झारखंड में एक बार फिर से सरना धर्म कोड को लेकर सियासत तेज हो गई है. जानकारी हो कि इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर की है. मुख्यमंत्री के चिट्ठी लिखने के बाद अब कांग्रेस ने भी समर्थन किया है और आदिवासी समुदाय के लिए जनगणना में सरना धर्म के लिए अलग कोड की मुख्यमंत्री की मांग का समर्थन करते हुए भाजपा पर जमकर निशाना साधा है. लेकिन दूसरी ओर अलग सरना धर्म कोड को लेकर अभी भारतीय जनता पार्टी के नेता दुविधा में दिखते हैं. वही विगत दिनों आजसू पार्टी के महाधिवेशन के आखिरी दिन 24 सूत्री राजनीतिक प्रस्ताव पारित किया। इसमें सरना धर्मकोड लागू करने की मांग भी शामिल है। आजसू पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो भी हेमंत सोरेन की राह पर चल पड़े हैं और वह हेमंत सोरेन की सरना धर्म कोड लागू करने की मांग का एक तरह से समर्थन किया है।
सरना धर्म कोड की मांग का मतलब यह है कि भारत में होने वाली जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो फॉर्म भरा जाता है उसमें दूसरे सभी धर्मों की तरह आदिवासियों के धर्म का जिक्र करने के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए ताकि आदिवासियों को उनका हक और अधिकार मिल सके. जिस तरह अन्य समुदाय के लिए कॉलम बनाया जाता है. अपने धर्म का उल्लेख जनगणना के फॉर्म में करते हैं, उसी तरह आदिवासी भी अपने सरना धर्म का उल्लेख कर सकें. उल्लेखनीय है कि झारखंड विधानसभा ने 11 नवंबर, 2020 को विशेष विधानसभा आहूत कर आदिवासियों के सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर राजभवन भेजा था ताकि राजभवन के माध्यम से केंद्र तक पहुंच जाए. यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था. लेकिन इसपर केंद्र से अब तक कुछ नहीं किया।
झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है और राज्य में 26% से अधिक आबादी जनजातीय समाज की है. राज्य में विधानसभा की 28 और लोकसभा की 05 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. और अगर अन्य सीटों की बात करेंगे तो वहां पर भी उनकी संख्या अच्छी खासी है. लोकसभा की आरक्षित 5 में से 3 सीटों पर भाजपा का कब्जा है. लेकिन दो सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है.
जातीय जनगणना के मामले में झारखंड सरकार भी बिहार की राह पर चलना चाहती है, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जातिगत गणना करना चाहते हैं, उनकी इस मांग का समर्थन आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो ने भी किया। वैसे ये मुद्दा 2024 में अप्रैल-मई में संभावित लोकसभा और इसके बाद अक्टूबर-नवंबर में झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान सियासी फिजां में फुटबॉल की तरह उछलता रहेगा। बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़ों पर जारी सियासत के बीच एनडीए की सहयोगी आजसू ने भाजपा से अलग राग अलापना शुरू कर दिया है। झारखंड में एनडीए के घटक ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) ने सूबे में जाति आधारित जनगणना की मांग की है। पार्टी अध्यक्ष सुदेश महतो समेत शीर्ष नेतृत्व की बैठक के बाद फैसला लिया गया। समाचार एजेंसी एएनआई से बात कर हुए आजसू पार्टी के विधायक लंबोदर महतो ने कहा कि झारखंड सरकार को अपने खर्च पर जाति आधारित जनगणना करानी चाहिए। जानकारी हो कि ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन शुरू से ही झारखंड में जाति आधारित जनगणना के पक्ष में मुखर रही हैं। आजसू ने कहा- हमारी मांग है कि झारखंड सरकार अपने खर्चे पर जाति आधारित जनगणना कराए ताकि लोगों को बड़े पैमाने पर सामाजिक न्याय मिल सके। आजसू ने यह मांग ऐसे वक्त में की है जब बीजेपी जाति सर्वेक्षण को जारी करने को लेकर बिहार सरकार पर लगातार हमला रही है। वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में भाजपा के सहयोगी उसके रुख से अलग राग अलाप रहे हैं।
खतियान नीति पर भी हेमंत सोरेन को आजसू प्रमुख सुदेश कुमार महतो का साथ मिल रहा है।आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सह पूर्व उप मुख्यमंत्री सुदेश कुमार महतो ने कहा कि खतियान आधारित स्थानीय नीति झारखंड के मूलवासियों एवं आदिवासियों की सिर्फ एक मांग पत्र नहीं है. यह हमारे पूर्वजों का सपना भी है. इसके लिए झारखंड की धरती ने बहुत कुर्बानियां दी है. यह आज की पीढ़ी का एक दृढ़ संकल्प भी है. हम इसके लिए वैधानिक ढांचों के अंतर्गत तब तक ईमानदारी से लड़ते रहेंगे, जब तक इसे हासिल नहीं कर लेते. इसके लिए राज्य के हर युवाओं को यदि सिर पर कफन बांधकर भी निकलना पड़े, तो हम सभी निकलेंगे. स्व विनोद बिहारी महतो व शहीद निर्मल महतो के बलिदान को व्यर्थ नहीं होने देंगे. पूर्वजों ने इसके लिए अपनी जानें दी हैं और अब इसे हासिल करना हमारी जिद है. उन्होंने कहा कि राज्य के दलित, अल्पसंख्यक एवं पिछड़े तथा आदिवासी हमारा साथ दें, हम खतियान आधारित स्थानीयता नीति देंगे.