मोदी सरकार के 11 साल, जश्न नहीं, जवाब दो! तनवीर अहमद

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11 वर्षों से देश की सत्ता संभाल रही मोदी सरकार आज भी जश्न और प्रचार में व्यस्त है, लेकिन जनता के असली मुद्दे अब भी अनसुलझे हैं। बेरोज़गारी, महंगाई, नफरत, संविधान पर हमले और लोकतंत्र की कमजोर होती नींव  क्या यही “अमृतकाल” है?

देश की जनता  मोदी सरकार सरकार से  उनके 11 साल सत्ता मे पुरे होने पर उनसे ज़रूरी  11 सवाल पूछ रही है हैं, जिनका जवाब देश की जनता पिछले 11 वर्षों से मांग रही है।

1. हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया गया था 11 साल में 22 करोड़ नौकरियाँ कहाँ हैं?
क्यों आज भी भारत की बेरोज़गारी दर ऐतिहासिक स्तर पर  नहीं है? 2014 के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी ने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था। यानी 11 साल में 23 करोड़ नौकरियाँ होनी चाहिए थीं। लेकिन बेरोजगारी दर 45 सालों में सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच गई। क्या सरकार इस असफलता की ज़िम्मेदारी लेती है?

2.  विदेश मे जमा कला धन वापस  लाकर ₹15 लाख हर नागरिक के खाते में डालने का वादा हुआ था  क्या यह वादा एक झूठा जुमला था? क्या विदेश में जमा काला धन कहाँ गया और कितनी वापस? 2014 में बीजेपी ने कहा था कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाकर हर नागरिक को 15 लाख रुपये दिए जाएंगे। क्या सरकार बता सकती है कि कितना काला धन वापस आया और किसे मिला?

3. नोटबंदी और GST जैसे फैसलों से देश की अर्थव्यवस्था और छोटे व्यापारी बर्बाद क्यों हुए?
क्या मोदी सरकार इन दोनों फैसलों की विफलता स्वीकार करेगी?  नोटबंदी से दवा किया जा रहा था की आतंकवादी घटना में लगाम लगेगा। नवंबर 2016 में अचानक 500 और 1000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए। इससे लाखों लोगों की नौकरियाँ चली गईं, छोटे उद्योग बंद हो गए। सरकार अब तक यह नहीं बता सकी कि इससे आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर क्या असर पड़ा।RBI ने माना कि लगभग सारा पैसा वापस आ गया। तो फिर यह निर्णय क्यों लिया गया?

4. 700 से अधिक किसानों की मौत और 1 साल लंबा आंदोलन किसकी ज़िद की वजह से हुआ? और इसका ज़ीम्मेदार कौन? कृषि कानून बिना चर्चा क्यों लाए और फिर वापस क्यों लेने पड़े? किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कहाँ पहुँचा? सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही थी। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि किसान आज भी आत्महत्या कर रहे हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसल नहीं बिक रही। क्या यह वादा महज़ एक चुनावी जुमला था? संसद को बंधक बनाकर, बिना चर्चा के कानून बनाना क्या लोकतंत्र की हत्या नहीं? 370 हटाना हो, CAA लाना हो, या तीन कृषि कानून सब बिना पूरी बहस के लाए गए। क्या मोदी सरकार संसद को सिर्फ़ एक मुहर मानती है?

5. 11 साल में पेट्रोल, गैस और खाद्य पदार्थ इतने महंगे क्यों हो गए, जबकि अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें कम थीं? दूध, दही, आटा, सब्ज़ी, गैस, पेट्रोल, इलाज सब कुछ महँगा, आमदनी ठप्प। क्या सरकार बताएगी कि जनता को राहत कब मिलेगी? मेक इन इंडिया’ का शोर ज़ोरों से हुआ, लेकिन ज़्यादातर विदेशी कंपनियाँ निवेश करने से पीछे हट गईं। देश में रोज़गार और उत्पादन दोनों कम हुए। क्या यह योजना विफल रही?

6. चीन द्वारा लद्दाख की ज़मीन पर कब्ज़े पर सरकार चुप क्यों है? 2020 में गलवान घाटी में चीन के साथ संघर्ष में हमारे 20 जवान शहीद हो गए। लेकिन आज तक सरकार ने यह नहीं बताया कि चीन ने कितनी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है। प्रधानमंत्री ने उल्टा कहा कि “कोई घुसा नहीं है।” क्या यह राष्ट्र की सुरक्षा से समझौता नहीं है?

7. कोविड महामारी के दौरान लाखों मज़दूरों की मौत और पलायन पर सरकार ने क्या ज़िम्मेदारी ली?
बिना योजना के लॉकडाउन के कारण करोड़ों मज़दूर भूखे-प्यासे सड़कों पर चलने को मजबूर हुए, कई मौतें हुईं। कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों पर सरकार ने क्या सिखा? हज़ारों जानें सिर्फ़ ऑक्सीजन की कमी से गईं। श्मशानों में लाइनें लगी थीं, लाशों को आखरी गंगा के किनारे क्यों दफनाया गया? केंद्र सरकार ने संसद में कहा “कोई मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई।” क्या यह जनता का अपमान नहीं?
क्या यह मानवीय त्रासदी सरकार की लापरवाही का नतीजा थी?

