झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने कार्यकाल के चौथे साल के पांचवे महीने में आ चुके हैं। झारखंड में भाजपा को परास्त कर सूबे की सत्ता हासिल करने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता हेमंत सोरेन के कांग्रेस- आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाया।
हेमंत सोरेन के कुशल नेतृत्व में सरकार झारखंड के चतुर्मुखी विकास की ओर लगातार बढ़ रही है।सीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद से, सोरेन ने आदिवासियों और गैर-आदिवासियों दोनों के लिए कई फैसले लिए हैं। उन्होंने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 और संताल परगना काश्तकारी (अनुपूरक प्रावधान) अधिनियम, 1949 में संशोधनों का विरोध करने के लिए भाजपा सरकार द्वारा दर्ज आदिवासियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को वापस ले लिया ।
मार्च 2020 में जब कोविड महामारी फैली, तो झारखंड लेह में फंसे प्रवासी श्रमिकों को एयरलिफ्ट करने वाला पहला राज्य था। पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने धीरे-धीरे लेकिन लगातार झारखंड को आगे ले जा रहें है।
हेमंत सोरेन ने झारखंड में 1932 के खतियान (भूमि सर्वे) पर आधारित डोमिसाइल पॉलिसी, ओबीसी-एसटी- एससी आरक्षण के प्रतिशत में वृद्धि, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का विस्तार न देने की तीस वर्ष पुरानी मांग पर सहमति, राज्यकर्मियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम, आंगनबाड़ी सेविकाओं-सहायिकाओं के वेतनमान में इजाफा, पुलिसकर्मियों को प्रतिवर्ष 13 माह का वेतन, पारा शिक्षकों की सेवा के स्थायीकरण, सहायक पुलिसकर्मियों के अनुबंध में विस्तार, मुख्यमंत्री असाध्य रोग उपचार योजना की राशि पांच लाख से बढ़ाकर दस लाख करने, पंचायत सचिव के पदों पर दलपतियों की नियुक्ति,80 उत्कृष्ट विद्यालय चालू किया जैसे फैसलों से सरकार ने अपनी लोकप्रियता का सेंसेक्स बढ़ाया है
कामकाज की कसोटी पर इस
सरकार का मूल्यांकन शानदार है , साफगोई के साथ कही जा सकती है कि इन तीन वर्षों में हेमंत सोरेन ने अपनी पार्टी के साथ-साथ घटक दलों के गठबंधन के बीच खुद को मजबूत नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर लिया है। कई विवादों और विपक्ष के लगातार हमलों के बावजूद उन्होंने अपनी सत्ता के किले पर कोई खरोंच नहीं आने दी।
