रांची : फर्जी दस्तावेज पर करोड़ों का भुगतान

jharkhand News
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प्रधानमंत्री कार्यालय ने कनहर परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. रिपोर्ट में बताना है कि परियोजना के तहत किसको, किस आधार पर मुआवजा का वितरण किया गया. जिन लोगों को मुआवजा नहीं मिला है, उसका भी कारण पूछा है. पीएमओ ने झारखंड, छत्तीसगढ़ और यूपी सरकार से जानकारी मांगी है कि डूब क्षेत्र में आनेवाले गांव के लिए क्या योजना है. पीएमओ को शिकायत मिली है कि कनहर परियोजना के तहत विस्थापितों को मुआवजा देने में अनियमितता बरती गई है. पीएमओ ने रिपोर्ट के आधार पर आगे जांच कराने की बात कही है.

फर्जी दस्तावेज के सहारे मुआवजा के नाम पर करोड़ों की संदिग्ध निकासी की गई है. पीएमओ में ऐसी शिकायत कनहर बंद विरोधी संघर्ष समिति और आदिवासी विस्थापित एकता मंच ने किया है. जिसके बाद पीएमओ एक्शन में आया है. शुरुआती दौर में विस्थापितों को 1800 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से मुआवजा दिया गया. बाद में मुआवजा राशि में भी बढोत्तरी की गई. मुआवजा प्रदान के लिए सूची तैयार की गई थी, मगर उस सूची के अनुसार विस्थापितों को भुगतान नहीं किया गया. जिम्मेवारों ने फर्जी दस्तावेज के सहारे मुआवजा राशि का वितरण अपने चहेतों के बीच कर दिया. बता दें कि कनहर परियोजना के तहत 1044 मूल विस्थापित परिवार चिन्हित किए थे, जिनकी तीन पीढ़ी को 7,11,000 का विस्थापन पैकेज दिया जाना था. चार राज्यों में सरकारी सूची के 4143 परिवारों में से लगभग 200 ऐसे परिवार हैं, जिन्हें विस्थापन पैकेज अभी तक नहीं मिला. इसी तरह बाद में जोड़े गए प्रपत्र छह के 424 परिवारों में से लगभग 390 परिवारों को अभी तक विस्थापन पैकेज का लाभ अबतक नहीं मिल पाया है.

1976 में शुरू हुई थी परियोजना

कनहर परियोजना की शुरुआत 6 अक्तूबर 1976 में हुई थी. तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने परियोजना को मंजूरी दी थी. दुद्धी से 12 किलोमीर दूर अमवार गांव में डैम बनाने का निर्णय लिया गया. जहां कनहर और उसकी सहायक नदी पांगन है, इसलिए इस प्रोजेक्ट का नाम कनहर सिंचाई परियोजना रखा गया. इस परियोजना के लिए 29 जनवरी 1979 को 27.75 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ. 1983-84 में परियोजना का काम बंद हो गया. झारखंड सरकार ने 2002 में और 2010 में छतीसगढ़ सरकार ने परियोजना को मंजूरी दी.

बसपा ने बढ़ी हुई लागत को दी थी मंजूरी

यूपी बसपा की सरकार ने परियोजना की लागत 27.75 करोड़ से बढ़ाकर 850 करोड़ करते हुए बजट प्रदान किया था. दूसरी बार सपा की सरकार ने परियोजना का बजट बढ़ाकर 2250.50 करोड़ कर दिया. यूपी में 2017 में भाजपा की सरकार आई. तब परियोजना की लागत को बढ़ाकर 3500 करोड़ कर दिया गया. 30 जून 2022 को परियोजना का काम पुन: शुरू होना था, मगर मुआवजा राशि नहीं मिलने के कारण विस्थापितों ने आंदोलन शुरू कर दिया. 2014 से लेकर अबतक आंदोलन चल रहा है.

डूब क्षेत्र के 21 गांव पुर्णत: विस्थापित

कनहर सिंचाई परियोजना की वजह से झारखंड के गढ़वा जिले के 4 गांव नक्शे से गायब हो जाएंगे. इसी प्रकार यूपी के सोनभद्र जिले के 11 गांव और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के 6 गांव पूर्णत डूब क्षेत्र में आ जाएंगे. डूब क्षेत्र में आने वाले गांव के लोगों को दूसरे इलाके में शिफ्ट किया गया है. सरकार को 2013 की भूमि अधिग्रहण नीति के तहत मुआवजा देना था, मगर झारखंड में सहित अन्य राज्यों में इसका पालन नहीं हुआ. जिस वजह से कई परिवार डूब क्षेत्र से हटने को तैयार नहीं हो रहे थे. इस परियोजना से 108 गांव के किसानों को फायदा मिलेगा. 100 किलोमीटर दूर तक नहरों के जरिए पानी पहुंचाने का प्लान है. इस पानी से 35 हजार 467 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित होंगे.

नक्शा से गायब होने वाले गांव

गढ़वा जिले के 4 गांव : फेक्सा, भुईफोर, सामो और परास पानीकला.

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के 6 गांव : त्रिशुली, झारा, कुशफर, सेमरवा, कामेश्वर नगर और धौली.

यूपी के सोनभद्र जिले के 11 गांव : लांबी, रनदहटोला, सुगवामान, कुदरी, कोरची, सुंदरी, भीसुर, अमवार, गोहडा, बरखोहरा और बघाडू.

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