड या कविता के माध्यम से अपने भाव प्रकट करते हैं। हालांकि, यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि मां के योगदान को सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि हर दिन आदर और प्रेम देना चाहिए। आज के बदलते सामाजिक परिवेश में जब संयुक्त परिवार विघटित हो रहे हैं, मां की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। ऐसे में मातृ दिवस हमें माँ के साथ समय बिताने, उनके अनुभवों से सीखने और उन्हें मान देने का एक सशक्त अवसर देता है। अंततः, माँ न सिर्फ जीवन की जननी हैं, बल्कि वह एक प्रेरणा हैं, एक आधार हैं और हमारे अस्तित्व की जड़ हैं। माँ को समर्पित यह दिन उनके प्रति हमारे प्रेम और आदर की अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है।
