आईआईटी में एडमिशन से पहले का जीवन और संघर्ष कैसा होता है, इस पर नवभारत गोल्ड ने कोटा से ग्राउंड रिपोर्ट की थीं। आईआईटी में एडमिशन हो जाना स्टूडेंट्स के लिए ख्वाब के सच होने की तरह है, लेकिन हाल ही में सरकार ने राज्यसभा में सदस्य सुशील कुमार मोदी के सवालों का जवाब देते हुए बताया है कि 5 बरसों में 8,139 स्टूडेंट्स ने बीच में ही IIT से अपनी पढ़ाई छोड़ दी। आए दिन देश के अलग-अलग आईआईटी में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स की सुसाइड की ख़बरें आ रही हैं। आईआईटी कैंपस में एडमिशन हो जाने के बाद भी किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है स्टूडेंट्स को? आखिर अपने सपनों को हासिल करने के बाद भी स्टूडेंट्स इससे क्यों मुंह मोड़ रहे? किस तरह की लाइफ है आईआईटी स्टूडेंट्स की? यह जानने के लिए हमने देश के पांच टॉप आईआईटी में शामिल आईआईटी कानपुर में तीन दिन बिताए और यहां के स्टूडेंट्स से बातचीत की।
हम फाइनल ईयर वाले हैं, यहां सिर्फ प्लेसमेंट का दबाव है….
देश के किसी भी आईआईटी कैंपस में जाना मेरे लिए पहला अनुभव था। कानपुर पहुंचने के बाद दोपहर तीन 3 बजे मैं आईआईटी कैंपस में पहुंचा। भव्य कैंपस में चारों तरफ हरियाली के बीच पिन ड्रॉप साइलेंस था। इस शांति को कभी-कभी भंग कर रही थीं सड़क पर गुजने वाली मोटर गाड़ियां। यहां पढ़ने वाले स्टूडेंट्स पैदल या साइकल से आते-जाते नज़र आ रहे थे। स्टूडेंट्स के लिए साइकल के अलावा बाइक या कार की इजाज़त नहीं है। कैंपस में दाखिल होने के बाद अंदाज़ा था कि मुझे जिन छात्रों से मिलने जाना है, वे यहीं कहीं 50 या 100 मीटर की दूरी पर रहते होंगे, लेकिन मैं ग़लत था। आईआईटी कानपुर कैंपस में लगभग दो किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद मैं वहां पहुंच सका।
पहले से मेरा इंतज़ार कर रहे थे फाइनल ईयर बीटेक के स्टूडेंट उत्कर्ष (बदला हुआ नाम)। वह मुझे अपने हॉस्टल में लेकर गए, जहां उनके चार दोस्त पहले से बैठे थे। मुलाकात के बाद उन लोगों से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। मेरा पहला सवाल था कि क्या चल रहा है कैंपस में? उत्कर्ष ने कहा कि, ‘हम लोग तो फाइनल ईयर वाले हैं। हमारे यहां प्लेसमेंट के अलावा क्या चलेगा? यहां सब लोग इन दिनों सिर्फ प्लेसमेंट के प्रेशर में मिलेंगे।’