8. सीबीआई, ईडी, IT जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल सिर्फ विपक्षी दलों को डराने और तोड़ने के लिए क्यों किया जाता है? जो बीजेपी में आ जाए, वह “निर्दोष” कैसे हो जाता है? सरकारी संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, चुनाव आयोग और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर लगातार हस्तक्षेप क्यों हो रहा है?  “न्यू इंडिया” का मतलब क्या सिर्फ़ ‘एक विचारधारा’ को थोपना है?

9. क्या “सबका साथ, सबका विकास” का नारा अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों को किनारा करने का औज़ार बन गया है? क्यों मुसलमानों को लगातार योजनाओं, नौकरियों और प्रतिनिधित्व से दूर रखा जा रहा है? मोदी कैबनेंट क्यों क्यों एक भी मुस्लिम मिनिस्टर नहीं?  ईसाई बाहुल्य क्षेत्र मणिपुर में, सालों सांप्रदायिक हिंसा और जातीय संघर्ष रोक क्यों नहीं? 2024 के बाद भी मणिपुर जलता रहा, महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ, क्या यह देश की माहिलाओं का अपमान नहीं?

10. मॉब लिंचिंग, धार्मिक नफरत और ‘बुलडोजर नीति’ को बढ़ावा क्यों मिला? इसका शिकार केवल मुस्लिम ही क्यों? क्या यह संविधान और क़ानून के शासन के खिलाफ़ नहीं है? मॉब लिंचिंग, मुस्लिम विरोधी हिंसा और गौ-आतंकियों की घटनाएं बढ़ीं। क्या प्रधानमंत्री मोदी को यह स्वीकार करना चाहिए कि उन्होंने समाज को जोड़ने के बजाय बाँटने वालों को खुली छूट दे दी?
बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य पर गंभीर चर्चा नहीं  बल्कि “जनसंख्या नियंत्रण”, “यूनिफॉर्म सिविल कोड”  वक़्फ़ संसोधन क़ानून जैसे भावनात्मक मुद्दों पर फोकस। क्या यह  80 बनाम 20 की राजनीती नहीं?

11. 11 साल बाद भी शिक्षा, स्वास्थ्य, किसानों और युवाओं को प्राथमिकता देने की बजाय मंदिर, मूर्ति, और भावनात्मक मुद्दे क्यों छाए रहते हैं? 2014 से 2025 के बीच असहिष्णुता, ट्रोलिंग, झूठी खबरें और मीडिया का ध्रुवीकरण बढ़ा। क्या सरकार ने मीडिया पर नियंत्रण  नहीं कर रखा है ? क्या सरकार अपने जवाबदेही से भागना चाहती थी?
इन 11 सवालों के इलावा 11 सवाल
पुलवामा, पहलगाम उरी आतंकी हमले के सन्दर्भ में जनता पूछती है।
1. पुलवामा में 300+ किलो विस्फोटक कैसे सीमा पार कर अंदर आया?
2. सुरक्षा एजेंसियों ने पहले से हमले की चेतावनी दी थी, फिर भी जवानों का काफिला बिना हवाई सुरक्षा क्यों भेजा गया?
3. क्या हमले के 2 घंटे बाद प्रधानमंत्री एक शूटिंग लोकेशन पर वीडियो शूट करते रहे?
4. पुलवामा हमले की न्यायिक जांच अब तक क्यों नहीं करवाई गई?
5. क्या पुलवामा का शोक राजनीतिक लाभ लेने के लिए चुनावी हथियार बना? पुलवामा हमले के बाद सरकार और बीजेपी नेताओं ने हमले को बार-बार चुनावी मंच से भुनाया, क्या शहीदों की शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं हुआ?

6. पहलगाम आतंकी पहले से सुरक्षा अलर्ट के बावजूद सैलानियों  पर हमला कैसे हुआ?

7. पहलगाम आतंकी हमला, क्या खुफिया जानकारी और ज़मीनी सतर्कता में ताल मेल की भारी चूक हुई?

8. प्रधानमंत्री ने हमले के तुरंत बाद क्या कोई सर्व दलीय बैठक में हिस्सा लिया ?

9. स्थानीय लोगों और सुरक्षा कर्मियों की रिपोर्टों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया?

10. पहलगाम हमले के दोषी आतंकवादी पकड़े या मारे गए?
11. उरी सेक्टर जैसी हाई सिक्योरिटी मिलिट्री पोस्ट पर आतंकवादी आसानी से घुस कैसे गए? इसकी जाँच कहाँ तक पहुंची?

मोदी सरकार अपने 11 साल के नाकामियों को अपने झूठे और नकली अमृतकाल के जश्न से ढक नहीं सकी है। यह जश्न जनता का ध्यान असली समस्याओं से भटकाने की है। प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार इन सवालों का सीधा और सार्वजनिक जवाब देना चाहिए। अब “मन की बात” नहीं, जन की बात सुनाइए।

धन्यवाद

तनवीर अहमद
सामाजिक कार्यकर्त्ता
9431101871

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