रांची जिला मारवाड़ी सम्मेलन के संयुक्त महामंत्री सह प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि मारवाड़ी समाज में होली का पर्व अत्यंत हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार रंगों और उमंगों का प्रतीक होता है, जिसमें लोग एक-दूसरे से मिलकर खुशियाँ बांटते हैं और पुराने गिले-शिकवे भूलकर नए संबंधों की शुरुआत करते हैं। होली का पर्व खासतौर पर सामाजिक मेलजोल का अवसर होता है, जब परिवार, मित्र और रिश्तेदार एकत्रित होते हैं।मारवाड़ी समाज में होली की तैयारियाँ एक सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती हैं। होलिका दहन की रात को विशेष पूजा और अग्नि की परिक्रमा की जाती है। प्रत्येक घर में महिलाएं द्वारा गोबर से बना बड़कुला तैयार की जाती है। जिसे पूरे धार्मिक रीति रिवाज के साथ समाज की कुरीतियां को दूर करने के संकल्प के साथ दहन किया जाता है। होलिका दहन के सुबह राजस्थानी महिलाओं द्वारा डांडा- रोपण किया जाता है। तथा ठंडी होली की पूजा विधिवत पूरे विधि विधान से की गई। होली का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है। अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है, जिसमें गुलाल और पानी के रंगों से लोग एक-दूसरे को रंगते हैं। खासतौर पर इस दिन नृत्य और संगीत के साथ भव्य आयोजन होते हैं, जिनमें ढोल-नगाड़े और लोक संगीत की धुनों पर लोग झूमते हैं। होली मिलन समारोह का आयोजन किया जाता है। पकवानों की बात करें तो मारवाड़ी समाज में होली के दौरान विशेष पकवान बनाए जाते हैं। “गुझिया” एक प्रमुख मिठाई है, जो आटे, सूजी, मावा, और ड्राई फ्रूट्स से भरकर तली जाती है। इसके अलावा “ठंडाई” भी होली का पारंपरिक पेय है, जो दूध, बादाम, खसखस, गुलाब और मसालों के मिश्रण से बनता है। इसके साथ ही मठरी, मूंग भात, सुहाली, निमकी, हलुआ, पापड़ी,दही बड़ा, जैसे नमकीन पकवान भी बड़े चाव से खाए जाते हैं। इस प्रकार, मारवाड़ी समाज में होली न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है, जिसमें रंगों के साथ-साथ स्वादिष्ट पकवानों और परिवार के साथ मिलकर जीवन के अच्छे पलों का आनंद लिया जाता है।
संजय सर्राफ
