यूपीए को विस की 25-30 चिह्नित सीटों पर धक्का देने की चल रही तैयारी

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झामुमो नेतृत्ववाली यूपीए को मिशन 2024 को ध्यान में रखते हुए धक्का देने की तैयारी चल रही है. इसकी पटकथा लिखने में जुटे हैं, जेल में बंद पूर्व मंत्री और झारखंड पार्टी के अध्यक्ष एनोस एक्का, झापा केंद्रीय महासचिव अशोक कुमार भगत और पूर्व महाधिवक्ता व झापा कार्यकारी अध्यक्ष अजीत कुमार. झामुमो के चमरा लिंडा भी इसमें पीछे नहीं हैं. भाजपा के बड़े रणीतिकार भी पटकथा तैयार करनेवालों को अंदर-अंदर हवा दे रहे हैं. 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी यूपीए को नुकसान पहुंचाने की तैयारी चल रही है. सबका लक्ष्य एक है, झारखंड में किसी भी हाल में 2024 के विधानसभा चुनाव में यूपीए को बहुमत न मिले. हर हाल में यूपीए को सत्ता से बेदखल करना है. बदले में भाजपा कई सीटों पर परोक्ष रूप से इनकी मदद करेगी. पटकथा लिखने वालों की मंशा यह है कि भले ही उनकी पार्टी को इन चिहि्नत सीटों पर जीत मिले या न मिले, लेकिन यूपीए का खेल बिगड़ जाए. यूपीए प्रत्याशी को हराना इनका मकसद है, ताकि सत्ता में वापसी की राह बंद जो जाए.

अर्जुन मुंडा के कार्यकाल में अतिरिक्त महाधिवक्ता और रघुवर सरकार में (2017 से 2020 तक) महाधिवक्ता रहे अजीत कुमार झारखंड पार्टी में शामिल हो चुके हैं. वे अर्जुन मुंडा के साथ ही साथ भाजपा के अन्य नेताओं से भी उनके करीबी रिश्ते रहे हैं. झापा के लिए विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार करने में जुटे हैं. साथ ही साथ, यूपीए के मजबूत इलाके में भी उसे कमजोर करने की भी रणनीति तैयार की जा रही है. पहले चरण में कुछ सीटों को चिह्नित कर लिया गया है. यह भी बतातें चलें कि झापा से पहली बार जीतने वाले एनोस एक्का अपनी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष एनई होरो (अब स्वर्गीय) के निर्णय और फरमान की अनदेखी करते हुए अर्जुन मुंडा के साथ हो लिए थे और मुंडा के नेतृत्व में बनी सरकार में मंत्री भी बने. अजीत कुमार के झापा में शामिल होते ही उन्हें एनोस के बाद दूसरे नंबर का स्थान पार्टी में मिल गया.

अजीत पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं, जबकि एनोस के जेल जाने और उसके पहले से पार्टी प्रधान महासचिव अशोक कुमार भगत लंबे समय से एनोस के करीबी में शुमार रहे हैं. एनोस के जेल जाने के बाद अशोक ही पार्टी को संभाल रहे थे. अब अजीत कुमार और अशोक कुमार भगत 2024 के विस चुनाव को लेकर रणनीति बनाने में जुटे हैं. जानकारी के अनुसार, अजीत कुमार और अशोक भगत की कई राउंड की मीटिंग चमरा लिंडा से भी हो चुकी है. जिस दिन एनोस हाईकोर्ट आए थे, उस दिन भी एनोस और चमरा लिंडा की टेलोफोन पर बातचीत हुई थी.

पूर्व मंत्री, आदिवासी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता को पाले में लाने की तैयारी
झापा और चमरा लिंडा के रणनीतिकार झामुमो और कांग्रेस से नाराज चल रहे नेताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश में लगे हैं. इतना ही नहीं, यूपीए सरकार से नाराज चल रहे नेताओं, संगठन और आंदोलनकारियों को इस मुहिम से जोड़ना है. कई लोगों से संपर्क साधा जा रहा है, जिनमें प्रमुख आदिवासी नेता और पूर्व मंत्री देवकुमार धान, गीताश्री उरांव, पूर्व सांसद सालखन मुर्मू, जेपीपी प्रमुख और पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा, आंदोलनकारी लक्ष्मी नारायण मुंडा, दयामनी बरला, प्रेमशाही मुंडा, सरना धर्मगुरु बंधन तिग्गा शामिल हैं. इन नेताओं को पाले में लाकर यूपीए को टेंशन देने की तैयारी चल रही है.

चमरा का झामुमो से हो चुका मोहभंग, दूरी बना कर चल रहे
चमरा लिंडा अपनी पार्टी से दूरी बना कर चल रहे हैं. एकसाथ कई चाहत रखते हैं. लोहरदगा से संसदीय चुनाव लड़ने, हेमंत सरकार में मंत्री बनने, अपने समर्थकों को बोर्ड-निगम में जगह दिलाने की चाहत रखते हैं. उन्हें इस बात का दर्द है कि लगातार तीन बार विधायक बनने के बावजूद संगठन व सरकार में वाजिब हक नहीं मिल रहा. वैसे उनकी पार्टी में कई ऐसे विधायक हैं, जो लगातार चुनाव जीत रहे हैं, लेकिन गंठबंधन सरकार की मजबूरी की वजह से उन्हें भी जगह नहीं मिल रही है. 16 फरवरी की उनकी आदिवासी अधिकार महारैली को इनकी नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है. इस रैली में मुद्दे भले ही आदिवासी और आदिवासियत रहेगी, मगर निशाने पर झामुमो और सीएम पर ही रहेंगे. दरअसल चमरा दिखाना चाहते हैं कि उन्हें कम आंकने की भूल न की जाए, नहीं तो उनके लिए सारे विकल्प तैयार हैं. झापा के साथ या झापा में शामिल होकर चुनावी समर में भी कूद सकते हैं, भाजपा का भी ध्यान अपनी ताकत की ओर खींचना चाहते हैं. बताना चाहते हैं कि वे दक्षिणी छोटानागपुर-कोल्हान में एक बड़े और मजबूत आदिवासी नेता हैं. सिसई विधायक प्रो. जिगा होरो भी चमरा के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं.

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